आज़ाद हवाओं में सांस लेने वालों के लिए कविता एक शगल हो सकती है, लेकिन बारूदी धुएँ से घुटी फिज़ाओं वाले अफगानिस्तान जैसे देशों में कवि होना, गुमनामियों और मौत को दावत देना है। खासतौर पर तब, जबकि आप एक स्त्री हों। लेकिन मायने तो इसी बात के हैं कि जब मौत सामने खड़ी हो तब आप क्या चुनते हो – जुबान या चुप… बहर सईद, नादिया अंजुमन, फतना जहांगीर अहरारि और मीना किश्वर कमाल अफ़ग़ानिस्तान की मिट्टी में आकार लेने वाले वही नाम हैं, जिन्होंने मौत के बरक्स जुबान होना चुना। सुनिए वागर्थ की विशेष मल्टी मीडिया प्रस्तुति

सूत्रधार : अनुपम श्रीवास्तव
कविता आवृत्ति : प्रियंका गुप्ता और अनुपमा ऋतु
पश्तो में आवृत्ति एवं व्याख्या : मलिक मोहम्म्द नासिरी
संयोजन एवं अनुवाद : उपमा ऋचा, मल्टीमीडिया संपादक वागर्थ
प्रस्तुति : वागर्थ भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता