हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में लेखन। अद्यतन पुस्तक ‘21वीं सदी के इलाहाबाद’ (भाग–2)। ‘गुफ्तगू’ पत्रिका के संस्थापक। संप्रति पत्रकारिता।
14 जनवरी 2024 को मुनव्वर राना के निधन के साथ एक दौर का खात्मा हो गया। अब हमें ऐसा कोई शायर नहीं मिलने वाला। वे अकेले ऐसे शायर थे, जिन्हें हर कोई जानता था। जिस इंसान का शायरी से दूर-दूर तक कोई तअल्लुक नहीं है, वह भी मुनव्वर राना को जानता है। 21वीं सदी में लोग अदब से दूर होते जा रहे हैं, कविता और शेरो-शायरी से आम लोगों का कोई ख़ास वास्ता नहीं रह गया है, मंचों पर लती़फेबाजी और मसखरी के अलावा कुछ ख़ास नहीं बचा और लोग मशीनों की तरह काम कर रहे हैं। ऐसे में जिसे अदब और शेरो-शायरी में कोई दिलचस्पी नहीं है, वह भी मुनव्वर राना के नाम से वाक़िफ़ है। मुनव्वर राना आज के समय के सबसे लोकप्रिय शायर थे।
2003 में जब मैंने ‘गुफ़्तगू’ पत्रिका शुरू की थी, उसी समय से देशभर के सभी बड़े शायरों और कवियों को यह पत्रिका भेजता रहा हूँ। इस लिस्ट में मुनव्वर राना का नाम भी शामिल रहा है। लेकिन उनसे कभी मुलाकात नहीं हुई थी। पहली बार मोबाइल से उनसे तब बात हुई थी, जब उन्होंने मुझे फोन किया था। हुआ यह था कि जब मैंने गुफ़्तगू का ‘बेकल उत्साही विशेषांक’ निकालने की योजना बनाई, उस समय देशभर के लगभग सभी बड़े शायरों और कवियों को इस बावत ख़त लिखा था कि ‘बेकल उत्साही विशेषांक’ के लिए अपने मज़मून भेजिए। लगभग 20 दिन बाद मुनव्वर राना साहब का फोन आया। बहुत ही भारी-भरकम आवाज उधर से आई, ‘मैं मुनव्वर राना बोल रहा हूँ। बेकल उत्साही साहब पर मैंने मज़मून लिख लिया है आज ही डाक से रवाना कर रहा हूँ।’ पहली बार उनसे बात करके मुझे खुशी का अनुभव हुआ था।
हमारी ‘गुफ़्तगू’ टीम के लोग बार-बार मुझसे कहते रहते थे कि कभी हमें मुनव्वर राना से मिलवाइए। फिर एक बार योजना बनाकर हमलोग नरेश महरानी की गाड़ी से लखनऊ के लिए निकले। मुनव्वर राना के घर पहुंचकर हमलोगों ने लगभग तीन घंटे उनकी बातें सुनीं। दोपहर के खाने का वक़्त हो गया तो मुनव्वर साहब ने कहा कि चलो आप लोगों को खाना खिलाता हूँ। हम सभी लोगों को एक बहुत अच्छे रेस्टोरेंट में ले गए। वहां खाना खाने के बाद रेस्टोरेंट का मालिक आकर मुनव्वर राना के पास खड़ा हो गया। मुनव्वर ने अपनी रौबदार आवाज़ में उससे कहा-‘कितना बिल हुआ?’ वह आदमी चुपचाप खड़ा रहा, कुछ नहीं बोला। फिर मुनव्वर साहब ने अपनी ज़ेब से जितना पैसा निकालकर दिया, उसने ख़ामोशी ले लिया। हम लोग रेस्टोरेंट से बाहर निकले तो पता चला कि उसका मालिक कोई और नहीं, बल्कि मुनव्वर राना का दामाद है।
मुनव्वर राना के घर अनेकानेक बार गया हूँ, जाता रहता हूँ। हर बार का कोई न कोई दिलचस्प किस्सा है। सभी लिखे जाएं तो पूरी एक किताब तैयार होगी। कभी न कभी पूरी किताब भी लिखूंगा, अभी सिर्फ इतना ही!
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