वरिष्ठ कवि। हिंदी के साथ राजस्थानी में भी लेखन। ‘आवों में बारहों मास’, ‘कुछ भी स्थगित नहीं’ (हिंदी कविता संग्रह)।

1.
दीवारें उठती हैं
तब लोग लड़-लड़ कर मरते हैं
दीवारें गिर रही हैं
लोग दब-दब कर मर रहे हैं।
2.
छोटा-सा शब्द है दीवार – तीन अक्षरों का
इससे भी छोटा हो सकता है
दो अक्षर का – भीत
एक अकेला अक्षर भी कभी खड़ा होता है दीवार बनकर
यूं दरकार नहीं दीवार को अक्षर एक भी
वह मौन बनकर भी उपस्थित हो सकती है
जिसके आरपार देखा नहीं जा सकता
कानों में आजतक पिघला शीशा नहीं डाला जा सका दीवारों के
कोई धीरे से भी फुसफुसाए वे सुन लेती हैं।
3.
उगती नहीं अपने आप बनानी पड़ती है
मजबूत दीवार जो खड़ी रहे देर तक
वक्त और मौसम की मार सहते हुए
धंसना पड़ता है गहरी जमीन में
नींवखोदकर भरने के लिए
नींव जितनी पुख्ता होती है
दीवार उतनी देर खड़ी रहती है
दीवार चेहरा है घर के बाहर
घर के अंदर रहनेवाले लोगों का
सिर्फ नाम लिखी तख्ती टांगने की जगह भर नहीं
4.
आड़ या रुकावट नहीं होती हर बार
भरोसा भी होती है कभी दीवार
साए में बैठ सकता है जिसके कोई
तेज धूप या बारिश में
टिकाए रखती है छतअपने मजबूत कंधों पर
दीवार बरसों तक।
5.
दीवार पर लिखी इबारतें बरसों बनी रहती हैं
आने जाने वालों को – राम राम, सलाम
कई सूक्तियां शुभकामनाएं पैगाम
दूर तक जाते हैं
जमाने को सुधारने
दुनिया को बदलने तक की बातें
लिखी दिखती हैं दीवारों पर।
6.
नारे लगाता जुलूस गुजर जाता है जब गली से
नारों की गूंज से देर तक थरथराती रहती हैं दीवारें
जुलूस गुजरने के बाद निशान मिलते हैं दीवारों पर
बतौर शिनाख्त
7.
हमेशा ईंटगारे भाटेपत्थर की नहीं होती दीवारें
कभी लोहे-लकड़ी के कपाट
कभी कनातें कपड़े की
दृश्य दीवारों से बड़ी है फेहरिश्त
अदृश्य दीवारों की
अविश्वासअंदेशाशकसंशयसंकोचलिहाजमर्यादा
होने को शर्म की भी होती है
एक झीनी-सी दीवार
भय धर्म जात मजहब से भी बड़ी होती है
दीवार सियासत की
लोग जब रुकते नहीं
बार-बार लांघने की कोशिश करते हैं
धरतीको विभाजित करने वाली सरकारी सीमा
जिसे मुल्कों की सरहद कहते हैं
वहां सत्ता खड़ी करती है
एक बड़ी और मजबूत दीवार
उस पर पहरे लगाए जाते हैं
दीवार लांघनेवाले लोगों को
गोली मार दी जाती है।
8.
ब्रह्मांड से जब झांकता है कोई
मनुष्य की सबसे बड़ी रचना के साक्ष्य की तरह
दिखाई देती है
हमलावरों से बचने के लिए
बनाई गई सबसे बड़ी दीवार
दुनिया का सबसे बड़ा कब्रिस्तान दीवार ही है
सत्य के एक और चेहरे की तरह
जिसमेंरचा जाता कुछ है – बचता कुछ है।
संपर्क: 2 बी || न्यू कॉलोनी गुमानपुरा, कोटा (राजस्थान ) 324007 / मो. 9460939123 ambikadutt2@gmail.com
बहुत सुंदर, हर कविता दीवार के एक नए पक्ष को उजागर कर रहा है। पढकर अच्छा लगा। बिल्कुल नया