अनुवाद, नाटक और रंगमंच में विशष रुचि। अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद में असिस्टेंट प्रोफेसर।
एलिस वॉकर
1944 में अमेरिका में जन्मी एलिस वॉकर आज की एक प्रसिद्ध कवयित्री और कथाकार हैं। 1983 में इन्होंने ‘नारीवाद’ शब्द की परिल्पना प्रस्तुत की थी। इन्हें इनके मशहूर उपन्यास ‘द कलर पर्पल’ के लिए पुलित्ज़र पुरस्कार और 1983 में नेशनल बुक अवार्ड से सम्मानित किया गया है। इनकी रचनाओं में पितृसत्तात्मक व्यवस्था, आर्थिक कठिनाइयों, नस्लीय आतंकवाद तथा संस्कृति का लोक-ज्ञान निहित है।
दादी माताओं का आह्वान
हमें जीना है
अलग ढंग से
नहीं तो हम
मर जाएंगे
उसी
पुरानी रीत में
इसलिए
मैं सभी दादी माताओं को पुकारती हूँ
ग्रह के
हर कोने से
उठ खड़े होने
और अपना स्थान ग्रहण करने के लिए
नेतृत्व में
इस दुनिया के
बाहर आओ
रसोई घर से
बाहर आओ
खेतों से
बाहर आओ
ब्यूटीपार्लरों से
बाहरआओ
टेलीविजन से
आगे बढ़ो
और ग्रहण करो
उस भूमिका को
जिसके लिए
तुम्हें
सृजा गया :
मानवता का नेतृत्व करने के लिए
स्वस्थ सुखों
तथा विवेक की ओर।
मैं आह्वान करती हूँ
सभी
दादी माताओं का
धरती की
और हर उस व्यक्ति का
जिसमें
बसती है
दादी मां की
भावना
जीवन के प्रति सम्मान
और
सुरक्षा भावना
नए की
वृद्धि के लिए
तथा नेतृत्व के लिए।
वंचित नहीं करूंगी मैं
वंचित नहीं करूंगी मैं
अपने होठों को
उनकी हँसी से
वंचित नहीं करूंगी मैं
मेरे दिल को
उसके दुख से
वंचित नहीं करूंगी मैं
मेरी आंखों को
उनके आंसुओं से
वंचित नहीं करूंगी मैं
मेरे बालों को
क्रूरता से
अपनी उम्र की
यह
गहन
स्वार्थपरता है
वंचित नहीं करूंगी मैं
अपने आपको
स्वयं से।
संपर्क अनुवादक : प्रोमिला,असिस्टेंटप्रोफेसर, हिंदी विभाग,अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद-500007, तेलंगाना। मो. 8977961191