चर्चित कवयित्री। ऑल इंडिया बाल्मीकि यूथ ऑरगनाइजेशन की सचिव। अद्यतन उपन्यास ‘तुम्हें बदलना ही होगा’।

अनामिका

स्त्री है अनामिका
कोई नाम नहीं उसका
कोई धर्म नहीं उसका
रूप गुण कर्तव्य ही
उसकी पहचान
सत-असत की माप से
नापी जाती है गरिमा उसकी
सदियों से रहा है
यह मापदंड नारी का
आज भी है शायद कल भी रहे
स्त्रियाँ क्या जीवित प्राणी नहीं
क्या वे मनुष्य नहीं
फिर क्यों रहती हैं बेबस, लाचार!
सुनकर भी जागृति का संदेश
रहती हैं चुप
नहीं जानतीं जाग्रत होने का महत्व
आत्मसम्मान
अपने नाम की पहचान
अपनी गरिमा
और अस्मिता की बात
थीं वे पहले अनाम किसी की बेटी
किसी की बहन
किसी की पत्नी और
किसी की मां
उनके साथ
हर जगह था पुरुष का ही नाम
स्त्रियां थीं अनामिका
पुरुषों के नाम से पहचानी जाती थीं
अब नहीं है स्वीकार
जाग्रत हैं क्रांतिकारी स्त्रियां
नहीं हैं वे अब मिट्टी की मूरत
शोकेस की सजी गुड़िया
दुख सहतीं कमजोर अबला
नहीं रहना चाहतीं अब वे अनाम
नारियां जगा रही हैं अपनी बहनों को
पा रही हैं अपनी पहचान
जीने लगी हैं अपने नाम के साथ
वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को
दे रही हैं अपना नाम
मनुवादी संहिताओं के विरुद्ध
दे रहा है अधिकार उन्हें संविधान
पुत्रियां भी हैं पुत्र के समान
वे नहीं किसी की बंधक
नहीं किसी की दासी
नहीं किसी की संपत्ति
वे जीवित हैं
करेंगी अपने सपने साकार
अपने अधिकारों की बात करेंगी
गरजेंगी वे
जाग उठेगा आसमान
सितारों की तरह चमकेगा नाम
होगी उनकी भी अपनी धरती
अपना आसमान।