युवा कवयित्री।एक नवगीत संग्रह न बहुरे लोक के दिन

गजल

भीगी आंखें, आंतें खाली, क्या कहना है सब चंगा
दिन धूसर हैं रातें काली क्या कहना है सब चंगा

बूढ़ा बरगद, चलती आरी, देख परिंदे हैरां हैं
सदमे से फिर कांपी डाली, क्या कहना है सब चंगा

बिटिया अम्मा ताई खाला भाभी चाची दादी तक
बारी-बारी खातीं गाली क्या कहना है सब चंगा

उस गुलशन की शक्ल-ओ-सूरत के मंजर क्या खबर बनें
मसले कलियों को खुद माली क्या कहना है सब चंगा

मंदिर-मस्जिद दोनों हैरां, चंद लोग हैं शर्मिंदा
दंगाई हँस पीटें ताली, क्या कहना है सब चंगा

मिट्टी, गारा, गिट्टी, तसले, कामगार के सिर पर हैं
फिर भी रहती थाली खाली क्या कहना है सब चंगा

दहशतगर्दी के आलम में भूल ‘अना’ की सब बातें
उल्फत भूले, नफरत पाली, क्या कहना है सब चंगा।

संपर्क : द्वारा नीरज कुमार सिंह, स्टेशन रोड, गणेश नगर, शिकोहाबाद, जिलाफिरोजाबाद२८३१३५,मो.९६३९७०००८१