युवा कवयित्री।एक नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’।शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश में कार्यरत।साहित्यिक पत्रिका ‘अंतर्नाद’ का संपादन।
सुन ओ नदी री बावरी
क्यों थमी ठहरी
पाप धोए और तन भी
जब यहाँ तूने
कोख सींची हँस धरा की
दूर तक बहकर
और मरुथल भी संवारे
रेत पर चलकर
बंजरों के पग
महावर
रच गई सूने
घोलती विष सभ्यता यह
कर रही है छल
मल पचाकर भी बही है
तू यहां कल-कल
सभ्यता के प्रेत
छाती चढ़ गए दूने
झूठ संबोधन दिए हैं
खूब उच्चारे
ढोंग ढब उत्कर्ष का कर
दे दिए नारे
घोल कर पी
शर्म हमको
क्यों लगी छूने।
संपर्क : द्वारा नीरज कुमार सिंह, स्टेशन रोड, गणेश नगर, शिकोहाबाद, जिला–फिरोजाबाद–२८३१३५,मो.९६३९७०००८१