युवा कवि। कविता संग्रह ‘तलाश’ प्रकाशित। संप्रति : हिमाचल सरकार के शिक्षण संस्थान में अध्यापन।
अखबार
सुबह-सबेरे
मुंह-अंधेरे
घर के जगने से भी पहले
आंगन में फेंक जाता है कोई
सड़क पर फेंके गए लहु-लुहान पत्थर
डंडे, कट्टे, तमंचे
छातियों और दीवारों पर खाली की गईं बंदूकें
उछाली गई गाली-गलोच
और उड़ाई गई गोला-बारूद
खून में लिथड़े गंडासे
तलवारें, चीख-पुकारें, लाशें
और घायल हुईं कुछ देहें
सड़क पर बदहवास भागती एंबुलेंसें
पुलिस की गाड़ियां
आंसू गैस और आंसुओं से भरे बिलखते
नन्हे, असहाय, बेकसूर चेहरे
न जाने कौन फेंक जाता है
यहां मेरे आंगन में आकर
हर रोज़ सुबह-सबेरे
मुंह-अधेरे
फेंक जाता है कोई
या सरका देता है कोई
गेट के नीचे बची जगह से भीतर
गिरकर टूटी हुई गाड़ियों की टांगें
बाजुएं उनके तुड़े-मुड़े पांव
गाड़ियों के चश्मों की मुंतशिर किरचियां
उनके टूटे फ्रेम
सुबह-सुबह न जाने कौन करता है ये काम
चुपके से फेंक जाता है कोई
उठा कर मेरे आंगन में
रोजगार के लिए हड़ताल पर बैठे
पढ़े-लिखे नौजवान
उनपर बरसाई गईं लाठियां
छोड़े गए वाटर कैनन और आंसू गैस के गोले
शवों की तरह उठाकर गाड़ियों में डाली गईं
वाजिब मांगें, इच्छाएं
अन्याय अत्याचार के खिलाफ उठीं आवाजें
लीक होकर पैसे के पीछे भाग गए
प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र
पता नहीं कौन है
जो ये सब कर जाता है
सुबह-सबेरे
मुंह-अंधेरे
कौन होगा वह जो फेंक जाता है हर रोज
मेरे आंगन में
संसद में पटक-पटक कर मारी गईं तमाम गालियां
उछाली गईं कुर्सियां और कुर्सियों पर बैठी पगड़ियां
की गई धक्का-मुक्की
उठाए गए हाथ
जनता के लिए होने वाले काम के अलावा
वे तमाम बातें जो नेताओं को साबित कर सकें
शेर को सवा सेर
मैं सोया रहता हूँ
और मेरे आंगन में हर रोज कर जाता है
कोई यह शरारत
इससे पहले कि मैं उठ कर बुहारूं
इन तमाम गैर-जरूरी चीजों को
ये उड़कर आ जाती हैं मेरे घर के भीतर
और वहां से मेरे दिमाग में बैठ जाती हैं
इसी तरह मैंने छोड़ दिया था
टीवी पर समाचार देखना
कानों में भर ली थी रुई
और आंखें कर ली थीं बंद
लेकिन अब मेरा दिमाग हो गया है एकदम मशीन
अब मुझे डर नहीं लगता
अब मुझे दया नहीं आती
अब मैं रोता नहीं असली खून देखकर
मेरा दिमाग फटता नहीं
बड़ी से बड़ी दुखद घटना पर
बाजार ने समझा दिया मुझे
डर के आगे जीत है
और अब मैंने डर, दया, दुख, भ्रातृत्व
अपनापन जैसी
तमाम गैर-जरूरी चीजों पर पा चुका हूँ काबू
अब मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
अब मैं खुश हूँ इस रंग में
इस नई और तरक्कीपसंद दुनियां में
रहने लायक हो गया हूँ
हो सके तो मेरी थोड़ी-सी मदद करो साथी
मुझे छुओ
हिलाओ-डुलाओ मुझे
मेरे मुंह पर चांटा जड़ो
मिर्ची डालो मेरी आंखों में
शरीर में चुभाओ सूइयां या
दागो गर्म-लाल सलासे
मेरा बदन मेरी धड़कन मेरी नब्ज टटोलो
देख कर बताओ मुझे
मैं कहीं से जिंदा तो नहीं बचा हूँ
कल मुझे कोई अखबार की सुर्खी तो नहीं बनाएगा
कि फलां गांव में पाया गया
एक जिंदा-जागता आदमी
उसे गिरफ्तार करो।
साहित्यालोक बायरी, डाकघर–ददाहू, जिला– सिरमौर, हिमाचल प्रदेश-173022 मो.9418633772