वरिष्ठ कवि।अद्यतन कविता संग्रह बैंड का आखिरी वादक

गठरी

श्रम से झुकी पीठ पर गठरी लादे
वे दिखाई देते हैं रास्तों पर आते-जाते

पगडंडियों पर
फुटपाथों पर
सड़कों पर वाहनों के बीच
ढाबों पर काढ़े जैसी चाय सुड़कते हुए
रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के आगमन की प्रतीक्षा में
बस की टिकट पाने के लिए क़तार में खड़े हुए

गठरियों के बीच
ख़ुद ही गठरी की मानिंद दिखाई देते हैं वे
दिखाई देते हैं वे एटलस की तरह
गठरियों में ब्रह्मांड को अपने मज़बूत कंधों
और पीठ पर लादे

उनकी गठरियों में बंधी है जीवन की अमूल्य निधि
मैली-सी चादर और गमछे
एल्यूमिनियम की थाली और कटोरे
सूखी रोटियां, प्याज और मिर्च
बीड़ी के बंडल और माचिस

और इन सबके साथ मरुभूमि की किरकिराती रेत
आंखों में बचा हुआ पानी
चांद और सूरज
दूर तक पसरी धरती और निरभ्र आकाश
उनकी गठरियां उनकी धुरी हैं
जिसके चारों ओर घूमता है उनका मटमैला जीवन
घूमती हुई पृथ्वी नापती है दिन और रात
उनकी गठरियों में सहेजी होती है
दुःस्वप्नों से लदी नींद
जो कभी मुलायम
तो कभी खुरखुरे पंखों से सहलाती है
श्रम से थक चुकी उनकी देह

उनकी गठरियों में बंधे रहते हैं उनके दुख
जिन्हें कभी-कभार बाहर निकाल
डूब जाते हैं वे आसन्न सुख की कल्पना में

पीठ पर गठरियों को लादे
लांघ जाते हैं वे समूचा ब्रह्मांड
गिनते हुए अंतरिक्ष में बिखरे तारे।

राख

सबसे पहले
सूखी घास की तरह जले मृतक के बाल
फिर जली त्वचा
और फिर आग की लपलपाती
सैंकड़ों जीभों के द्वारा
निगला गया हड्डियों को आकार देता
देह का मांस
गीली लकड़ियों की तरह जलीं
सुलगती धुआं देतीं हड्डियां राख में बदलती हुईं
फिर जले कान
जिनसे सुना करता था मृतक भाँति-भाँति की ध्वनियां
संगीत, हास्य-विनोद, रुदन
और रोज़मर्रा के झगड़े-फ़सादों में गूंजती
कर्कश आवाजें
फिर जलीं सभी इंद्रियां और इंद्रियेतर अवयव
हीरे की तरह दमकता दृश्य-जगत
जो गुंजायमान रहता था खुली आंखों के कोटरों में
अब खो चुका था स्वप्नों की सीमा लांघ कर
किसी अनाम अंधकार में
जिसमें लोप हो चुका था जीवन का उत्सव
बची थी तो सिर्फ किस्सों-कहानियों में बार-बार
जुमलों की तरह दोहराई जाती अजर-अमर आत्मा
जो आग में रह कर भी आग से अछूती रहती थी
देहधर्म का अंतिम पड़ाव था वह
जब मृतक की सिर्फ राख उड़ती थी
जीवित लोगों की स्मृति के बीच।

संपर्क : बी४०२, गाला सेलेस्टिया, वैष्णवदेवी सर्कल के पास, सरदार पटेल रिंग रोड, अहमदाबाद३८२४८१ मो. ८२३३८०९०५३