वरिष्ठ गजलकार और लेखक। दो कविता-संग्रह, एक कहानी-संग्रह, दस  ग़ज़ल-संग्रह और सात ग़ज़ल केंद्रित आलोचना की पुस्तकें। संप्रति-स्वतंत्र लेखन।

गजलें

1.
जब घटाओं में डूब जाता है
चढ़ता सूरज भी लड़खड़ाता है

वो कहां पढ़ के देखता है तुझे
तेरी तस्वीर जो बनाता है

रोज करता है साजिशें लेकिन
खुद को हमदर्द जो बताता है

तोड़कर अपने घर की पाबंदी
कौन गैरों के घर भी जाता है

वो मुलायम-सा ढेर वादों का
जब हमें चाहता, नचाता है।

2.
कांच के खिलौनों से दिल नहीं बहलता है
मां की गोद में अक्सर इक सवाल पलता है

नींद आ ही जाती है लॉरियों के साए में
रोज इक नया सपना आंसुओं में ढलता है

टूटते मकानों की मिट्टियां बताएं क्या
किस गली के मलवे से रास्ता निकलता है

नामुराद होता है आसमां का बादल भी
उस तरफ बरसता है इस तरफ मचलता है

कुछ असर तो होगा ही आंसुओं की गर्मी का
देखना है दिल का ये मोम कब पिघलता है।

संपर्क : गुलज़ार पोखर, मुंगेर-811201 (बिहार) मो.7488542351