अमेरिका में रह रहे दोनों बेटे को पिता ने फोन किया- बेटा, माँ की तबीयत बहुत ही खराब है। जितना जल्दी हो सके आ जाओ। तुम दोनों भाइयों को मां बहुत याद कर रही है।
छोटे बेटा ने कहा- मैं तो अभी किसी कीमत पर नहीं आ सकता। बेटी का स्कूल में नामांकन कराना है। स्कूल से कब कॉल आ जाएगा मुझे मालूम नहीं। बड़े भैया से बात कर लीजिए।
उसे भी मैंने फोन से बता दिया है। उसने कहा कि कंपनी का इतना बड़ा टारगेट है कि अगर मैं आ गया तो इस बार भी प्रमोशन नहीं हो पाएगा।
कोई बात नहीं। मेरा काम तुमलोगों को जानकारी देना है। बता दिया, तुम दोनों जैसा उचित समझो।
एक माह के बाद पिता ने पुनः रोते हुए अपने दोनों बेटे को फोन किया- बेटा तुम्हारी मां इस दुनिया में नहीं रही। कम से कम अंतिम दर्शन कर लो।
दूसरे दिन सिर्फ छोटे बेटा को देखकर पिता ने पूछा- वह नहीं आया?
हां पापा, वे नहीं आ सके। बड़े भैया बोले कि मां वाले में तुम चले जाओ और पापा वाले में हम चले जाएंगे।
आदर्शनगर हसपुरा,औरंगाबाद, बिहार, पिन-824120मो.9934003500
आज का पढ़ा लिखा युवा आधुनिकता की दौड़ में इस कदर अंधा हो गया है कि नौकरी और प्रमोशन के चक्रव्यूह मेंउलझकर अपनी जन्मभूमि और जन्मदाता दोनो को भुलते जा रहे हैं। अंतिम दर्शन के लिए भी उन्हें समय नहीं है। और तो और निर्लज्जता की सीमा को पार करते वे मां बाप को भी बांट देते हैं। लानत है ऐसी शिक्षा दिक्षा पर जो बच्चों में कुसंसकार पैदा कर रहा है।
आज आपके लिए विशेष समीक्षा *साहित्यिक पत्रिका वागर्थ का जुलाई 2021 अंक।
https://katha-chakra.blogspot.com/2021/07/2021_12.html?m=1
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संवेदनशून्यता और समयाभाव की विवशता को लघुकथा में बताया गया है।
Marmik khani hai
संवेदनशील लघुकथा