आदिवासी कविता

चर्चित कवि, कहानीकार और स्तंभ लेखक।  अद्यतन काव्य संग्रह अघोषित उलगुलान

हमें चाहिए पानीदार चेहरे

मेरी उम्मीद राजधानी के ताले बंद
चमकदार चेहरों से नहीं है
मैंने देखा है उन्हें
मजदूरों के बहुत पास से गुजरते हुए
उनकी आंखों में न नमी है और
न ही उनकी कलाई की घड़ी में
समय है गरीबी पर बात करने के लिए

मैंने देखा है एक रास्ता
जो हर मौसम में निकल कर
राजधानी की तरफ जाता है
और अपना वजूद खो देता है
मैंने जाति की बात उठाने वाली
आवाज को देखा
वह भी उधर जाकर सिकुड़ती चली गई
मैंने लिंग द्वेष की खिलाफत करने वाले
स्लोगनों को भी
उसी भीड़ में खोते हुए देखा
मैंने क्रांति की उद्घोषणा करने वालों को देखा
वे अपने गिरेबान में सिमट कर रह गए
गरीबी को निचोड़ कर
बहुत पहले वहां से फेंक दिया गया है
जबकि कई रास्ते
बहुत पहले राजधानी पहुंच चुके थे
गरीबी मिटाने की बात कहते हुए
हमने देखा है हर पीढ़ी में
सूरज को अंधे कुएं में डूबते हुए
हम नहीं जाया होने दे सकते उन आवाजों को
जो किसी ढहे हुए मकान से
उठने के लिए बेचैन हैं
हमें चाहिए उम्मीद और हौसला

बहुत सारे मसले हैं एक साथ इस जीवन में
हल करने के लिए
हमें चाहिए साझा गुरुत्वाकर्षण
जो बिखरी हुई शक्तियों को खींचकर एकजुट करे
हमें चाहिए खुले हुए दरवाजे और पानीदार चेहरे।

कागज का हाशिया स्याह नहीं है

कागज का हाशिया स्याह नहीं
सफेद और चमकदार है
मुख्य पृष्ठ पर जो लिखा गया है अधूरा है वह
उससे नहीं बनी न्याय की कोई मूर्ति
हमेशा भ्रम रचा गया
उसके शब्दों के जादुई होने का

हाशिया जादुई नहीं है
लेकिन उस पर लिखे जाने वाले शब्द
महत्वपूर्ण टिप्पणी हैं कागज पर
उसके सूत्र से लिखा जा सकता है
धरती का भविष्य
तुमने जो बनाया है हाशिया
वह बुनियाद है मुख्य पृष्ठ पर लिखे गए
हर एक शब्द की
उसके बिना अधूरा है हर कागज का इतिहास।

मुठभेड़ – 1

मुठभेड़ हुई
गोलियां चलीं
महुए गिरे

आज महुआ चुनने
कोई आदिवासी नहीं आया
न ही महुए को खजूर की चटाई मिली
न ही गोबर लीपे गए उनके लिए

महुए को ट्राली में लादकर
पोस्टमार्टम घर पंहुचाया गया
महुए की देह से रस नहीं
बहुत ज्यादा लहू बह गया था।

मुठभेड़ – 2

आदिवासी महुआ चुनने जंगल पहुंचे
जंगल से महुए गायब थे
उनसे कहा गया कि
महुए को जंगल में नहीं
बाजार में होना चाहिए

आदिवासी महुआ खोजने बाजार गए
उन्होंने देखा कई महुए गिरफ्तार हुए हैं
जो गायब हुए थे

अब महुए गिरेंगे
कोर्ट कचहरी और जेल में।

मुठभेड़ – 3

जंगल में नहीं थी कोई सड़क
जंगल में केवल पगडंडियां थीं

मुठभेड़ तेज होने लगी और
बाजार के लोगों के लिए
रास्ते खुलते गए

धीरे-धीरे पगडंडियां
इस मुठभेड़ में मारी गईं।

मुठभेड़ – 4

एक भाषा होती थी
जो दिन को दिन और
रात को रात कहती थी

वह भाषा फूलों को पहचानती थी
और कांटों को जानती थी
उस भाषा के गीत थे
उस भाषा से खुलती थी
एक अलग दुनिया
मुठभेड़ में वह भाषा मारी गई

भाषाविदों के परामर्श के बिना
उस भाषा को प्रतिबंधित कर दिया गया था।

मुठभेड़ – 5

दो पक्षों की भिड़ंत को
मुठभेड़ कहते हैं
किसी बुजुर्ग ने बताया

चिड़ियां हैरान थीं
दो पक्षों की भिड़ंत के बाद
एक पक्ष सम्मानित किया जा रहा था

यह देखकर चिड़ियां दुखी हुईं
और वहाँ से उड़ चलीं।