कवयित्री, कहानीकार और सामाजिक कार्यकर्ता।

 

हँसी

कड़कती ठंड है
पुरुष काम से लौट आए हैं
वे अलाव के चारों तरफ जमा हैं
दुनिया भर की बातों पर ठहाके निकल रहे हैं
पड़ोस की महिला सुन रही हैं ठहाकों को
वे चुप हैं
वे कहां हैं
दिखाई नहीं देतीं
पर, तुम समझ सकते हो कि
वे कहां होंगी
चूल्हे के पास
बर्तन साफ करती
बिस्तर लगाती
बच्चों को रजाई ओढ़ाती
तुम कहते हो
लड़कियां पढ़ रही हैं
महिलाएं काम पर जा रही हैं
पर वे अपनी हँसी की गठरी कब खोलेंगी
मैं सुनना चाहती हूँ उनकी हँसी
अलाव के चारों तरफ
छन्न-सी बिखरती उनकी हँसी।

संपर्क : 108, रामनगरिया जेडीए स्कीम, एसकेआईटी कॉलेज के पास, जगतपुरा, जयपुर302017 मो.7742191212