युवा कवयित्री। कविता संग्रह ओ रंगरेज’, ‘वर्जित इच्छाओं की सड़कऔर आंचलिक विवाह गीतों का संकलन मड़वा की छाँव मेंप्रकाशित। संप्रति : स्वतंत्र लेखन।

उतना ही दूर होना चाहती हूँ

तुमसे मिलने के बाद
उतना ही
दूर होना चाहती हूँ
जितना एक फूल को खिलने के लिए
मुट्ठी भर मिट्टी चाहिए

उतना ही दूर होना
जितना कि आसमान से गिरी
बूंदों को मिल सके जगह
समाने के लिए पृथ्वी में

तुम्हारे होंठों का हल्का सा चुंबन लेकर
उतना ही दूर होना चाहती हूँ
जितना कि सीप में
मोती बनने की जगह बची रहे

तुम्हारी आंखों के जल को
हमेशा बचाए रखना चाहती हूँ
ताकि जब धधकता हो लावा मन में
तो उसमें स्नान कर सकूं

तुमसे गले मिलने के बाद
उतना ही दूर होना चाहती हूँ
जितना तुम्हारी कमीज के रेशे
छूते हों तुम्हारी देह को
कस कर जकड़ने से प्रेम मरने लगता है
इसलिए उतना ही
दूर रहना चाहती हूँ
जितना कि उर्वरता बची रहे।

कविताएं वहां मिलें

मेरी कविताएं वहां मिलें
जहां मुश्किलों को पार कर
बहती हो कोई नदी

मेरी कविताएं वहां मिलें
जहां बेखौफ़ आकाश में उड़ता कोई परिंदा

मेरी कविताएं वहां मिलें
जहां कोई निकाल रहा हो
कांटे अपने तलवों से

मेरी कविताओं से
कोई छाया मेरे चेहरे पर मिले
जहां संघर्ष कर रहे हो मेरे पांव

मेरी कविता
किसी प्रेमी से
वहां मिले जब वह ले रहा हो निश्छल चुंबन।

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