युवा कवयित्री। कविता संग्रह ‘ओ रंगरेज’, ‘वर्जित इच्छाओं की सड़क’ और आंचलिक विवाह गीतों का संकलन ‘मड़वा की छाँव में’ प्रकाशित। संप्रति : स्वतंत्र लेखन।
तुमने कहा
तुमने कहा बैठो
वह बैठ गई
तुमने कहा खड़ी हो जाओ
वह खड़ी हो गई
तुमने कहा उतना ही मुंह खोलो
जितना मैं कहूं
उतनी ही दूर जाओ जितनी दूर तक
मैंने पट्टी बांधी है
तुमने कहा सपने में क्या देखती हो
अभी क्या सोच रही हो
बताओ मुझे
उतना ही मुस्कुराओ
जितना मैं कहूं
वह खड़ी हो गई, वह बैठ गई
उसने अपने सपने बता दिए
फिर एक दिन
वह वह नहीं रही!
बच जाए अगर कुछ
बच जाए अगर कुछ
इस निष्ठुर समय में तो
बचे रहने देना चाहिए
कहीं कोई आग
कहीं कोई चिंगारी
जीवन में
बचे रहने की संभावना ही
बचाती है हमें
जरूरत भर नमक
चुटकी भर चीनी
बचा लेनी चाहिए जीवन में
बचा रहे अगर कहीं कोई सुर
कहीं कोई ताल
तो मरने से बचा ले जाती है वह हमें
होंठ और पैरों की लय का
बचे रहना बहुत जरूरी है
सबसे जरूरी है इस निष्ठुर समय में
बचे रहना सपनों का।
संपर्क :सरस्वती विहार कॉलोनी, भरुहना, जिला–मीरजापुर–२३१००१ (उत्तर प्रदेश), मो.९४५११८५१३६
उत्तम