प्रेम रंजन अनिमेष, सुपरिचित कवि
अद्यतन कविता संग्रह ‘बिन मुँडेर की छत’। मुंबई में बैंक अधिकारी।
1- सर्वांगिनी
एक लुगरी वाली
लुगाई
आधा धोती
आधा सुखाती
आधा ओढ़ती
आधा बिछाती
आधी ढँकी
आधी खुली
बादलों के आरपार
सूरज चाँद झलकाती
आधा संसार कहाती
पर सच तो यह सच में पूरा
इसको वही बनाती…।
2- अनुत्तरित
एक ने छल किया
दूसरे ने शाप दे दिया
(वह दूसरा जो दरअसल था पहला )
चरण रज से तीसरे ने उद्धार का श्रेय लिया
इनके बीच जो तुमने जिया
वह क्या जीवन था अहिल्या…?
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