दो कविता संग्रह ‘यह मौसम पतंगबाज़ी का नहीं है’ तथा ‘अचानक कबीर’ प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘रेखांकन’ का संपादन।
ख़बरें, बच्चे और बारिश
बच्चों की ज़िद के आगे
हारी हुई एक जवान होती लड़की
जिसे बर्तन साफ करने थे
झाड़ू-बुहारू करना था
मां के सिर में तेल डालना था
पिता के कपड़े धोने थे
दोपहर के भोजन की तैयारी करनी थी
और
पढ़ना भी था
इन सारे जरूरी कामों को दरकिनार करते हुए
वह बनाने जुट गई
अख़बारी कागज की कश्ती
जब कश्ती बनकर तैयार हुई
तो बच्चे झूम उठे और
उसके हाथ से झपटकर ले भागे कश्ती
उतावले बच्चों ने ख़बरों सहित कश्ती को
पानी से लबालब भरे गड्ढ़े में छोड़ दिया
बारिश तेज़ थी
कश्ती में भर गया पानी
फिर भी कश्ती डूबी नहीं
डगमगाती रही
बच्चे बारिश में भीगते हुए
धमाचौकड़ी मचा रहे थे
लड़की भी दूर से इन्हें देखते हुए
मन ही मन भीग रही थी
सभी भीग रहे थे
ख़़बरें भी बच्चे भी बारिश भी..!
संपर्क :मिल्लत कॉलोनी, वासेपुर, धनबाद–826001 (झारखंड) मो.9798355202
गहरी संवेदना की कविता। वाहह!
बहुत अच्छा लगा।
बहुत अच्छा लगा