डेनमार्क की प्रवासी कथाकार। चार उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित। एक डेनिश -हिंदी अनुवाद भी। अद्यतन उपन्यास ‘कैराली मसाज पार्लर’।

ईशान और मैं अपने छात्र जीवन के दौरान यूबीसी – यूनिवर्सिटी ऑफ़ ब्रिटिश कोलम्बिया, वैंकूवर में मिले थे, मगर हमारी असली डेटिंग टोरंटो आकर शुरू हुई। रोजगार की संभावनाएं हमें वैंकूवर जैसे शांत कनाडियन शहर से हलचल भरे टोरंटो शहर ले आई थी। पहले ईशान टोरंटो पहुंचा, छह महीने बाद मैं।

जैसन यूएटी – यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो का पढ़ा था और ईशान की कंपनी में जॉब करता था। ईशान से उसकी दोस्ती पहले दिन ही शुरू हो गई थी। ईशान के जरिए उसकी मुलाकात मुझसे हुई और जल्द ही वह मेरा जिगरी दोस्त बन गया। टोरंटो में आरंभिक दिन मेरे लिए बेहद चुनौतीपूर्ण थे। जैसन ने मेरी बहुत मदद की। मैं एक कंपनी में तीन महीने की इंटर्नशिप पर वैंकूवर से टोरंटो आई थी, जब वह खत्म हो गई, तो मैं जॉबलेस हो गई।  जैसन ने मेरे सीवी का फोर्मेट पुख्ता करने में, प्रोफेशनल सोशल नेटवर्क साइट, लिंकेडीन पर पेशेवर संबंधों को जोड़ने और मजबूत करने में मेरी बहुत मदद की। उसी के जरिए मुझे नया जॉब मिला।

हम दोनों के शौक बहुत मिलते थे। हम दोनों को खाने का शौक था, किताबें पढ़ने का, पिक्चरें देखने का। हम एक साथ बैठ कर कई तरह की बातें करते, क्यूट लड़कों की भी। जैसन मूलतः चाईनीज था, पला-बड़ा कनाडा में था। उसका ऑफिसियल नाम जिंग गुआन था, मगर उसने अपने यार-दोस्तों के लिए अपना नाम जैसन कर दिया था। उसकी छोटी बहन कनाडा में ही पैदा हुई थी। उसके पेरेंट्स ने कनाडा आकर ईसाइयत अपना ली थी। वे बिजनेसमैन थे, साधन-संपन्न लोग, बहुत धनाढ्य थे, वैंकूवर में एक महल जैसे घर में रहते थे।

सब कुछ जैसन के परिवार में बहुत अच्छा था, मगर उसकी सेक्सुअलिटी को उसके पेरेंट्स बिलकुल स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। वह उनके लिए एक बेहद दुखद पहलू था। उससे कहते कि वह स्ट्रेट हो जाए। वे उसे जब तब कुछ मंत्र जपने को कहते, केक में कुछ मिलाकर उसे खाने को भेजते। उसकी छोटी बहन से कहते कि उसे अपनी सहेलियों से मिला। उसे लड़कियों की तरफ धकेल। मेरी और जैसन की घनिष्ठता देख उसकी मां मुझसे विनती करने लगी, ‘जिंग पर तुम्हारा बहुत प्रभाव है। वह तुम्हें बहुत मानता है। उसकी दोस्ती लड़कियों से करवाओ।’

‘जिंग की काफी लड़कियों से दोस्ती है। मगर वह उन्हें उस रूप से नहीं देखता – मेरा मतलब रोमांटिक नजरों से नहीं देखता’, मैं जैसन की मां से झिझकते हुए बोली।

‘अरे भई, उसके मन में लड़कियों के प्रति रोमांस भराओ। यह तो दोस्तों का काम है…। हम उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, वह बस स्ट्रेट हो जाए’, उसकी मां बोली, और उनका कंठ रुद्ध हो गया।

चौदह-पंद्रह साल से जैसन ने महसूस करना शुरू कर दिया था कि उसका रुझान लड़कों की तरफ होता है। जब वह सत्रह साल का था, उसने यह बात अपनी बहन से शेयर की। बहन के जरिए उसके माता-पिता को पता चला। वे हैरान, तनावग्रस्त हो गए थे। जब भी वह घर जाता, घर में कोहराम मच जाता। उसके माता-पिता उसे अपने चर्च के पादरी के पास ले गए। पादरी ने उसे यौन उत्पीड़ित किया। वह किसी तरह वहां से भाग निकला। उसने अपने माता-पिता को पादरी की हरकतें बताईं तो वे उल्टा उसे ही कोसने लगे कि वह फालतू में पादरी को बदनाम कर रहा है। वह अपने माता-पिता से बुरी तरह चिढ़ने लगा और उनसे मिलने से भी कतराने लगा। उसके पेरेंट्स ने भी उसे सुना दिया : ऐसी औलाद से बेहतर तो बेऔलाद होना है। वह उनके लिए एक अभिशाप है। अगर उसे उनके साथ रिश्ते रखने हैं तो वह स्ट्रेट हो जाए। किसी लड़की से दोस्ती कर अपना संबंध बनाए, अपना घर बसाए, वरना जाए भाड़ में। परिवार में एक उसकी छोटी बहन से ही उसके संबंध ठीक-ठाक थे।

हम जैसन को समझाते कि सिर्फ उसके माता-पिता का ही फर्ज नहीं है, उसे समझना और सहयोग देना। उसे भी अपने माता-पिता का परिप्रेक्ष्य और भावनाओं को गहराई से समझने की आवश्यकता है। माता-पिता की अपने बच्चों से कुछ उम्मीदें और अपेक्षाएं होती हैं। विशेषकर एशियन माता-पिता को अपने समलैंगिक, उभयलिंगी और ट्रांसजेंडर बच्चों को स्वीकार करना बहुत मुश्किल होता है।   

ऐसा नहीं था कि जैसन ने स्ट्रेट बनने की कोशिश नहीं की। उसने लड़कियों के साथ उठना-बैठना शुरू किया था, उनके साथ डेटिंग की शुरुआत की। लड़कियों के साथ बैठ कर उसने प्रोनोग्राफ़ी फ़िल्में तक भी देखीं, मगर वह लड़कियों के प्रति शारीरिक, भावनात्मक आकर्षण या कामेच्छा जाग्रत नहीं कर पाया। लड़के ही उसे सेक्शुअली भाते थे। तीन लड़कों से उसने डेटिंग की थी परंतु कुछ अरसे से वह बिलकुल अकेला था। मैं और ईशान ही उसके निकटतम मित्र थे। वह मुझसे कहता, ‘अनन्या, तुम और ईशान मेरी मनःस्थिति और मेरी पारिवारिक मानसिकता को भलीभांति समझते हो।’ 

‘हम पृथ्वी के एक ही गोलार्ध से हैं, भई। हमारी एशियन जड़ें हमें मानसिक, भावनात्मक, और सांस्कृतिक स्तर पर जोड़ती हैं’, मैं उससे बोली।

कितने दोस्त बने और बिछुड़े, जैसन से हमारी दोस्ती टिकी रही। कोरोना महामारी हमें और करीब ले आई थी। जब सभी से मिलना-जुलना बंद था, हम सिर्फ चार लोग परस्पर नियमित रूप से मिलते। ईशान, मैं, जैसन और संजोत। संजोत मेरे और ईशान के साथ यूबीसी में ही पढ़ी थी और अब टोरंटो में जॉब कर रही थी। वह भी हमारी पक्की दोस्त बन गई थी। हम सभी मिल कर कभी हाईकिंग पर जाते, कभी केमपिंग के लिए। कभी, रात-बिरात, यूं ही विशाल ओंटारियो झील के किनारे टहलने के लिए निकल पड़ते। एक साथ मिलकर खाना पकाते, पिकनिक करते।

ईशान, संजोत और मुझमें में यह समानता थी कि हम तीनों का जन्मस्थान भारत था, जब हम पांच साल के थे हमारे माता-पिता भारत छोड़ अन्य देशों में बस गए। जब हम अठारह के हुए, हम तीनों कनाडा पढ़ने के लिए आ गए, फिर यहीं नौकरी करने लगे। हम तीनों अलग-अलग महाद्वीपों से कनाडा पढ़ने आए थे। मैं डेनमार्क-यूरोप से, ईशान थाईलैंड-एशिया से, और संजोत केन्या- अफ्रीका से। जैसन की कहानी कुछ अलग थी। वह पांच साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ चीन से सीधे कनाडा विस्थापित हुआ था। वह बचपन से यहां रह रहा था। उसकी जानकारी और नेटवर्किंग इस शहर और देश के संदर्भ में हमसे कहीं अधिक थी। उसने हमें कई नए पथों और स्थानों से अवगत करवाया, कई लोगों से मिलवाया।  

महामारी के दौरान जैसन टोरंटो डाउनटाउन में अवस्थित मेरे एक बेडरूम के कोंडो अपार्टमेन्ट में रोज ही आ धमकता, अपनी बिल्ली मायलो के साथ। कभी वह कुछ पका कर ले आता, नहीं तो फ्रिज खोल कर जो कुछ उसे खाने को मिलता वह खा लेता। हम एक साथ मिल कर क्लीनिंग और कुकिंग भी करते। रात में लीविंगरूम में सोफे पर वह सो जाता। उसने अपना स्लीपिंग बैग भी अपने घर से लाकर मेरे घर में रख दिया था। कभी-कभी वह अपने स्लीपिंग बैग पर सोता, उसकी बिल्ली उसके साथ। मुझे मायलो से भी बहुत आत्मीयता हो गई थी।

जैसन के साथ मेरी इस कदर पनपती दोस्ती ने कइयों का ध्यान हमारी तरफ खींचा। हमारे घर वाले हमारी प्रगाढ़ता से पूरी तरह वाकिफ हो गए थे। मेरी मम्मी से जब भी मेरी वीडियो कॉल होती तो उनकी जैसन से भी हाय-हेल्लो हो जाती। मैं उसकी बिल्ली को मां को स्क्रीन पर दिखाती। मेरी मां घबराते हुए फोन पर मुझसे हिंदी में बोली, ‘तू इस समलैंगिक से इतना क्यों हिल-मिल रही है? हर समय यह तेरे घर ही पड़ा रहता है। कहीं तेरे पर भी इसका कोई असर न पड़ जाए!’

‘माँ!’ मैंने अपनी मां को डपटा। ‘वह मेरा सखा है।’

‘सखापन की भी कुछ सीमाएं होती हैं, बेटा! इतनी घिचपिच ठीक नहीं’, मेरी मां बोली। 

एक बार बिल्डिंग के रिसेप्सन पर बैठने वाला व्यक्ति, फिलिप मुझसे पूछने लगा, ‘तुम ईशान के साथ कोई चीटिंग तो नहीं कर रही? उसे मालूम है कि जैसन तुम्हारे फ्लैट में रात में सोता है?’

‘हां’, मैं बोली।

‘उसे कोई आपत्ति नहीं?’

‘जैसन जितना मेरा दोस्त है, उतना ही ईशान का। ईशान तीन लड़कों के साथ साझे में रहता है तो वहां वह कम जाता है। मैं यहां अकेले रहती हूँ तो मेरे पास रोज आ जाता है।’

मेरी पड़ोसन जूलिया बोली, ‘ओह माय गॉड, तुम एक साथ दो-दो लड़कों के साथ डेटिंग कर रही हो?’

मैं हँस पड़ी, बोली, ‘जैसन मेरा भाई है।’

‘भाई!’

‘नहीं, बहन है।’ मैंने चुहल की।

‘बहन?’ वह चकरा गई।

जैसन अपने पहनावे, साज-सज्जा, हावभाव, और चलने-फिरने से पूरा पुरुष लगता था। उसकी हरकतों में नारीवादी कोई लक्षण नहीं थे। मगर उसने हमें बताया था कि अपने गे रिलेशनशिप में वह औरत का रोल अदा करता है। हम जैसन के साथ दो-तीन दफा उसके गे क्लब भी गए थे, जहां सिर्फ लड़के ही लड़के, विभिन्न राष्ट्रीयता वाले और हर रंगरूप और उम्र के। मेरे और ईशान के अनुभव बिलकुल अलग थे। मुझे गे क्लब अपने लिए एक बहुत सुरक्षित स्थान लगा। सब अपने आप में मस्त! पियो और डांस करो। कोई तुम पर बुरी नजर नहीं रख रहा। कोई तुम्हारे साथ डांस करने के लिए लपक नहीं रहा, कोई अभद्र व्यवहार नहीं। ईशान को यह क्लब अपने लिए सुरक्षित नहीं लगा। उसे गे समझ कर कितने ही लड़के उसकी तरफ बढ़े। उसे मादक नजरों से देखा। ईशान को बार-बार उन लड़कों को बताना पड़ा, वह गे नहीं स्ट्रेट है।

गे शो हमारे लिए एक नया और अजीबोगरीब अनुभव था। लड़कों के समूह पैंट उतारे हुए, बढ़िया, रंग-बिरंगे अंडरवियर पहने बजते संगीत पर थिरकते हुए दर्शकों के सामने अपने कूल्हे मटकाते। सबसे तेज और कलात्मक कूल्हे की गति करने वाले को इनाम मिलता। हम इस कूल्हे डांस को देख कर झेंपे, असहज हुए, और हमें यह साहसी और मजेदार भी लगा।

जैसन मेरी और ईशान की प्रेमयात्रा का भी साक्षी रहा। उसने हमसे अधिक दुनिया देखी थी, उसके सलाह-मशविरा हमारे बहुत काम आते। हमें वह एक भाई जैसा लगता। जब ईशान ने यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के हरे-भरे क्वीन पार्क में हीरे की अंगूठी के साथ मुझे प्रपोज किया तो फोटोग्राफर वह ही बना। उस दिन उसने मेरे कोंडो अपार्टमेन्ट को गुब्बारों और रिबनों से सजाया। यूनिवर्सिटी के पार्क से हम अपने घर आए, जैसन ने केक और शैम्पेन का इंतजाम किया हुआ था, फिर हम तीनों खाना खाने एक रेस्टोरेंट गए।

हमारे घर वाले मेरे और ईशान के संबंधों के बारे में शुरू से ही जानते थे। हमने उनसे कुछ भी नहीं छुपाया था। अपने संबंधों के हर चरण की उन्हें जानकारी दी थी। हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, नौकरियों पर हम लग चुके थे। ईशान मुझे प्रपोज कर चुका था। अब वह मेरा बॉयफ्रेंड नहीं, फियांसे कहलाता था। हमारे परिवारों से हम पर शादी का जोर पड़ने लगा, और उचित समय देख कर हमारी शादी की तारीख पक्की हो गई – 30 नवंबर’ 2020। यह तय किया गया कि मेरे मूलनगर देहरादून में शादी होगी। बारात ईशान के मूलनगर लखनऊ से देहरादून आएगी। शादी की सारी बुकिंग हो गई- बैंड, बस, कॉकटेल हॉल, वेडिंग हॉल, मेहमानों के लिए होटल। मेरे और ईशान के कई गोरे मित्र भी हमारी शादी में इंडिया जाने को लालायित थे कि इंडियन वेडिंग देखेंगे, नए देश और नई संस्कृति से रूबरू होंगे। सबसे ज्यादा उत्सुक जैसन था। वे भारत के लिए वीजा लेने की कार्यवाही कर ही रहे थे कि कोरोना का लॉकडाउन शुरू हो गया। सब कुछ ठहर गया, हम भी ठहर गए।

पहले तो हमें लगा कि तीस नवंबर अभी बहुत दूर है, तब तक इस महामारी का प्रकोप खत्म हो जाएगा, मगर महामारी बढ़ती ही गई और सभी देशों में लॉकडाउन के प्रतिबंध कड़े होते गए।  भारत में धूमधाम से होने वाली हमारी शादी कैंसिल कर दी गई, सारी बुकिंग्स रद्द। मगर मैं और ईशान अपने रिश्तों को वैध बनाना चाहते थे। हमारे घर वालों ने भी कहा कि नक्षत्रों को देख कर तय हुई शादी की शुभतिथि – तीस नवम्बर टालें नहीं। हम कनाडा में कोर्ट मैरिज कर लें। हमने टोरंटो कोर्ट में अपनी शादी के लिए अर्जी डाल दी। वहां से यथोचित दस्तावेज आ गए। अब एक मैरिज ऑफीसियेंत (विवाह अधिकारी) को खोजना था।

ईशान की मां बोली, ‘कनाडा की धरती में तो अपने तमाम भारतीय मंदिर हैं। किसी मंदिर में जाओ शादी के लिए। अपने किसी देशी पंडित से अपनी शादी करवाओ।’  

हमने टोरंटो नगर में स्थित भारतीय मंदिरों की टोह लेनी शुरू की तो पता चला कि कनाडा में अधिकांश मंदिरों के पुजारी कानूनी विवाह अधिकारी भी होते हैं। सो तीस नवंबर को मिसिसॉगा, ओंटारियो में स्थित भारतीय मंदिर – हिंदू हेरिटेज सेंटर हमारे विवाह समारोह का स्थल बना। हमारी शादी की तैयारी में जैसन लगातार हमारे साथ बना रहा। अपनी कार से हमें शादी की शॉपिंग के लिए इधर-उधर ले जाता रहा।

मेरे और ईशान के अतिरिक्त चार जनों की उपस्थिति रही। दो मंदिर के पुजारी और दो हमारे अहम मित्र- जैसन और संजोत। सभी मास्क पहने हुए। पंडित जी ने जयमाल करवाई और कुछ हिंदू विवाह संस्कार किए, बीस मिनट की पूजा हुई। पूजा संपन्न करते हुए वे बोले, ‘कन्यादान और फेरे इंडिया में करवाना।’ फिर पंडित जी ने कोर्ट के दस्तावेज पर हमसे सिग्नेचर करवाए। जैसन और संजोत हमारी शादी के गवाह बने। उन्होंने ही हमारा विवाह समारोह जूम पर हमारे सभी परिजनों को दिखाया। हमारे माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, भाई-बहन, रिश्तेदारों और दोस्तों ने जूम पर हमारी शादी वर्चुएल अटेंड की। विभिन्न देशों से बच्चे-बड़े मिला कर डेढ़ सौ लोग जूम पर जुड़े। हमारी शादी को जूम शादी करार दिया। भारत और टोरंटो के समय में साढ़े दस घंटे का अंतर था। भारत में आधी रात हो चुकी थी, फिर भी हमारे बुजुर्ग नाना-नानी, दादा-दादी जूम पर जुड़े हमारी शादी होते देख रहे थे। हम भावुक हो गए। हमें लगा कि लैपटॉप की स्क्रीन से उन सभी का प्यार और वात्सल्य किरणों के रूप में बिखर कर हमारे पास पहुंच रहा है। वे फूल बरसा रहे थे, हमें आशीर्वाद दे रहे थे। हमने भी उन सभी को हाथ जोड़े। सभी लोग जैसन के शुक्रगुजार थे, उसके कायल थे, उसी की वजह से यह संभव हो पाया था।                   

मैं और ईशान शादीशुदा हो गए। हम एक साथ रहने लगे। जैसन का मेरे पास आना पूर्ववत बना रहा। मैं और ईशान बेडरूम में, वह लिविंगरूम में सोफे पर सोता। जब कभी उसे सोफे पर असहज लगता तो वह नीचे जमीन पर अपना स्लीपिंग बैग बिछा कर सो जाता, मायलो उसके साथ।

हम चाहते थे कि जैसन को भी कोई हमसफर मिल जाए। वह अकेला न रहे। कभी-कभी वह हमें बहुत तन्हा लगता। उसका परिचय और संपर्क बहुतों से था, मगर हमारे आलावा उसका कोई खास मित्र नहीं था। बस अपनी बिल्ली को ही दुलारता रहता। उसी ने हमें बताया था कि समलिंगी देर से अपनी जिंदगी में सैटल होते हैं। बीस-बाईस साल तक तो उन्हें अपने को समझने और स्वीकार करने में लगते हैं कि वे हैं क्या। उन्हें समाज की भी स्वीकृति नहीं रहती। जब तक वे अपने को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं, समाज का सामना करने का हौसला पैदा करते हैं, काफी समय निकल जाता है।   

वह लड़कों के मामले में बहुत चूजी भी था। ऐसे-वैसे लड़के उसे पसंद ही नहीं आते थे। उसे पढ़ा-लिखा, सुंदर-सलोना, प्रतिष्ठित घर का एक गोरा लड़का चाहिए था। हम उसे समझाते, ‘तुझे एक लड़के में सब कुछ नहीं मिलेगा। कहीं न कहीं समझौता करना पड़ेगा।’

हम इधर-उधर अपने अन्य मित्रों को जैसन के लिए कोई लड़का सुझाने को कहते। गे वेबसाइट पर भी उसके लिए लड़के खोजते। संयोग से मेरी मां को मैच-मेकिंग का शौक था। पेशे से वह अध्यापिका थी। मगर उनके कई शौकों में लोगों को रिश्ते सुझाने का शौक भी शामिल था। कितने ही युवाओं को वह रिश्ते सुझा चुकी थी, उनमें से कइयों की शादी भी हो चुकी थी। मैंने अपनी मां से जैसन के लिए कोई लड़का सुझाने को कहा। मेरी माँ तुनक कर बोली, ‘चल हट! मैं लड़कों को लड़कियां और लड़कियों को लड़के ही सुझा सकती हूँ। गे लोगों को जीवनसाथी सुझाना मेरे वश की बात नहीं है, यह मेरा दायरा नहीं।’

मैं बोली, ‘अपनी इस विशेषज्ञता को जरा और विकसित करो। हमारे समाज में गे लोग भी हैं। उन्हें भी हमसफर चाहिए।’

पहले तो मेरी मां ने मेरी बात को कोई तवज्जो नहीं दिया। वह आनाकानी करती रही और मैं उनसे आग्रह करती रही, ‘जैसन बहुत होनहार और अच्छा लड़का है। उसे कोई हमसफर मिलना चाहिए। दुर्भाग्य से उसे गे डेटिंगसाइट और गे क्लब से कोई नहीं मिल पा रहा है। आप बहुत रिसोर्सफुल हो। अगर आप चाहो तो उसके लिए कोई लड़का ढूंढ़ सकती हो।’  

कुछ सोचते हुए मेरी मां बोली, ‘ठीक है। तू उसका बायोडेटा मुझे फॉरवर्ड कर। मैं देखती हूँ…।’   

फिर, एक दिन मेरी मां ने मुझे बताया कि उनके स्कूल में एक नया फिजिक्स टीचर आया है। वह गे है और अपने पार्टनर की वजह से इंग्लैंड से डेनमार्क आया है। एक दिन मम्मी ने यूँ ही उससे उसकी पार्टनर के बारे में पूछ लिया: ‘वह यहां क्या करती है?’

उसने मम्मी को करेक्ट किया, ‘करती नहीं, करता है।’

‘जो कुछ भी हो, वह मेरा एक अच्छा कूलीग बन गया है’, मम्मी एक निश्वास छोड़ते हुए बोली। ‘हम प्रोफेशनल बातों के आलावा पर्सनल बातें भी आपस में शेयर कर लिया करते हैं। मैंने उसे जैसन के बारे में बताया और उसका बायोडेटा उसे फॉरवर्ड कर दिया है।’

माँ ने जैसन को अपने स्कूल के नए फिजिक्स टीचर, स्टीवन से कनेक्ट करवा दिया। जैसन का नेटवर्क और विकसित हुआ, वह एक दूसरी दुनिया से जुड़ गया। दो महीने बाद स्टीवन के जरिये उसे इंग्लैंड में अपने जैसा एक गे हमसफर मिल गया – जैक। जैसन की जैक से फेसटाइम और व्हाट्सएप पर खूब चैटिंग हुई। एक दूसरे को समझने-बूझने के लिए उन्होंने परस्पर अपने सारे सोशल मीडिया -फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, लिंकेडीन के लिंक शेयर किए और उनकी रिमोट डेटिंग शुरू हो गई। दोनों हमउम्र थे – उनतीस साल के। जैसन हमें सारे अपडेट देता, हम आश्चर्य से भर जाते कि कैसे वैश्वीकरण लोगों को सीमाओं के पार जोड़ रहा है! कैसे उनकी घनिष्ठता इतनी तीव्रता से आगे बढ़ती जा रही है! जिन बातों को होना होता है, वे फटाफट हो जाती हैं। हमारे देखते ही देखते दोनों रिलेशनशिप में आ गए। जैक जैसन से मिलने टोरंटो आया। हम भी जैक से मिले।

‘मिलो अनन्या और ईशान से!’ जैसन जैक से बोला।

जैक बोला, ‘मैं अच्छे से जानता हूँ, आप दोनों इसका परिवार हो।’

मैं भावुक होकर बोली, ‘जैसन यहां कनाडा में हमारा परिवार है।’

हमें जैक सादगीपूर्ण, गंभीर युवक लगा।

जैसन और जैक ने एक साथ कनाडा के नगरों – ओटावा, क्यूबेक और मॉन्ट्रियल की सैर की। अपने संबंधों पर बात की। काफी विचार-विमर्श करके उन्होंने तय किया कि वे अपनी साझी जिंदगी इंग्लैंड में बसाएंगे। एक कनाडियन नागरिक होने के नाते जैसन को इंग्लैंड में दो सालों तक रहने और नौकरी करने की सरकारी अनुमति थी। उसे वीजा वगैरह की कार्यवाही से नहीं गुजरना था। जैसन वहां नौकरी के लिए प्रयत्न करने लगा, साथ ही उसने वहां की एक यूनिवर्सिटी में मास्टर कोर्स में दाखिला ले लिया।

उसके अंतिम दिन टोरंटो में बहुत व्यस्तता भरे थे। टोरंटो की अपने सात वर्षों की जिंदगी को समेट कर हमेशा के लिए लंदन जाना आसान नहीं था। वह रोमांचित था तो थोड़ा डरा हुआ भी था। हम उसे आश्वासन देते : ‘देख, बिना जोखिम उठाए न हार मिलती है, न जीत! तू यह जिंदगी अवश्य आजमा। जैक अच्छा लड़का है, तेरी उससे उसकी जरूर जमेगी। और, अगर नहीं बनी तो इंग्लैंड से मास्टर कोर्स करके, इंग्लैंड की एक डिग्री लेकर, और यूरोप घूमघाम कर वापस टोरंटो आ जाना।’

ईशान से चुटकी ली, ‘हां, यूरोपीय रोमांच का लुत्फ उठाना – लंदन में बर्मिंघम पैलेस, लंदन आई, टेम्स नदी देखना। पेरिस में एंफिल टावर, इटली में वेनिश नहरें, स्विजरलैंड में बर्फीली पहाड़ियों पर स्केटिंग और हॉलैंड में ट्यूलिप गार्डन की महकती खुशबू…।’

‘और हमें अपने सैर की फोटो व्हाट्सएप करते रहना’, मैं बोली।

वह हँसने लगा – एक निश्छल हँसी।

उसके लंदन जाने की तैयारी में हमने उसे अपना पूरा सहयोग दिया। उसने अपना बहुत सारा सामान हमें दान किया, अपनी बिल्ली भी हमें सौंप दी। आखिर के तीन-चार दिन वह हमारे साथ ही हमारे फ्लैट में रहा। उसके लंदन प्रस्थान वाले दिन मैं और ईशान तड़के सुबह उठकर उसे एयरपोर्ट छोड़ने गए। चैक-इन करने तक हम उसके साथ बने रहे। सिक्योरिटी पर उससे बिछुड़ने का पल आ गया।

हमें बेहद दुख हो रहा था, लग रहा था टोरंटो से हमारा एक बहुत बड़ा सहारा जा रहा है। मगर फिर भी हम बहुत खुश थे कि उसे एक हमसफर मिल गया। एक नए परिवेश में वह एक नई जिंदगी शुरू करेगा। कुछ नए उद्यम और नए प्रयास करेगा। हमारी गहरी मित्रता होने के बावजूद वह यहां ऊब चुका था, उसे एक बदलाव चाहिए था।

उसने कई बार हमें उसके पास इंग्लैंड आने को कहा। हम भी उससे बोले, ‘टोरंटो में भी उसका एक घर है। वह जब चाहे हमारे पास आकर रह सकता है।’

वह हमारे गले लग गया और कई पलों तक हमसे अलग नहीं हुआ। हम सभी निःशब्द! बहुत कुछ कहने को हमारे पास था, मगर कुछ भी कहने का मन नहीं कर रहा था।  फिर ईशान उसे थपथपाते हुए बोला, ‘जैसन, फ्लाइट के लिए बहुत ज्यादा टाइम नहीं रहा, सिक्योरिटी पर जाओ।’

वह हाथ लहराते हुए सिक्योरिटी की तरफ बढ़ गया। रह-रह कर पीछे मुड़ कर हमें देखता। जैसे ही हमारी नजरें मिलतीं हम उसे फ्लाइंग किश करते। सिक्योरिटी पार कर वह गेट की तरफ बढ़ गया,  हमारी नजरों से ओझल हो गया। हम भारी मन से एयरपोर्ट से बाहर निकले। जैसन के बिना हमें यह शहर बहुत बेजार लगने लगा। एक खालीपन-सा महसूस लगने लगा। मैं ईशान से बोली, ‘हम भी यहां से चले जाएंगे। जैसन के पास इंग्लैंड चले जाएंगे, या अपने मातापिता के पास डेनमार्क या थाईलैंड चले जाएंगे, या फिर इंडिया चले जाएंगे।’

मेरी बात पर हां में हां मिलाते हुए ईशान ने मुझे कस कर गले लगा लिया।

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