कई रचना संग्रह प्रकाशित।‘अभिनव प्रयास’ त्रैमासिक पत्रिका का संपादन।
गजल
१.
जब देखो तब आनाकानी, हाय रब्बा
बरसे कंबल भीगे पानी, हाय रब्बा!
इक दूजे की आस्तीन में रहते हैं
फिर भी दिल है हिंदुस्तानी हाय रब्बा!
रातों को गिद्धों के सपने आते हैं
जबसे बिटिया हुई सयानी हाय रब्बा!
लोकतंत्र में लोक किनारे लगा दिया
तंत्र सदा करता मनमानी हाय रब्बा!
फिर कचरे में कहीं कोई नवजात मिला
खत्म हुई फिर प्रेम-कहानी, हाय रब्बा!
बाबर, खिलजी बारूदी के खेल रचे
मारे जाए चचा रमजानी हाय रब्बा!
२.
सदा हादसों की खबर ले के निकलो
हथेली पे अब अपना सर ले के निकलो
करेगी तभी खैरमकदम ये मंजिल
जो हाथों में अपने हुनर ले के निकलो
कदम सावधानी से आगे बढ़ेगा
अगर जहन में साथ घर ले के निकलो
उसे दिल से इतनी दुआ दीजिएगा
के रास्तों पे पूरी उमर ले के निकलो
अगर डर के निकले तो मुश्किल है चलना
अगर घर से निकलो न डर ले के निकलो
बहुत भीड़ रिश्तों की राहों को रोके
तुम अपने सुकूं को जिधर ले के निकलो।
संपर्क :स्ट्रीट–२, चंद्र विहार कॉलोनी (नगला डालचंद) क्वार्सी बायपास, अलीगढ़–२०२००२ मो.९२५८७७९७४४
Painting : Vincent Van Gogh