युवा कवि। मेरे पास तुम होकविता संग्रह। दिल्ली के एक सरकारी स्कूल में अध्यापक।

प्रार्थनाएं

किसी दिन हम बचा ही लेंगे
अपने हिस्से की जमीन
इतनी कि अगर पांव फैलाएं
तो सागर में जा गिरें
और अगर लेटना चाहें
तो सर पहाड़ पर जा लगे
जब हमारी उड़ान
दुआओं नहीं हौसलों से तय होगी
उस दिन यह सारा आकाश
हमारे हिस्से आएगा
बुदबुदाए हुए तमाम शब्द
आसमान से उतरते हुए
बादलों में घुलेंगे
बूंदों में बदलेंगे
और गिर पड़ेंगे
दुआओं में उठे हाथों में
कोई इनकलाब बनकर
उस दिन उस आकाश से
लौट आएंगी तमाम प्रार्थनाएं
बैरंग लिफाफों की तरह
ईश्वर का पता पूछते हुए।

यात्रा

मैं बारूदों से डरते-डरते
आग से डरने लगा हूँ
मैं सिर्फ उतनी आग चाहता हूँ
जिससे रोटी पक सके
इसलिए मैं खोहों में
वह चकमक पत्थर ढूंढने निकला हूँ
जिन्हें मेरे पुरखे भूल गए थे
यात्रा पर निकलने से पहले
एक ऐसी यात्रा
जो आग जलाने से शुरू होकर
बारूदों तक आ पहुंची
एक ऐसी यात्रा
जो पत्थर के हथियारों से होकर
जंगी सामान तक आ पहुंची
एक ऐसी यात्रा
जो शिकारी होने से लेकर
आदमखोर होने तक ले आई
एक ऐसी यात्रा
जिसमें मेरे पुरखे जंगलों से होते हुए
शहरों में आ पहुंचे हैं
जो जंगलों से ज्यादा डरावने हैं|

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