अश्वनी कुमार
अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद में स्पेनी भाषा के सहायक प्राध्यापक।

नैंसी मोरखोन
क्यूबा की सुप्रसिद्ध कवयित्री। ये कविताएं उनकी किताब ‘अश्वेत स्त्री और दूसरी कविताएं’ से ली गई हैं। नैंसी मोरखोन क्यूबा के साहित्य का राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ कई पुरस्कारों से सम्मानित हैं।

अपने मालिक से प्यार करती हूँ

अपने मालिक से प्यार करती हूँ
रोज जलावन के लिए लकड़ियां लाती हूँ
उनकी चमकीली आँखें बहुत पसंद हैं मुझे
मेमने जैसी विनम्र
बिखेरती हूँ मधु, उनके कानों के चारों तरफ
बहुत पसंद है उनके हाथ
जो लेटा दिए थे मुझे घास पर
वह मुझे आलिंगन करके अपने बस में कर लेते
सुनाते हुए गुप्त कहानियां
पंखे डुलाती मैं उनके शरीर पर हुए घाव
और गोलियों के निशान पर
जो तेज धूप और लूट-मार के दिनों से हैं
उनके पैर मुझे पसंद हैं
जो अनेक जगहों से होकर आए हैं
मै उनपर पॉउडर लगाती हूँ
जो मैंने ख़रीदा था, एक रोज बाजार से
वे गिटार के तार छेड़ देते
उनके गले से निकलते सुरीले गीत
मानो मानरिके के गले से निकला हो
मैं मारिमबुला की आवाज़ सुन लेना चाहती थी
मुझे उनके पतले लाल होंठ बेहद पसंद हैं
जिनसे शब्द निकलते हैं
और मैं उन्हें समझने में असमर्थ हूँ
मेरी भाषा अभी भी वे नहीं समझ पाते
मेरा सुनहरा वक्त टुकड़ों में बिखर गया है
संतरी की बात सुनकर मुझे पता चला कि
मेरे मालिक
धातु बनाने वाली एक फैक्ट्री में कोड़े मारते हैं
जैसे कि नरक में यमराज
जिसके बारे में वे मुझसे अकसर जिक्र करते थे
कौन बताएगा मुझे
कि मैं इस अंधेरी दुनिया में क्यों रहती हूँ
जो सिर्फ चमगादड़ों के लिए अनुकूल है
क्यों करती हूँ उनकी सेवा?
और वे अपनी भव्य गाड़ी में जाने कहां जाते हैं?
वे गाड़ी खींचते घोड़े खुदनसीब हैं
मेरा प्यार उनके लिए बेशुमार है
पैसों के बदले
मैं उसे लानत देती हूँ
मेरी आंखों पर पर्दा डालने के लिए
जिसने ये बंधन निर्दयता से मेरे ऊपर डाल रखे हैं
दोपहर में इतने काम बिना आराम के
सूखी हुई मेरी जुबान हलख में नहीं जाती
मेरे पत्थर हुए स्तन उसको नहीं लुभाते
सदियों से जुल्म सहे दरार पड़े पेट
और यह शरारती दिल
प्यार करती हूँ अपने मालिक से
लेकिन रोज रात
जब भी गुजरती हूँ फूलों वाले रास्ते से
चीनी मिल की तरफ
जहां छुप-छुप कर मिला करते थे हम
चक्कू पाती हूँ मै अपने हाथ में
उसकी खाल उधेड़ते हुए
एक निर्दोष जानवर की तरह
और ड्रम से निकलती आवाज़
दबा देती है उसकी चीख़ और उसके दुखड़ों को
आवाज दे रही है मुझे
चीनी मिल की घंटियां।

12-12-49, रवींद्र नगर, सीताफलमंडी, सिकंदराबाद, तेलंगाना– 500061