वरिष्ठ गीतकार। अद्यतन गीत संकलन: ‘गौरैया का घर खोया है’।
एक
रहते रहे हम
बस बदी के साथ ही
रहते रहे
सोच की शतरंज पर
राजा मरा, रानी मरी
साथ में भीतर ही भीतर
सारी हैरानी मरी
बहते रहे हम
बस नदी के साथ ही
बहते रहे
आग, पानी ने निभाई
रोज हमसे दुश्मनी
आदमी होकर भी हममें
आदमी की थी कमी
कहते रहे हम
बस, कमी को त्रासदी
कहते रहे
चुप्पियों के खंडहरों में
आहटें मुरझा गईं
सांकलें टूटी मिलीं तो
दस्तकें घबरा गईं
दहते रहे हम
बस सदी के साथ ही
दहते रहे।
दो
प्यादे जिस पर हावी रहते
ऐसे एक वज़ीर हम
जब-जब हमने की मनमानी
बरसे कंबल भीगा पानी
जीवन के जंगल में जैसे
भटके हुए कबीर हम
जीवन क्या है घर-घर पूछा
फिर भी जीवन रहा अजूबा
इस दौलत के बिना हमेशा
बरबस रहे फकीर हम
एहसासों के पंख लगाए
हम रिश्तों के वन में आए
वृक्षों ने तत्काल कह दिया
ठहरे हुए समीर हम।
तीन
जाने कैसे चुक गए
अनुमान जीवन के
पंथ तो पहले चुका फिर चुका पाथेय
मन-मुकुर में बिलबिलाया आत्मधर्मी नेह
बुझ गए संताप में
दिनमान जीवन के
है अंधेरा ही अंधेरा, दूर तक आकाश में
दिख रहीं गहरी दरारें, भोर के विश्वास में
खो गए जाने कहां
सम्मान जीवन के
ख्वाब है, सचाई है, अलगाव है, क्या है?
अवसाद है, अनुवाद है, बदलाव है, क्या है?
संवेदना को ढूंढ़ते
उपमान जीवन के।
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