गाब्रिएल गार्सिया मार्केस
(1927-2014) स्पेनिश भाषा के ऐसे रचनाकार थे जिनके जादुई यथार्थवाद ने समूची दुनिया के साहित्य को प्रभावित किया। उनके उपन्यास एकाकीपन के सौ वर्षको बीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में शुमार किया जाता है।

एक
लगभग पांच साल का एक बच्चा, जिसने मेले की भीड़ में अपनी मां को खो दिया था, एक पुलिस अधिकारी के पास जाकर पूछता है: ‘क्या आपने ऐसी महिला को कहीं देखा है जो मेरे जैसे बच्चे के बिना घूम रही हो?’

दो
दो वर्षीय मैरी जो अंधेरे में खेलना सीख रही है। उसके माता-पिता मिस्टर और मिसेज माइ को उस छोटी लड़की के जीवन या उसके शेष जीवन के लिए अंधे होने के बीच चयन करने के लिए मजबूर किया गया था। जब छह प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने उसकी आंखों में रेटिनोब्लास्टोमा पाया तो मेयो क्लिनिक में उस बच्ची मैरी जो की दोनों आंखें निकाल दी गईं।

ऑपरेशन के चार दिन बाद, छोटी लड़की ने कहा- ‘मां, मैं जाग नहीं सकती… मैं जाग नहीं सकती!’

तीन
यह उस निराश आदमी की दास्तान है जिसने दसवीं मंजिल से नीचे सड़क पर छलांग लगाई थी और गिरते वक्त उसने खिड़कियों से अपने पड़ोसियों की घनिष्ठता, घरेलू झगड़े, गुप्त प्रेम, खुशी के पल को देखा, जिसकी खबर कभी भी सीढ़ियों तक नहीं पहुंच पाती थी।

सड़क के फुटपाथ से टकराते ही दुनिया के बारे में उसकी धारणा पूरी तरह से बदल गई थी। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा था कि जिस जीवन को उसने झूठे कारणों से खत्म करने का फैसला लिया था, वह जीने लायक था।

चार
बर्फ में खोए हुए दो खोजकर्ता तीन कष्टदायक दिन बिताने के बाद एक परित्यक्त केबिन में शरण पाने में कामयाब रहे। अगले तीन दिनों के बाद, उनमें से एक की मृत्यु हो गई। जीवित बचे व्यक्ति ने केबिन से लगभग सौ मीटर की दूरी पर बर्फ में एक कब्र खोदी और उसके शरीर को दफना दिया। हालांकि, अगले दिन, जब वह अपनी पहली शांतिपूर्ण नींद से जगा, तो उसने उसे फिर से घर के अंदर मृत और बर्फ में परिवर्तित पाया, जो अपने बिस्तर के सामने एक सभ्य मेहमान की तरह बैठा हुआ था। उसने उसे फिर से दफनाया, शायद अधिक दूर की कब्र में, लेकिन जब वह अगले दिन उठा तो उसने उसे फिर से अपने बिस्तर के सामने बैठा हुआ पाया।

फिर उसका दिमाग खराब हो गया। उस समय उसके पास जो डायरी थी, उससे उसकी कहानी की सचाई जानी जा सकती है। इस रहस्य के संबंध में कई स्पष्टीकरणों में से यह सबसे अधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है : जीवित व्यक्ति अपने अकेलेपन से इतना आहत हो चुका था कि उसने खुद ही सोते समय उस लाश को खोद कर निकाला था जिसे उसने जागते हुए दफनाया था!

पांच
फायरिंग दल ने उसे एक ठंडी सुबह उसकी कोठरी से उठा लिया और सभी को फांसी स्थल तक पहुंचने के लिए पैदल ही बर्फीले मैदान को पार करना पड़ा। सिविल गार्ड टोपी, दस्ताने और तीन रंगों वाली टोपी पहने ठंड से अच्छी तरह सुरक्षित थे। फिर भी वे बर्फीली वीरान जगह में कांप रहे थे।

बेचारे कैदी ने, जिसने केवल एक फटा हुआ ऊनी जैकेट पहना हुआ था, अपने लगभग जमे हुए शरीर को रगड़ने के अलावा कुछ नहीं किया, हालांकि वह जोर-जोर से उस जानलेवा ठंड को कोस रहा था। कुछ ही क्षण में प्लाटून का कमांडर, रोने से परेशान होकर चिल्लाया – अबे ओय, इस घटिया ठंड में जल्दी से शहीद हो जा। हमारे बारे में सोच, हमें वापस भी जाना है!

 

 

 

अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद में सहायक प्राध्यापक

12-12-49, रवीन्द्र नगर, सीताफलमंडी, सिकंदराबाद, तेलंगाना-500061 मो. 9811867280