युवा शायर। अद्यतन ग़ज़ल संग्रह ‘हाशिये पर आदमी’।
गजल
1.
जब कभी बदलाव की ख़ातिर उठा है सर नया
उसको दिखलाया गया हर बार कोई डर नया
पर्वतों को चीरकर राहें बना लेता है वो
जो समझता है मुसीबत को भी इक अवसर नया
हर गली कूचे मुहल्ले में लहर उन्माद की
कोई बतलाए कहां जा कर बनाऊं घर नया
काम ले बेशक पुराने तू रदीफ़-ओ-क़ाफ़िए
पर ज़रा अपनी कहन को और थोड़ा कर नया
हर नया तेज़ी से होता है पुराना आजकल
किस तरह रक्खूं बनाकर ख़ुद को जीवन भर नया
क्या विरोधाभास है देखो पुराने लोग भी
छोड़ देते हैं पुराना आज अपनाकर नया।
2.
इक दफ़ा तो कह न पाए उम्र भर कैसे कहें
है अंधेरी रात इसको दोपहर कैसे कहें
बंट गया आंगन, बंटे हैं लोग, रिश्ते बंट गए
फिर भला इस चारदीवारी को घर कैसे कहें
अब तो हम कांटों भरी राहों के आदी हो गए
आज फूलों की डगर को रहगुज़र कैसे कहें
मानते हैं हम हुनर का दायरा बढ़ने लगा
पर दग़ाबाज़ी, जफ़ा को भी हुनर कैसे कहें
लोग कहना चाहते हैं जिंदगानी की गजल
काफिया है तंग और मुश्किल बहर.. कैसे कहें।
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बेहतरीन ग़ज़लगोई के लिए बधाई