युवा लेखिका,स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता।

‘यह किसका बच्चा है?’ आम के पेड़ के नीचे बैठे पंच सलगो से पूछ रहे हैं। सलगो दो बेटों की मां है। पति मर चुका है। अब वह फिर पेट से है। गांव में पंचायत बैठी है। गांव के लोग कभी सलगो तो कभी पंच का चेहरा ताक रहे हैं। सलगो चुप है। पंच फिर पूछते हैं ‘यह किसका बच्चा है?’ पंच, गांव वालों से पूछते हैं ‘यह जिसका बच्चा है, वह खुद खड़ा हो जाए और बताए।’ बहुत देर चुप्पी के बाद सोमा बूढ़ा धीरे से उठा। बोला–‘पंचो, बच्चा मेरा है।’ सोमा बूढ़ा के पहले से ही चार जवान बेटे हैं। पत्नी मर चुकी है। बच्चे कुछ न कुछ काम करते हैं। सबकी शादी हो चुकी है। पंच ने निर्णय लिया और फैसला सुनाया ‘सलगो के पहले से ही दो बच्चे हैं। इसलिए उसके पेट में जो बच्चा है वह सोमा बूढ़ा को दे दिया जाएगा। पर औरत उसके पास नहीं रहेगी। वह अपने घर में अपने बच्चों के साथ रहेगी।’ सोमा बच्चा पाकर खुश था। उसे सलगो की चिंता हुई। उसने पंच से कहा- ‘अगर हम सलगो और उसके दोनों बेटों को भी अपने घर ले आएं तो इससे आनेवाले बच्चे को अपनी मां भी मिल जाएगी।’ पंच ने कहा ‘यह तभी संभव होगा जब सोमा के जवान बेटों को सलगो और उनके दोनों बेटों के अपने घर में आने से एतराज न हो।’ सोमा के जवान बेटों ने कहा-‘उन्हें सलगो, आने वाले बच्चे और सलगो के दो बेटों के आने से कोई परेशानी नहीं है।’ पंच ने पूछा-‘क्या वे उनके भरण-पोषण का जिम्मा भी लेने को तैयार हैं?’ इस पर सोमा के जवान बेटों ने हामी भरी। इसी के साथ पंचायत उठ गई। पंच के निर्णय के मुताबिक गर्भवती सलगो अपने दोनों बेटों को लेकर सोमा के घर आ गई। सलगो ने एक लड़की को जन्म दिया। लड़की के जन्मने से सोमा खुश था। उन्होंने उसका नाम रखा ‘चंदो।’ सलगो के जवान बेटे चंदो के आने से खुश नहीं थे। क्योंकि वह सौतेली बेटी थी।

गांव में दूसरी चर्चा थी। स्त्रियां कह रहीं थीं-‘बच्चा तो सोमा बूढ़ा का है नहीं। लेकिन सोमा ने भरी पंचायत में बच्चे को स्वीकार लिया। सुना है जिधर गाय-बकरी चराने जाती थी सलगो, उधर ही किसी रिश्तेदार ने यह किया है।’

सोमा के लड़के कहते “ बाबा बूढ़ा है। बच्चा उसका तो हो नहीं सकता। पता नहीं किसका बच्चा ढोकर आ गई?” इसलिए चंदो जब जन्मी, सोमा को छोड़कर किसी को कोई खुशी नहीं हुई।

एक दिन खेतों की पगडंडियों पर चंदो भागी जा रही थी। उसके पीछे कुछ लड़के थे। अभी हाल ही में वह दिल्ली से गांव लौटी थी। 15 साल की उम्र में ही वह दिल्ली काम करने चली गई थी। गांव की एक महिला उसे दिल्ली में काम लगवा देने के नाम पर लेकर गई थी। लेकिन वहां उसे देह के धंधे में लगा दिया गया। पैसा तो एक मोटी महिला लूट लेती थी। कहती थी ‘घर जाते समय लेते जाना अपना सारा पैसा।’ एक दिन वहां से चंदो भाग निकली। लौटकर जब गांव आई तो दिल्ली में ही अपने अनचाहे बच्चे को गिराकर लौटी। ताकि गांव वालों के तानों से बच सके। लेकिन उड़ती खबर पहुंच ही जाती है गांव।

उसके भाइयों ने कभी उसे अपनी बहन नहीं माना। वे मानते थे कि वह नाजायज संतान है। इसलिए उन्होंने सोचा, जब दिल्ली में लोग उससे पैसे कमा सकते हैं तो वे भी क्यों नहीं पैसे बनाएं। वे किसी आदमी से उसका सौदा तय कर चुके थे। उसे उस दिन बेचने ले जाने वाले थे। आधे रास्ते से चंदो उनको चकमा देकर भाग निकली थी।

भागते-भागते चंदो हांफने लगी थी। दूर एक गांव दिख रहा था। उस गांव में फग्गू रहता था। उसे याद आया फग्गू की मां ने दिल्ली के दलालों से उसका बकाया पैसा निकलवाने में मदद की थी। जाते वक्त उन्होंने कहा था-‘कोई भी दिक्कत हो तो सीधे हमारे घर घुस जाना। बाद में जो होगा देखा जाएगा।’ इतना याद करते ही वह उस गांव की ओर दौड़ने लगी। दौड़ते-दौड़ते घुस गई फग्गू के घर। लड़के रुक गए। ‘चला, घूरा रे, ढुकु घुईस गेलक।’ वे अपने गांव लौटने लगे। गांव में कोई भी लड़की इस तरह किसी लड़के के घर चली जाए और रहने लगे तब लड़की पक्ष वाले समझ लेते हैं कि वह ढुकु चली गई है। फिर बाद में गांव में खान-पान होता है। यह भी विवाह करने के कई तरीकों में एक है। ढुकु घुसने को गांव के लोग सम्मानजनक नहीं मानते, लेकिन ढुकु घुस चुकने के बाद मिलने वाले भोज-भात में मुर्गा खूब खींचते हैं। खाना चाहे सम्मानजनक काम के लिए मिले या अपमानजनक काम के लिए। खाना खाते वक्त इन बातों का कोई मतलब नहीं रह जाता। भोज दिया जाए तो सारी बातें ठीक हो जाती हैं और भोज नहीं मिलेतो सौ वर्षों तक भी ताने मारते रहेंगे लोग। पुरानी बातें होती ही रहेंगी।

उस दिन चंदो जब भागते हुए फग्गू के घर ढुक गई थी तब फग्गू ने अपनी मां से कहा था–‘अयो, गांव वाले उसे बदचलन कहते हैं। रंडी भी। मैंने सुना है। मैं लाख बुरा हूं। इससे शादी करके उसका भला तो करूंगा। तुम इसी से मेरी शादी करवा दो।’ फग्गू के परिवार से लोग लड़की के गांव गए। उनसे कहा- ‘अब वह नहीं लौटेगी। इसलिए गांव में खान-पान और विवाह की आगे की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।’ गांव वालों को खिलाने-पिलाने के बाद चंदो, फग्गू के साथ रहने लगी।

लेकिन कुछ ही दिनों के बाद वही फग्गू कहने लगा कि वह रंडी है। दिल्ली में किस-किस के मुंह लग कर आई है। ससुर उसे बेयसी कहते। फग्गू की मां भी उसके पक्ष में कभी नहीं खड़ी हुई। फग्गू अब बात-बात पर उसे मारता पीटता। चंदो भी उसे पलटकर पीटती। पलटकर इस तरह पति पर हाथ उठाने के कारण वह और भी बदनाम हो गई। सास कहती-‘मोर बेटा के मारेला।’ यह कहते हुए सारे गांव में उसकी बुराई करने लगती। यह सब देखकर चंदो सोचती – यही वे लोग हैं जो घर में जगह देते समय कहते थे कि मेरा भला कर रहे हैं, मेरी मदद कर रहे हैं। ऐसा कह-कह कर थकते नहीं थे। आज रंडी…बैसी…खेलडी कहते किसी की जुबान नहीं थकती।

तीन बच्चों के बाद चंदो फिर पेट से थी और फग्गू रात पीकर आता और संबंध बनाने के लिए जबरदस्ती करता। चंदो ने कई बार संबंध बनाने की अनिच्छा जाहिर की। जब भी वह संबंध बनाने से मना करती, फग्गू घर से बाहर निकल आता और  कहता–‘देखा, ई जनी के। मोर संगे सुतेक नी खोजाथे।’

फिर तेज आवाज में ससुर गोंदराते रहते– ‘अपन मरद संग नी सुतबे तो केकर संग सुतबे।’ गांव में फग्गू शराब के नशे में ढिंढोरा पीटता कि चंदो उसके साथ नहीं सोती। गांव की औरतें पत्ता तोड़ते वक्त जंगल में चंदो के बारे में बातें करतीं। कहती- ‘दिल्ली कर घुरल छोड़ी। कहां से काबू में रही? अपन मरद संग नहीं सुतेक खोजा थे। दूसर से फंसल आहे।’ चंदो चपाकल के पास भी कभी-कभी ऐसी बातें सुनती और चुपचाप पानी भरती रहती। दुबला-पतला शरीर, उस पर हर साल बच्चा। देह जैसे हड्डी हुई जा रही थी।

तीसरा बच्चा फिर होने को था और फग्गू फिर नशे में। होश नहीं कि चंदो बच्चा जनने वाली है। फिर सास अकेली अपने छोटे बेटे की मदद से उसे अस्पताल लेकर गई। इस बार लड़की हुई। घर में सब खुश थे। मगर चन्दो बच्चा जनते-जनते थक गई थी। बच्चों की संख्या बढ़ रही थी और देह में खून घट रहा था। कई बार सोचती, बच्चों को समेट कर भाग जाएगी। मगर बच्चों का मोह। ससुर हमेशा गाली बकते, कहते–‘छउवा मोर खानदान केर डिबरी हिकंए। तोर छउवा ना लागे। मोर बेटा कर छउवा हिकंए। भागेग आहे तो छउवा-पूता के छोईड़ के भाग इ घर से।’ एक दिन फग्गू ने जब उसे बहुत पीटा तो वह बच्चों को छोड़कर भाग खड़ी हुई। असम चली गई। अपनी किसी सहेली के पास। देह में बहुत दर्द था। वहां कई दिन लगे उसे ठीक होने में। उसके जाने से इधर सास-ससुर पर बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। घर का सारा काम पड़ा रहता। खेत-खलिहान, लकड़ी-काठी का काम भी था। फग्गू और उसका बाप घर के कामों में हाथ बंटाने से रहे। फग्गू की मां दिन-रात सारा काम निपटाती। सबको लगने लगा कि चंदो के चले जाने से घर का काम ज्यादा हो गया है लेकिन काम करने वाले कम हो गए हैं। उसके रहने से सबको समय से खाना तो मिलता था। बच्चे भी पल जाते थे। खेत-खलिहान, जंगल-काठी सबकुछ होता था।अब खेत में काम करने वाला कोई नहीं। आखिरकार उसका पता लगाया गया और चंदो को असम से वापस लाया गया। चंदो को बच्चों की बहुत याद आती थी। इसलिए वह भी आने को तैयार हो गई।

पर लौटते वक्त चंदो ट्रेन में सारी रात सोचती रही। देह के धंधे में थी तब तो उसे लगता था अपनी देह पर उसका अधिकार है। पूरे गांव को भोज खिलाकार पत्नी के रूप में जिस आदमी ने घर में रखा, उसके साथ भी कभी भावनात्मक जुड़ाव हो नहीं सका। पर संबंध वह जबरन ही बनाता रहा। कभी उसे लगा ही नहीं कि उसकी देह पर उसका कोई अधिकार भी है। उसकी हां और न का कोई मतलब भी है।

ऊपर से दूसरों की खेत-बारी में बनिहार के रूप में जो भी कमाती, सब वही छीन ले जाता। संपत्ति के नाम पर उसका कुछ भी नहीं। जब धंधा करती थी तब बैसी सुनना बुरा भी नहीं लगता था। अब जब वह किसी की पत्नी है तब पति, सास-ससुर सब का रोजाना बैसी..खेलडी… कहना तीर की तरह चुभता है। कई बार सोचती, एक दिन सबकुछ छोड़कर हमेशा के लिए कहीं निकल जाए और फिर कभी पलट कर न आए। पर एक सवाल हमेशा उसके मन में उठता। इस दुनिया में औरत को, घर से बाहर निकलने पर कुछ दिनों का आश्रय मिल सकता है, कोई आश्रम, कोई पेड़ की छाया, स्टेशन में सर छिपाने की जगह, कोई नया मर्द भी। मगर असल में उसे घर कहीं नहीं मिलता। जीवन भर एक छत के लिए भागती ही रहती है। इस हाथ से उस हाथ बिकती या खरीदी ही जाती रहती है। आखिर इस जीवन में औरत का घर कहां होता है?

सी/ओ मनोज प्रवीण लकड़ा, म्युनिसिपल स्कूल की बग़ल में, ओल्ड एच.बी रोड, खोरहटोली, कोकर, रांची, झारखंड 834001 मो. 7250960618