बहस और संवाद को प्रोत्साहित करने में गांधी की ताकत असीम थी
रामचंद्र गुहा
(जन्म : 1958) साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से पुरस्कृत रामचंद्र गुहा एक इतिहासकार और जीवनी लेखक हैं। सबसे महत्वपूर्ण काम महात्मा गांधी की दो खंडों में जीवनी है। पहला खंड, ‘गांधी बिफोर इंडिया’ और दूसरा खंड, ‘गांधी : द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’।
प्रश्न – गांधी की मृत्यु के बाद उनकी विरासत में किस प्रकार का बदलाव आया है?
रामचंद्र गुहा – गांधी को लेकर भारत में लगातार बहस और विवाद जारी है। ऐसा कोई विवाद चीन के माओ (जेडांग) या वियतनाम के हो ची मिन्ह या पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना को लेकर कभी नहीं हुआ।
गांधी को लेकर बहस का एक कारण उनका वह विचार है जिसे उन्होंने धार्मिक बहुलतावाद को लेकर व्यक्त किया है। हिंदू कट्टरपंथियों को उनके विचार पसंद नहीं हैं, खासकर उनके अंतरधार्मिक सद्भाव को लेकर और उनके इस विचार को लेकर कि भारत एक सेकुलर देश है और यह देश पाकिस्तान की तरह धर्म के आधार पर नहीं बना है। कट्टरपंथी इस विचार को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते, क्योंकि यह उनकी सोच के विपरीत है।
दूसरा पहलू है अहिंसा को लेकर गांधी का आग्रह। इसे भारतीय युवा वर्ग का एक हिस्सा गांधी की कमजोरी के रूप में देखता है, बल्कि इसे उनका स्त्रियोचित स्वभाव मानता है, जिसमें मर्दानगी की बात नहीं है। आज भारत में एक ऐसा इतिहास लिखने की कोशिश हो रही है, जिसमें कहा जा रहा है कि भारत ने यदि हिंसक क्रांति का रास्ता अपनाया होता तो अंग्रेजों से आजादी जल्दी मिल जाती।
गांधी को लेकर विवाद का तीसरा पहलू है उनका सादगीपूर्ण जीवन अपनाने की वकालत। यह विचार अधिग्रहणवादी, भौतिकवादी और तेजी से बढ़ रहे औद्योगीकरण वाले समाज के साथ मेल नहीं खाता। गांधी का मानना था कि बेलगाम उपभोक्तावाद दुनिया को बर्बाद कर देगा। यह बात आज हमारी अदूरदर्शितापूर्ण बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था के अनुरूप नहीं है।
प्रश्न – आज गांधी होते तो भारत के बारे में क्या सोचते?
रामचंद्र गुहा – मुझे नहीं लगता कि गांधी आज के भारत से पूरी तरह निराश होते। उन्होंने अस्पृश्यता को अवैध ठहराए जाने का स्वागत किया होता। उन्होंने युवा भारतीयों की उद्यमशीलता की भावना का और इस सचाई का स्वागत किया होता कि हमारे देश में लगातार 17 चुनाव स्वतंत्र रूप से हुए हैं।
परंतु यह भी सच है कि हमारे राजनीतिक नेताओं के अहंकार और सार्वजनिक बहस के प्रति असम्मान तथा पूरे भारत में पर्यावरण के नुकसान, देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार और अपराध की घटनाओं, महिलाओं के साथ निरंतर हो रही हिंसात्मक घटनाओं से वे दुखी भी होते।
प्रश्न – दुनिया गांधी को कैसे देखती है?
रामचंद्र गुहा – अंतरधार्मिक सद्भाव, पर्यावरण के संरक्षण, अहिंसा आदि के संबंध में उनके विचार स्थायी और सार्वभौमिक हैं।
एक घटना उल्लेखनीय है। गांधी की जीवनी पर मेरी पुस्तक का प्रथम खंड 2013 में प्रकाशित हुआ था। मैं उस किताब के प्रचार के क्रम में न्यू यार्क के एक होटल में ठहरा था। पुस्तक मेरे टेबल पर पड़ी थी। कमरे की सफाई करने वाले होटल के कर्मचारी ने किताब पर छपे गांधी के चित्र को देखकर मुझसे पूछा, ‘यह गांधी के युवावस्था का चित्र है न?’ मुझे आश्चर्य हुआ कि वह व्यक्ति गांधी को युवा वकील के रूप में भी पहचान रहा है। मेरे पूछने पर कि वह कहाँ का रहने वाला है, उसने कहा कि वह डोमिनिकन रिपब्लिक का रहने वाला है। मुझे पूरा यकीन है कि गांधी ने कभी डोमिनिकन गणराज्य के बारे नहीं सुना होगा, परंतु डोमिनिकन गणराज्य ने गांधी के बारे में सुना था। स्पष्ट है कि गांधी केवल भारत के नहीं थे। भले ही हम भारतीयों ने उन्हें बाहर फेंक दिया हो या उनको त्याग दिया हो या उनकी उपेक्षा कर रहे हों, दुनिया में बहुत सारे लोग उनके विचारों और विरासत से प्रभावित हैं।
प्रश्न – गांधी से जुड़े विवादों पर क्या कहेंगे?
रामचंद्र गुहा – रिकार्ड बहुत ही साफ है। जब वे छोटे थे और दक्षिण अफ्रीका में वकील के रूप में काम कर रहे थे तो वे काले अफ्रीकियों के खिलाफ नस्लवादी दृष्टि रखते थे। जब वे 30 वर्ष के हुए तब उनकी नस्लवादी सोच खत्म हो चुकी थी और अपने सार्वजनिक जीवन के अंतिम 35 वर्षों में उन्होंने सभी लोगों के लिए पूर्ण समानता की वकालत की थी।
गांधी अपनी कामुकता और ब्रह्मचर्य के प्रति भी अनेक तरह की मनोग्रंथियों से गुजरे थे। इसने समस्याएं पदा कीं। वे अपने ब्रह्मचर्य की परीक्षा करने के लिए इस तरह के प्रयोग करते रहते थे। 70 वर्ष की आयु के बाद वे अपनी किशोर पोती के साथ एक ही बिस्तर पर नग्न होकर सोते थे। वे सिद्ध करना चाहते थे कि वे यौनग्रस्त नहीं हैं। हालांकि उनके इस तरह के प्रयोगों को उचित नहीं ठहराया जा सकता।
अपने समय के अन्य लोगों की तरह उन्होंने भी यह माना कि महिलाओं को घर का ही कामकाज और बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए। उस समय महिलाओं के अधिकारों के संबंध में गांधी के विचार निश्चित रूप से वैसे नहीं थे, जैसा 21वीं सदी में उम्मीद की जाती थी। परंतु बाद में उनकी सोच में बदलाव आता है और 1920 एवं 1930 के दशक में वे महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में लाने के पक्षधर दिखाई देते हैं। वे उन्हें मंत्री, सांसद आदि बनने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। इसे गांधी का क्रांतिकारी कार्य कहना चाहिए।
प्रश्न – राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता के रूप में आदर और आलोचना के बीच कैसे संतुलन स्थापित किया जाए?
रामचंद्र गुहा – गांधी के साथ आपकी सभी असहमतियों के बावजूद उनके नैतिक और शारीरिक साहस, अपने जीवन को दांव पर लगाने की उनकी इच्छाशक्ति तथा बहस और संवाद की भावना को प्रोत्साहित करने की उनकी ताकत को अस्वीकारा नहीं जा सकता। यह असीम थी। यहां तक कि वे जिन लोगों से पूरी तरह असहमत थे, उनके साथ भी उन्होंने दशकों तक बातचीत जारी रखी। ये ऐसे पहलू हैं जो उनकी प्रशंसा करने के लिए आपको मजबूर करते हैं। झूठी प्रशंसा नहीं, मात्र श्रद्धा-प्रदर्शन नहीं, बल्कि सच्चा सम्मान। यह सही है कि उन्होंने गलतियाँ कीं, उन्हें अदूरदर्शी भी कहा जा सकता है। लेकिन यह मानना पड़ेगा कि वे भारतीय पुनर्जागरण लाने वाले महान नेताओं में एक थे।
प्रश्न– गांधी के जीवन के और कौन से पहलू हैं, जिनके लिए उन्हें याद किया जाना चाहिए?
रामचंद्र गुहा – उनकी हास्य-व्यंग्य की भावना, खुद अपना मजाक उड़ाने का उनका साहस, उनके सार्वजनिक जीवन की पारदर्शिता। ये ऐसी चीजें हैं जो उन्हें दूसरों से अलग करती हैं। सच तो यह है कि वे एक अद्भुत स्पष्टवादी और उच्च श्रेणी के लेखक थे। उनको पढ़ना एक सुखद अनुभूति से गुजरना है। क्योंकि उन्होंने बिना लाग-लपेट या शब्दाडंबर के सब कुछ पूरी साफगोई के साथ और सीधे तौर पर कहा है।
उन्हें भारत की भाषायी विविधता की बहुत गहरी और अलौकिक समझ थी। अमेरिका के लोग एक जुनूनी की तरह मानते हैं कि अंग्रेजी ही एकमात्र देश को एकसूत्र में जोड़ने वाली भाषा है। यदि टेक्सास या कैलिफोर्निया में एक काउंटी स्पेनिश-प्रधानता वाली हो जाए तो कुछ अमेरिकी बेचैन हो जाते हैं कि राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा हो गया है। इसके विपरीत गांधी की सोच थी कि देशभक्त होने के लिए जरूरी नहीं है कि आप कोई एक खास भाषा बोलें। यही मानव जाति की महिमा है। इस देश में बहुत अधिक विविधता है। मैं समझता हूँ कि गांधी की विरासत का यह एक नया पहलू है, जो अमेरिका में सहज उपलब्ध नहीं है।
(अंश, साभार एन.पी.आर.) अंग्रेजी से अनुवाद :अवधेश प्रसाद सिंह