वरिष्ठ लेखक, भाषाविद और अनुवादक।

पश्चिम में भविष्य कल्पना की एक दीर्घ परंपरा है। थामस मोर ने 1516 में अपनी पुस्तक ‘यूटोपिया’ में एक ऐसे राज्य की कल्पना की थी, जो हर तरह की दुरवस्था और दुर्नीति से मुक्त एक जनहितकारी, उत्कृष्ट, समानता पर आधारित व्यवस्था वाला कल्पलोक था। वहाँ किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं थी। सभी लोग सामूहिक रूप से सुखी, संतुष्ट जीवन व्यतीत करते थे। सबको समान अधिकार थे। आर्थिक स्थिति एक जैसी थी। सबको उचित न्याय मिलता था। लोगों में बराबरी का रिश्ता था। कल्पलोक में राजा, प्रजा, उद्योगपति, मजदूर सभी खुश थे। युद्ध नहीं होता था। इस काल्पनिक समाज को मोर ने यूटोपिया का नाम दिया था। यह दरअसल इंग्लैंड की तत्कालीन राज-व्यवस्था के ठीक उलट था, जहाँ हर तरह के शोषण, दमन, अत्याचार, भ्रष्टाचार थे।

त्रासक राज्य से एक भिन्न व्यवस्था के लिए आदि स्वप्न

यूटोपिया या आदर्श शासन या आदर्श राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का विचार नया नहीं है। पहले भी विभिन्न रूपों में इसकी कल्पना की गई। यूटोपियन विचार के प्रणेताओं को ईश्वरीय दूत के रूप में माना जाता था। उन विचारकों ने अपने समय की विडंबनाओं और असमानताओं की आलोचना की थी और एक कल्याणकारी, विषमतामुक्त सामाजिक-राजनीतिक स्थिति की कल्पना की थी। उन्होंने समाज से उत्पीड़न के अंत, शांति के शासन, आर्थिक और सामाजिक भेदों को दूर कर मानवीय एकता का आदर्श सामने रखा था।

ऐसे पश्चिमी यूटोपियन विचारकों में पहला नाम अमोस का आता है। ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में जन्मे अमोस ने इजरायल में कुलीन वर्गों के भ्रष्टाचार और ईमानदार मजदूरों पर उनके अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। टोरा और ओल्ड टेस्टामेंट के अनुसार उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि इजरायल की तरह दुनिया में फैले अभिजात वर्ग का पतन होगा और भूमि पर केवल ईमानदार और आस्थावान मजदूरों का अधिकार होगा। उनका संदेश धार्मिक और नैतिक होते हुए भी एक सुव्यवस्था की ओर संकेत करता है।

उन शुरुआती विचारकों ने समाज और राजनीति के क्षेत्र में प्रेम, सेवा, विनम्रता और आस्थाओं पर विशेष जोर दिया। परवर्ती काल में ईसा ने पृथ्वी पर ईश्वर के राज्य की बात की। ऑगस्टीन ने ईश्वरीय शहर की चर्चा की और सवोनारोल ने एक आदर्श धार्मिक राज्य का प्रचार किया। इन विचारकों का विश्वास था कि जिस आदर्श दुनिया की कल्पना वे कर रहे हैं वह भविष्य में साकार अवश्य होगी। इसी प्रकार ताओवाद, थेरेवेदा, भारत में रामराज्य, बौद्ध धर्म और मध्ययुगीन इस्लाम के यूटोपियनवाद ने अपने-अपने समय में भविष्यवाणियाँ की थीं। इन विचारकों ने जिस नैसर्गिक राज्य की कल्पना की, उसने तत्कालीन त्रासक राज्य से एक भिन्न व्यवस्था की सोच के लिए मार्ग प्रशस्त करने में अहम भूमिका निभाई थी।

प्लेटो का रिपब्लिक

प्लेटो (360 ई.पू.) ने अपनी पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में ग्रीस की राजनीतिक समस्याओं पर विचार करते हुए एक आदर्श राजनीतिक स्वरूप सामने रखा था। 21वीं सदी में जिसे गणतंत्र के रूप में जाना जाता है, उसे प्लेटो ने समुदाय और सरकार के संदर्भ में व्याख्यायित किया था। प्लेटो यह सिद्धांत सामने रखते हैं कि सच्चा दर्शन सच्ची राजनीति से मेल खाता है। वे मानते हैं कि यदि कोई राजनेता एक दार्शनिक के रूप में कार्य करता है या कोई दार्शनिक एक राजनेता के रूप में कार्य करता है तो वह सत्य और अच्छाई के उच्चतम मूल्यों के आधार पर एक सच्चे राज्य का निर्माण कर सकता है।

प्लेटो ने सरकार का मानवीकरण करते हुए उसकी आत्मा के गुणों को तीन भागों में विभाजित किया – 1. किसी लक्ष्य का आग्रह, 2. इच्छाशक्ति और 3. बुद्धिमत्ता। सरकार को अभिभावक होना था, दार्शनिक शासक। उसे समूचे समुदाय के हित में शासन करने के लिए प्रशिक्षित होना था, अर्थात बुद्धिमत्ता संपन्न। दूसरा, उसे साहसी (सैनिक) होना था, और तीसरा- उत्पादक अर्थात किसान, कारीगर और शिल्पकार (अनुशासित) होना था। ये तीनों गुण न्याय में रूपांतरित होते हैं। यदि हर कोई इन्हें अपने पर लागू करे तो प्लेटो की दृष्टि में समाज में सामंजस्य की स्थापना हो सकती है।

प्लेटो के गणतंत्र में प्रशिक्षण केंद्रीय अवधारणा है। उनके अनुसार सौम्य कुलीन वर्ग से ही राजाओं का चयन किया जाएगा। इसके लिए उन्हें पचास वर्ष के कठोर शैक्षिक कार्यक्रम से गुजरना होगा। शासक एक दार्शनिक की तरह कार्य करते हुए अपनी बुद्धिमत्ता से संसाधनों का वितरण कर समाज में गरीबी और अभाव दूर करेंगे। यह कैसे किया जाएगा, इसका स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं है।

उन्होंने अपने आदर्श राज्य में कानून की संख्या बहुत कम रखने की बात की है। आदर्श गणतंत्र में कोई वकील नहीं होगा। शासक अपने नागरिकों को युद्ध में नहीं भेजेगा। वह अपने युद्धरत पड़ोसियों से भाड़े के सैनिकों को नियुक्त करेगा, जिन्हें जानबूझकर खतरनाक स्थितियों में इस उद्देश्य से भेजा जाएगा कि आसपास की युद्धलोलुप आबादी को खत्म किया जा सके।

आदर्श गणतंत्र के विचारों ने अगली कई शताब्दियों तक नेताओं को प्रभावित किया। किंतु ऐसा गणतंत्र कभी हासिल नहीं हो सका। 412 ई. के आसपास सेंट ऑगस्टिन की पुस्तक ‘सिटी ऑफ गॉड’ में आम जनता को समान न्याय और विषमतामुक्त जीवन यापन के अवसर प्रदान करनेवाले राज्य के विचार देखे जा सकते हैं। इस पुस्तक ने रोम के पाखंड भरे साम्राज्य के पतन का मार्ग खोला था। 14वीं सदी में ब्रिटिश चर्च से जुड़े एक चिंतक जॉन विक्लिफ ने साम्यवादी सोच को सामने रखा और संपत्ति पर सभी के समान अधिकार की बात की। उसी कालावधि में जॉन बॉल नामक विचारक ने इंग्लैंड में सुधार तथा कट्टरपंथी किसान विद्रोह में भाग लिया। उनसे प्रभावित कई रचनाकारों ने एक आदर्श और समतायुक्त समाज तथा आदर्श दुनिया के दृष्टिकोण से लोगों को परिचित कराया था।

थामस मोर का आदर्श राज्य

माना जाता है कि थॉमस मोर पर एक ओर प्लेटो के चिंतन का प्रभाव है तो दूसरी ओर अमेरिगो वेस्पूची द्वारा वर्णित एक संस्मरण का प्रभाव है। उसमें वेस्पूची ने लिखा था कि एक जनजाति ऐसी थी, जो न कुछ बेचती थी, न कुछ खरीदती थी और न ही वस्तु-विनिमय करती थी। बल्कि प्रकृति प्रदत्त चीजों से संतुष्ट रहती थी और वे चीजें प्रचुरता में उपलब्ध थीं। वे लोग पूर्ण स्वतंत्र जीवन जीते थे। थॉमस मोर के यूटोपिया ने एक नई सोच को आकार दिया, जो पूर्ववर्ती सभी कल्पनाओं से आगे था।

यूटोपियन लोग आनंद को ही जीवन का चरम लक्ष्य मानते हैं, किंतु वह आनंद अत्यधिक धन-संपदा, विलासितापूर्ण जीवन और झूठे प्रदर्शनों से जन्मा नहीं है, बल्कि अच्छे कर्मों की उपज है। यह स्थिति थामस मोर के समय के इंग्लैंड के समाज और शासन व्यवस्था के ठीक उलट थी।

थॉमस मोर तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य में एक उच्च पदाधिकारी थे। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इग्लैंड की दुरवस्था देखी थी। इंग्लैंड के शासक लंपट और भोग में डूबे हुए थे। इस लंपटता और भोग को जारी रखने के लिए शासकों ने  नागरिकों के जीवन को नरकीय बना दिया था। थॉमस मोर इन स्थितियों से उद्विग्न थे, अतः उन्होंने इंग्लैंड के विपरीत एक ऐसे कल्पलोक का निर्माण किया, जो उस समय की सारी बुराइयों से मुक्त एक अनोखा आदर्श संसार था। मोर का उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के विपरीत एक आदर्श राज्य का स्वरूप प्रस्तुत करना था।

मोर के आदर्श राज्म में शासक बुद्धिजीवियों के बीच से निर्वाचित होते थे। प्रशासन के सभी अंगों के बीच पारस्परिक संबंध था। राज्य की सर्वोच्च सत्ता सिनेट के हाथ में थी। किसी की कोई निजी संपत्ति नहीं थी। सारी चीजें सामुदायिक थीं। राज्य में खाद्यान्न का विशाल भंडार था। लोग जरूरत के अनुसार चीजें लेते थे। सभी एक साथ आहार-विहार करते थे। अस्पताल में रोगियों का सार्वजनिक उपचार होता था। गांवों में खेत के पास ठहरने के लिए घर होते थे। हर घर सबका घर होता था। सभी लोग सभी तरह का काम करते थे। किसी काम को छोटा नहीं माना जाता था। लोगों का प्रधान कार्य खेती था। वे अपने कपड़े भी खुद बनाते थे। उत्पादन काफी होता था। काम से बचे हुए समय का उपयोग मानसिक उन्नति के लिए किया जाता था। कहीं कोई अभाव नहीं था। लोग कानून की शिक्षा लेते जरूर थे, परंतु उसका दुरुपयोग नहीं करते थे। आदर्श राज्य के लोग युद्ध से नफरत करते थे, लेकिन आत्मरक्षा के लिए सैन्य प्रशिक्षण अवश्य प्राप्त करते थे। आदर्श राज्य में कोई आधिकारिक धर्म नहीं था। हर कोई अपनी आस्था के अनुसार धर्म का पालन कर सकता था।

थॉमस मोर ने राजा का विरोध नहीं किया था, सिर्फ आदर्श राज्य का कल्पलोक रचा था, जिसेे सत्ता ने चुनौती के रूप में देखा। थामस मोर पर राजद्रोह का मुकदमा चला और उसे अप्रैल 1835 में मृत्युदंड मिला।

15वीं सदी में रैदास ने कुछ उसी तरह ‘बेगमपुरा’ की कल्पना की थी और 16वीं सदी में तुलसीदास ने ‘रामराज्य’ की कल्पना की थी। इस प्रकार निरंकुश राज्य में यूटोपिया की रचना को वर्तमान से असहमति के रूप में देखा जा सकता है।

टॉम हॉजकिंसन का दावा है कि थॉमस मोर के आदर्श राज्य की कल्पना ने बीसवीं सदी में गांधी की सोच से लेकर 21वीं सदी के सिलिकॉन वैली के टेक्नोलॉजी के दिग्गजों तक को प्रभावित किया। गांधी के संबंध में कहा जाता है कि उन्होंने लियो टॉल्स्टॉय के साथ 1909 में पत्राचार किया था। दोनों व्यक्तियों ने भारतीय शासन, प्रतिरोध, शांतिवाद, अहिंसा, आजादी आदि मुद्दों पर चर्चा की थी। गांधी ने टाल्स्टॉय से प्रेरित होकर दक्षिण अफ्रीका में 1910 में एक सहकारी कॉलोनी शुरू की थी और उसका नाम ‘टॉल्स्टॉय फार्म’ रखा था।

यूरेपीय रिनेसां के दौर के भविष्य स्वप्न

17वीं सदी की शुरुआत में कल्पलोकात्मक समाज के कई महत्वाकांक्षी वृत्तांत सामने आए। उनमें इटली के दार्शनिक टॉमासो कैंपानेला का ‘सिटी ऑफ द सन’ महत्वपूर्ण है। यह भी विश्व का एक आदर्श मॉडल रखता है। इस पर प्लेटो के ‘रिपब्लिक’ तथा थॉमस मोर के ‘यूटोपिया’ का प्रभाव है। सूर्य का शहर एक पहाड़ी के सात स्तरों पर है। प्रत्येक स्तर का नाम ग्रहों के नाम पर रखा गया है। शहर चारों ओर से एक रक्षात्मक दीवार से घिरा है। यहां रहने वाले लोगों को सोलारियन कहा जाता है। सबसे ऊपर एक भव्य मंदिर है, जो यहां के समाज और ज्ञान का शिखर है।

यहां के निवासियों को किसी चीज का अभाव नहीं है और न उन्हें कोई शिकायत है। कहीं गरीबी नहीं है। लोग इतने स्वस्थ हैं कि प्रायः सौ वर्षों तक जीवित रहते हैं। शासक श्रेष्ठ बुद्धिसंपन्न और ईमानदार होते हैं। पुजारियों-वैज्ञानिकों-विद्वानों की एक श्रेणी शहर का नेतृत्व करती है। सर्वोच्च पुजारी को महायाजक या सूर्य कहा जाता है।  समाज कई वर्गों में विभाजित है। इस राज्य में शिक्षित उच्च वर्ग के लोग ही शासन कर सकते हैं। सोलारियम का धर्म विज्ञान है। यहां के निवासियों का लक्ष्य तर्कसंगत ज्ञान के सोपानों पर चढ़ना है। सोलारियन समाज में सामूहिक स्वामित्व है, कोई निजी संपत्ति नहीं है।

यूरोपीय रिनेसां के युग में आधुनिकता अपना आकार ढूंढ़ रही थी। ऐसे-ऐसे आदर्श राज्य और समाज की कल्पना की जा रही थी, जो मनुष्य जाति को नई बौद्धिक दिशाओं में ले जाए। फ्रांसिस बेकन ने 1624 में ‘न्यू अटलांटिस’ की रचना की थी। यह वैज्ञानिक भावना से ओतप्रोत है। बेकन ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां व्यक्ति पूरे सौहार्द एवं शांति का जीवन जीता है। इस तरह का समाज प्रकृति के अध्ययन, ज्ञानार्जन तथा विज्ञान के प्रति समर्पित है।

ऐसे सभी लेखक ही मानव जीवन में सुधार के लिए नए आविष्कार का आग्रह करते हैं। जेम्स हैरिंग्टन का ‘कॉमन-वेल्थ ऑफ ओशियाना’ राजनीतिक सुधार के आदर्श रखता है। विलियम गॉडविन का ‘पॉलिटकल जस्टिस’ मानवता के एक नए युग की कल्पना करता है, जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता चरम मूल्य है। विलियम गॉडविन मानते हैं कि अतीत में नई व्यवस्था की तलाश करना निरर्थक है, क्योंकि मानवता का अब तक का इतिहास अपराधों का इतिहास है। आदर्श राज्य और समाज की विभिन्न कल्पनाओं ने अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम (1775-1785) और फ्रांसीसी क्रांति (1789) की प्रेरणा का काम किया था। कॉम्टे, प्रूडों जैसे राजनीतिक सुधारकों ने न केवल यूटोपियन विचारों को प्रसारित किया, बल्कि अपने विचार को वास्तविक जामा पहनाने के लिए कार्य भी किए।

एच. जी. वेल्स ने 1905 में ‘ए मोडर्न यूटोपिया’ नामक पुस्तक लिखी थी। इसमें एक ऐसी दुनिया का वर्णन है, जिसे स्वर्ग कहा जा सकता है। वहां किसी तरह की बुराई नहीं है। इस दुनिया में शासी निकाय वाला विश्व राज्य है, जिसमें जेंडर और नस्ल की समानता है। यहां एक ही भाषा, एक ही प्रकार के रीति-रिवाज और एक जैसे कानून हैं तथा हर तरह की स्वतंत्रता है। सारे काम मशीन से किए जाते हैं। वेल्स का मानना था कि भविष्य में एक ऐसे राज्य का निर्माण होगा जो एक विश्व राज्य की तरह होगा। राष्ट्रीयताओं का कोई महत्व नहीं रह जाएगा।

समाजवादी दौर के भविष्य स्वप्न

आधुनिक युग के समाजवादी चिंतन के क्षेत्र में यूटोपिया के कुछ रूप सामने आए। 1700 से लेकर 1850 के बीच ऐसे तीन समाजवादी चिंतक विशेष रूप से विख्यात हुए- रॉबर्ट ओवेन, सेंट-साइमन और चार्ल्स फूरियर। ये समाज सुधारक थे। इन विचारकों ने समाज से वर्ग भेद को मिटाने के लिए आवाज उठाई। इनके अनुसार पूंजीवादी दुनिया तर्कहीन और अन्याय पर आधारित है।

ऐसे समाज की कल्पना की जाने लगी जिसका प्रत्येक सदस्य सर्वजनहिताय कार्य करेगा। इस दौर में फैक्टरी की कार्य प्रणालियों में सुधार के लिए आदर्श घोषित होने लगे।

फ्रांसीसी सिद्धांतकार हेनरी सेंट साइमन (1760-1825) आधुनिक विज्ञान द्वारा संचालित औद्योगीकृत राज्य की स्थापना चाहते थे। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने यह प्रस्ताव रखा कि यूरोप के देश युद्ध रोकने के लिए एक संघ बनाएं।    एक अन्य फ्रांसीसी विचारक चार्ल्स फूरियर एक सुव्यवस्थित कृषक समाज चाहते थे, जो परस्पर सहयोग और लैंगिक समानता पर आधारित हो। उन्होंने फालांक्स नामक संस्था की स्थापना की थी। वे सभी विद्वान निष्क्रिय विचारक नहीं थे, सामाजिक कार्यकर्ता भी थे।

अमेरिकी लेखक एडवर्ड बेलामी (1850-98) ने ‘लुकिंग बैकवर्ड’ और ‘न्यूज फ्रॉम नोव्हेयर’ पुस्तकों के माध्यम से वर्ग संघर्ष दिखाया है तथा श्रमिक लोकतंत्र का समाधान रखा है।

कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने वैज्ञानिक समाजवाद की अवधारणा की स्थापना में यूटोपियन समाजवादियों के अवदानों को स्वीकार किया था। एंगेल्स ने सेंट-साइमन को प्रतिभाशाली और व्यापक दृष्टिकोण वाला चिंतक कहा था। इन्होंनें समाज के ऐतिहासिक विकास को दिखाते हुए वर्ग संघर्ष, साम्यवाद, ‘सर्वहारा की तानाशाही’ और ‘राज्य के विलोप’ की जो धारणाएं दीं, वे एक दौर में दुनिया में बड़ी प्रेरणा बनीं और कई परिवर्तनों में सहायक हुईं, हालांकि ये ‘यूटोपिया’ ही साबित हुईं। 21वीं सदी में उपर्युक्त

जब आदर्श राज्य और समाज के सपने चकनाचूर हुए

विक्टर ह्युगो ने 19वीं सदी में यूटोपिया के संबंध में कहा है, ‘भविष्य निर्माण के लिए सपना देखने से बेहतर कुछ नहीं है। आज जो यूटोपिया है, वही कल सचाइयों से निर्मित जीवंत व्यवस्था होगी।’

वहीं नए युग के एक दार्शनिक स्लावोज जिजेक (1949- ) ने यूटोपिया को व्याख्यायित करते हुए कहा है, ‘यूटोपिया के दो गलत अर्थ हैं, एक- आदर्श समाज की कल्पना करने की वह पुरानी धारणा, जिसे हम जानते हैं कि वह कभी साकार नहीं होगी, दूसरा, पूंजीवादी यूटोपिया, जिसमें नई विकृत इच्छाएँ पनपती हैं, जिनकी पूर्ति के लिए न केवल व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है, बल्कि उसके लिए आग्रह भी किया जाता है। सच्चा यूटोपिया तब होता है जब आप बिना किसी समस्या के जीवित रहने की शुद्ध कामना से वह कार्य करने को संकल्पित होते हैं जो संभव है। पर उसका कोई रास्ता नहीं दिखता। ऐसी स्थिति में आपको एक नई जगह का आविष्कार करना पड़ता है। यूटोपिया स्वतंत्र कल्पना की तरह नहीं है। यह आंतरिक जरूरत का मामला है। आप इसकी कल्पना करने के लिए बाध्य हैं। यह एकमात्र तरीका है जिसकी आज हमें जरूरत है।’

डिस्टोपिया के नजारे

प्राचीन और आधुनिक युगों के धर्म या राजनीति से जुड़े व्यक्तियों ने अपनी ऐतिहासिक सीमा में मानवता को उत्थान की ओर ले जाने के लिए अनगिनत भविष्य स्वप्न देखे थे। वे विफल हुए, यह महत्वपूर्ण नहीं है। उन स्वप्नों ने मानवता की चिंताओं को जिंदा रखा, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। ऐसे स्वप्नों के पीछे आशावाद था। इसी तरह कुछ ऐसी भविष्य कल्पनाएं भी की गईं, जिनमें जीवन की गुणवत्ता और आदर्शों के विनाश के दृश्य थे, बल्कि पृथ्वी के भयानक संकट से घिर जाने के। इन्हें डिस्टोपिया कहा गया।

डिस्टोपिया शब्द का सबसे पहले प्रयोग जॉन स्टुअर्ट मिल ने किया था। डिस्टोपिया भी एक काल्पनिक लोक है, जो यूटोपिया के ठीक उलट है। वह एक ऐसी जगह है जहाँ मानवता समाप्त हो जाती है और लोग भय का जीवन जीते हैं। यहां अधिनायकवादी शासन है। डिस्टोपिया के सामान्य तत्व राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों से लेकर प्रौद्योगिकी, धर्म, मनोविज्ञान, पर्यावरण में होने वाले नकारात्मक परिवर्तन आदि से संबंधित हैं। डिस्टोपिया एक ऐसा समाज है, जिसमें अधिकांश लोग अवसाद का जीवन जीते हैं। बीसवीं शताब्दी में कई डिस्टोपियन उपन्यास लिखे गए, जिनके लेखकों में सैमुअल बटलर, एच. जी. बेल्स, एल्डस हक्सले, जॉर्ज ऑरवेल, ब्रैडबरी रे आदि प्रमुख हैं।

दरअसल बीसवीं सदी के दो विश्व युद्ध, शीत युद्ध और वैश्वीकरण के युग की निराशाओं ने डिस्टोपियन साहित्यिक उपशैली को जन्म दिया। लेखकों ने ऐसे समाज का चित्रण करना शुरू किया, जहां चरम अमानवीय विसंगतियां हैं। नागरिकों को नियंत्रण में रखने के लिए कार्पोरेटों द्वारा प्रोपगैंडा का उपयोग किया जाता है। सरकार निरंकुश है। लालफीताशाही अपने चरम पर है। समाज को कंप्यूटर, रोबोट तथा वैज्ञानिक माध्यमों से नियंत्रित किया जाता है। धार्मिक विचारधाराओं का उपयोग भी तानाशाही के लिए किया जाता है।

ऐसे दुःस्वप्नलोक में मुक्त विचार एवं आजादी के लिए अवकाश नहीं है। लोगों को बाहरी दुनिया से भय बना रहता है। रचनाकारों एवं सिद्धांतकारों ने जहाँ यह साबित करने के लिए यूटोपिया लिखा कि अगर स्थितियां बदल दी गईं तो दुनिया बहुत अच्छी हो सकती है, वहीं डिस्टोपिया के लेखकों ने यह चेतावनी दी कि अगर स्थितियां नहीं बदली गईं तो दुनिया बहुत बुरी हो सकती है।

एल्डस हक्सले प्रसिद्ध डिस्टोपियन लेखक हैं, जिन्होंने अपने उपन्यास ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ (1932) में चेतावनी दी थी कि अब प्रौद्योगिकी तेजी से प्रभावी भूमिका निभाएगी और यदि मानव गतिविधि के सभी पहलुओं पर सरकारी नियंत्रण पूर्ण हो जाता है, तो अगले 500 वर्षों में पृथ्वी पर जीवन वर्तमान की तुलना में बिलकुल भिन्न होगा। गगनचुंबी इमारतें ऊंची हो जाएंगी, कारखाने अधिक कुशल हो जाएंगे, यात्रा मुख्य रूप से हवाई मार्ग से होगी। इस समाज में शादी जैसी कोई चीज़ नहीं होगी। सेक्स पूरी तरह खेल के लिए होगा। यहां मनुष्य की आत्मा की मृत्यु हो चुकी होगी। स्वतंत्र व्यक्तित्व, कला और साहित्य के लिए कोई स्थान नहीं बचेगा। हक्सले ने उन कई गैजेट्स का पूर्वाभास दिया, जिन्हें हम आज देख रहे हैं।

जॉर्ज ऑरवेल ने द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण हुई तबाही को याद करते हुए ‘एनिमल फार्म’ (1949) जैसा उपन्यास लिखा था, जो उस समय तक लिखे गए सबसे डरावने उपन्यासों में से एक है। अमेरिकी लेखक ब्रैडबरी रे का ‘फॉरेनहाइट 451’ उपन्यास (1953) एक ऐसी स्थिति की कल्पना करता है, जिसमें नियम-कानून, साहित्य और दूरदर्शन आदि विलुप्त होने के कगार पर हैं। उसका एक पात्र गाई मोंटाग फायरमैन है, जो आग बुझाने के बजाय आग लगाता है। वह मुद्रित पुस्तकों तथा घरों को नष्ट करता है।

डिस्टोपिया की विचारधाराओं से संबंधित कई फिल्में भी आईं, जिनमें मेट्रोपोलिस (1926), द मैन फ्रॉम प्लानेट द (1951), प्लानेट ऑफ द एप्स (1968), मैड मैक्स (1979), ब्लेड रनर (1982), डार्क सिटी (1998) आदि प्रमुख हैं।

आज सामान्यतः मनुष्य की कल्पनाशीलता का ह्रास हुआ है। वह भविष्य के बारे में नहीं सोचता और वर्तमान केंद्रिक है। वह आदर्श राज्य और आदर्श समाज के बारे में सोचना बंद कर चुका है। भावी दुनिया के कृत्रिम बुद्धिमत्ता से चलने की बात जरूर की जा रही है। ऐसी तैयारी चल रही है कि फ्लाइंग टैक्सी हो, मरुभूमि की छाती पर ऐसाअनोखा भवन बने जो 106 मील लंबा हो।

इस दौर में जी-21 की शिखर वार्ताएं हो रही हैं, लेकिन लोगों का दिल छोटा होता जा रहा है, दिमाग मेधारोबो और कंप्यूटर मशीनों को सौंप दिया गया है। कहना मुश्किल है कि पश्चिम धीरे-धीरे अपनी खिड़कियां बड़ी कर रहा है या बंद कर रहा है।

 

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