हिंदी अनुवाद- राजेश कुमार झा
 लेखक, भाषाविद और अनुवादक।

सीरी गुणसिंघे

(1925-2017) श्री लंका के सुप्रसिद्ध कवि और आलोचक।प्रमुख कविता पुस्तकें :अबि निकमाना’, ‘राथु केकुलाऔर अलकामंडावा

भैंसा

जल रही थी मेरी दाढ़ी
घबराकर मैं भाग रहा था
दौड़ता हुआ नीचे की ओर
होने वाला था भोर
लादे हुए अपनी पीठ पर
जीवन के सारे बोझ

तभी मैंने देखा सड़क किनारे
घास के फैले हुए विशाल ढेर पर
दोनों आँखें बंद किए पसरे हुए थे आप
जैसे पसरा रहता है मोटा व्यापारी
गिद्ध की आंख लिए आराम-कुर्सी पर

तड़-तड़ कर फटती धरती पर
मैं पटक रहा था पैर
आपमें सुगबुगाहट तक नहीं थी
बंद किए कान आप बहरे बने थे
बादलों की गड़गड़ाहट-सी मेरी आवाज
मेरी बिजली की सी गति भी
नहीं कर रही थी आपको परेशान

गंदे दांत, बदरंग चेहरा लिए
पहाड़ की गीली गोद में
हरी-भरी दलदली घनी घास में
कीचड़ के बीच जिस तरह
फरमा रहे थे आप आराम
ओ मेरे भैंस!
कैसा हो यदि मैं भी उसी तरह
करने लगूं आराम?

आप, जो खड़ा भी नहीं हो सकते
हां, आप, मान्यवर महोदय!

आप दोनों आंखें बंद किए डकारते हुए
क्या किसी अनुष्ठान में लगे हैं?
जीवन की नश्वरता पर चिंतन में मग्न
या आप नथूना फैलाए
हर हल्के फोंफ के साथ
जप रहे हैं कोई माला?

अधखिले फूल पर
मंडराती मक्खियों की तरह
मानो विचार भिनभिना रहे हैं
आपकी मिचमिचाती आंखों में
बता सकते हैं, क्या है रहस्य उनमें?

सिर आधा उठाए पगुरा रहे हैं
छितराए ओठों से चू रहा है लार
मानो बिना दांत वाले मुँह में
कोई चबा रहा हो पान
अलस अतीत रहा है आपका

पूरी धरती और आकाश का भार
रूई के फाहे के गट्ठर की तरह
आप ढो रहे हैं सजीले सींगों पर
कैसे करते हैं यह सब ओ मेरे भैंस?

आपको नहीं पता अतीत के बारे में
आप नहीं जानते क्या हो रहा है आज
कोई अंदाज नहीं कल क्या होने वाला है
अंतहीन समय है आपके पास

आप मेरे एकमात्र देवता हैं
पत्थर से गढ़े हुए।

मालिंदा सेनेविरत्ने

(1965-) कवि, आलोचक और पत्रकार।

मेरे देश की धड़कन

मेरे देश की धड़कनें
तरंगों की तरह चट्टानों से टकराती हैं
छिटक पड़ती हैं फुहारों और गीतों में
मानसून की उफनती नदियों में गरजती हैं
कभी चू पड़ती हैं एक अनिच्छुक बूंद की तरह
पेड़ के पत्तों से

मेरे देश की धड़कनें
गूंज उठती हैं ढाक की आवाज में
नृत्य ताल के साथ
निकल आती हैं उडेकी, गेटा बेरा
और थम्माटमा के भीतर से
दिखाने लगती हैं कलाबाजियां
धूमधाम से भरी श्रद्धा की गलियों में

मेरे देश की धड़कनें
हल के फाल से पलट रही मिट्टी के
हर कण में हैं
बैल हांकते किसानों की टिहकारी पर
सवार होकर आती हैं
नाचती है खलिहानों के गीतों में
छूती हैं तालाब के तटबंधों की रेखाओं को
गांव में आए भारी सुखाड़ के दिनों में
उड़ती हैं गर्म धूलों के साथ
रात आने पर हो जाती हैं मंद
सुबह होते ही हो जाती हैं फिर चाक-चौबंद

मेरे देश की धड़कनें
व्यक्त हुई हैं गद्य और पद्य में
उकेरी गई हैं चट्टानों और पांडुलिपियों में
संजोई गई हैं सामूहिक स्मृतियों में
बसती हैं जीवन और आजीविका में

मेरे देश की धड़कनें उसी तरह महाकाव्य हैं
जैसे हैं दूसरे देशों में
धड़कनें बनी हैं जीत और हार से
चोरी और उदारता से
साजिश और अनुराग से
रक्तपात और परोपकार से
राजा-रानियों के इतिहास से
लोगों के जीवन और घटनाओं से
कथाओं के भंडार से
आक्रमण, रक्षा और पुनर्विजय से

मेरे देश की धड़कनें सह सकती हैं
हर आघात
भले कभी उसे कर दिया गया हो लाचार
रौंदा गया हो आक्रमणकारियों या
अत्याचारियों के पैरों तले
पर ये इतनी कमजोर नहीं हैं कि
सहज हो जाएं नष्ट

मेरे देश की धड़कनों में है संकल्प शक्ति
हर त्रासदी पर वह कर सकती है काबू
वह देती है ऊर्जा हर संकट को हँसते हुए
सहने और आगे बढ़ने की

मेरे देश की धड़कनें निकलती हैं
हँसी और आंसू बनकर
चाय की प्यालियों में भाप बनकर
पान-सुपारी का लाल रंग बनकर
पासियों का नाच बनकर
मछुआरों का धैर्य बनकर
दक्षिणी व्यापारियों की धूर्तता बनकर
व्यवसायियों का एजेंट बनकर
वे प्रकट होती हैं प्रायद्वीप के लोगों की
किफायतों से त्रस्त जिंदगी में
अंगारों पर चलने वाले भक्तों की आस्था में
बैलगाड़ियों में झूलती घंटियों में

मेरे देश की धड़कनें दिखती हैं
पोया के दिनों और अंत्येष्टि पर सफेद
मई दिवस पर लाल
मतदान के दिनों में बहुरंगी
इन्होंने देखे हैं काले दिन
और आंसुओं में नहाए सूर्यास्त को
मृत्यु विनाश और विखंडन को
फिर भी वे ऐसी मरहम हैं
जो भयानक घावों को भर देती हैं
यह एक गीत है जो गले लगा लेती है
लगातार करती है ध्यान के लिए आह्वान

मैंने अपने देश की धड़कनें सुनी हैं
समानाला कांडा पर बजती हुई घंटियों में
पेड़ों पर छत्ता बुनते पिरिथ के
नर मधुमक्खियों की मधुर गुंजार में
प्रार्थना की पुकार में
अल्लाहु अकबर
चर्च के सामूहिक गीत और भजनों में
और पुजारी के मंत्र जाप में

मेरे देश की धड़कनें वास्तव में वर्णनातीत हैं
वे मुझे आह्लादित करती हैं
क्योंकि मैं देश का धंधा होते
नहीं देखना चाहता
मैं उसे सीमाबद्ध और लहूलुहान
नहीं देखना चाहता
मैं एक ऐसे देश में रहता हूँ जिसकी
धड़कनें मेरे कानों में गूंजती हैं
और शायद दूसरों के भी
वे मुझे बनाती हैं सहृदय
देती हैं जीवन और
मेरे भीतर बनाए रखती हैं सांसें।

संपर्क : हाउस नं. 222, सी.. ब्लॉक, स्ट्रीट नं. 221एक्शन एरिया1, न्यू टाउन, कोलकाता700156 मो. 9903213630