
तुर्की और सीरिया में मरनेवालों की संख्या लगभग ४१ हजार से ऊपर पहुंच गई है।विश्व में ऐसा विनाशकारी भूकंप बहुत कम आया है।हजारों मकान ढेर हो गए।जिन सड़कों पर भारी ट्रैफिक रहती थी, वहां धूल-धूसरित शवों के स्तूप बन गए।बर्फीली ठंड के बीच जो राहत कार्य चल रहे हैं, वे अपर्याप्त हैं।मलबे में जीवन की खोज हो रही है, पर मिल रहे हैं मृत्यु और विनाश के चिह्न।कई धर्मस्थल ढहे हुए हैं।यदि जान बच गई है तो यह सवाल मुंह बाए खड़ा है- क्या खाएं? सीरिया के अशांत इलाकों में, राहत सामग्री नहीं पहुंच पा रही है।बच गए लाखों लोग अपने ही देश में शरणार्थी हैं, बच्चे अवसाद की चपेट में हैं।इस आपदा के शिकार लाखों लोगों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हुए प्रस्तुत हैं दो भिन्न देशों की कवियों की दो कविताएं।

अब्दुल लतीफ ए. फौद ईजीप्ट के कवि
सीरियन भूकंप पीड़ितों का ईमेल कहां है दया कहां है मानवता? जायोनी बिल्ली खा गई है उन्हें काले सागर में कहां है न्याय जो सामना कर सके प्राकृतिक आपदा का न्याय की चोरी हो गई है सुनहरी हरी सड़कों पर चलने के दौरान … कहां हैं पश्चिमी और अमेरिकी लोग? अपनी अत्याचारी सरकारों की झूठी मृत्यु के बाद वे सभी रोमांटिक हरे बिस्तरों पर सेक्स में मग्न हैं … सीरिया के भूकंप पीड़ितों का यह प्रथम और अंतिम ई-मेल है वे हमसे भावनाओं की बातें कहते हैं पर दुनिया की आंखें बहुत ही रुग्ण हैं … स्वतंत्र दुनिया का हृदय कहां खो गया? धातु के हो गए हैं अमेरिकी दिल लकड़ी के हो गए हैं यूरोपियन दिल कितनी तेजी से और दर्दनाक हुई है भूकंप पीड़ितों की मौत … कहां हैं मानवाधिकारों पर निगरानी रखने वाली आवाजें? वे अहर्निश बोलते रहे हैं देश के अपराधियों पर आज मौन हैं और पढ़ रहे हैं गद्दारी की किताबें … पश्चिमी नेता तब तक मदद करने से करते रहते हैं इनकार जब तक पढ़ नहीं लेते एक हफ्ते तक कानून की किताबें वे हमारे भविष्य को चुराने में व्यस्त हैं थोड़ा-सा भी रुकने को नहीं हैं तैयार दरअसल वे इजरायली लोकतंत्र के बुरी तरह गुलाम हैं … अमेरिकी प्रेस सीरियन बच्चों को भारी चट्टानों का हिस्सा बनते देख रहा है यूरोपियन अधिकारियों ने सीरियन महिलाओं को फंसा हुआ छोड़ दिया है भूख और ठंड रूपी ड्रैगन के जबड़ों में पचास लाख पीड़ित लोग दबे हैं चट्टानों के नीचे सबसे खतरनाक भूकंप की चपेट में।
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