युवा गजलकार।

 

मौजें

कभी देखो अगर दरिया करें जब शोर ये मौजें
तलातुम से निकलने को लड़ें जब ज़ोर से मौजें

सुनो उनकी कहानी को पढ़ो उनकी रवानी को
कहें ख़ामोश आवाज़ें किसी बेबस कहानी को

नहीं मालूम किसकी जुस्तजू में घूमती हैं ये
किसे बेसाख़्ता साहिल पे आ के ढूंढ़ती हैं ये

उमड़ आती हैं साहिल पर भंवर पे ये नहीं झुकतीं
समंदर बारहा रोके मगर मौजें नहीं रुकतीं

नहीं मिलता सिला कोई न कोई दाम मिलता है
मगर साहिल पे मौजों को बड़ा आराम मिलता है

बज़ाहिर तो ये लगता है बड़ी पुरजोश हैं मौजें
हक़ीक़त में अगर देखो बड़ी ख़ामोश हैं मौजें

अजब सैलाबे ख़ामोशी कभी दरिया में लाती हैं
कि जब थक हार कर मौजें सरे दरिया पे छाती हैं

समंदर ही मुक़द्दर है अगर ये मान लें मौजें
कभी आएं न साहिल पे ये दरिया थाम लें मौजें

करें ना शोर मौजें तो ये दरिया ही ठहर जाए
कोई जुंबिश न हरकत हो समंदर ही ये मर जाए।

मकान सं 301, यादवों वाली गली, मोहल्ला ख़लील ग़र्बी, निकट बड़ी मस्जिद, शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) –242001मो. 8429118260