(16 मई 1948 – 9 दिसम्बर 2020) कोरोना संक्रमण के शिकार हिंदी के एक बड़े ही महत्वपूर्ण कवि और लेखक। ‘जनसत्ता’ में पत्रकारिता से जुड़े। महत्वपूर्ण काव्य कृतियाँ- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, स्मृति एक दूसरा समय है’, ‘नए युग में शत्रु’।
रोज़ कुछ भूलता कुछ खोता रहता हूँ
चश्मा कहां रख दिया है
क़लम कहां खो गई है
अभी-अभी यहां नीला रंग देखा था
वह पता नहीं कहां चला गया
चिट्ठियों के जवाब देना
कर्ज की किस्तें चुकाना भूल जाता हूँ
दोस्तों को सलाम और विदा कहना
याद नहीं रहता
अफसोस प्रकट करता हूँ कि मेरे हाथ
ऐसे कामों में उलझे रहे
जिनका मेरे दिमाग से कोई मेल नहीं था
कभी ऐसा भी हुआ जो कुछ भूला था
उसका याद न रहना भूल गया।
मां कहती थी उस जगह जाओ
जहां आख़िरी बार तुमने उन्हें देखा उतारा या रखा था
अमूमन मुझे वे चीजें मिल जातीं
और मैं खुश हो उठता
मां कहती थी चीजें जहां होती हैं
अपनी एक जगह बना लेती हैं
और वह आसानी से मिटती नहीं
मां अब नहीं है स़िर्फ उसकी जगह बची हुई है
चीज़ें खो जाती हैं लेकिन जगहें बनी रहती हैं
हम कहीं और चले जाते हैं
अपने घरों लोगों अपने पानी और पेड़ों से दूर
मैं जहां से
एक पत्थर की तरह खिसक कर चला आया
उस पहाड़ में भी एक छोटी-सी जगह बची होगी
इस बीच मेरा शहर
एक विशालकाय बांध के पानी में डूब गया
उसके बदले
वैसा ही एक और शहर उठा दिया गया
लेकिन मैंने कहा मेरा शहर एक खाली जगह है
घटनाएं विलीन हो जाती हैं
लेकिन वे जगहें बनी रहती हैं
जहां वे घटित हुई थीं
जमा होती जाती हैं
साथ चलती रहती हैं
याद दिलाती हुईं कि हम क्या भूल गए हैं
और हमने क्या खो दिया है।