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हिंदी प्रस्तुति : बालकृष्ण काबरा ‘एतेश’ कवि और अनुवादक।अद्यतन कविता संग्रह : ‘छिपेगा कुछ नहीं यहां’।विश्व काव्यों के अनुवादों के दो संग्रह ‘स्वतंत्रता जैसे शब्द’ और ‘जब उतरेगी सांझ शांतिमय’ और विश्व कथाओं और लेखों का संग्रह प्रकाशित ‘ये झरोखे उजालों के’। |
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ज़ैनब अख़्लाकी
काबुल, अफगानिस्तान में निवास। ‘अनटोल्ड राइट अफगानिस्तान प्रोजेक्ट’ के लिए लेखन।इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हाल ही में अफगानी महिला कथाकारों की कहानियों के अंग्रेजी अनुवाद का संग्रह ‘माई पेन इज़ द विंग ऑफ ए बर्ड’ का प्रकाशन हुआ है।यह कहानी इसी संग्रह से ली गई है, जो अंग्रेजी में ‘ब्लॉज़म’ शीर्षक से प्रकाशित है।
दरी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद : नेगीन कारगर
(यह कहानी अफगानिस्तान की स्कूली छात्राओं, विशेषत: काबुल के दश्त-ए-बारची में सैयद उल-शुहादा हाई स्कूल की छात्राओं के सम्मान में लिखी गई है।कहानी ८ मई, २०२१ की वास्तविक घटनाओं पर आधारित है।)
मुझे याद है कि कक्षा शुरू होने से पहले स्कूल में हम सेब के पेड़ के नीचे बैठे थे और शिक्षा मंत्री की हँसी उड़ा रहे थे।ग्रीन टी पीते हुए कलम और कागज लेकर हम अपने विरोध की तैयारी कर रहे थे।हमें अपने नारे का चयन करना था।मैंने सुझाव दिया : ‘मंत्री जी जागो! हमारे शिक्षक और पुस्तकें ला दो!’
शहरबानो मुझ पर हँसने लगी।तब मैंने कहा, ‘यह कैसा रहेगा : मंत्री जी हैं अक्षम, पूरे नहीं कर सकते अपने वचन!’ मुझे अपने नारे पसंद आए पर शहरबानो हँसती रही।उसने अपने सफेद रुमाल के कोने से अपनी बहती आंखों को पोछा।
‘नेकबख़्त कुछ अच्छा बताओ, मंत्री जी को नाराज न करो।’
मैंने कहा, ‘जब प्रिंसिपल ने तुम्हें विरोध करने की अनुमति दी, तो क्या उन्होंने कहा कि हमें मंत्री जी को खुश रखना है?’
‘बात यह है कि हमें उनका ध्यान खींचना है, ताकि वे वही करें जो हम चाहते हैं।’
अंत में हमने यह लिखने का निर्णय लिया : ‘प्रिय मंत्री जी, शिक्षक चाहिए हमें! प्रिय मंत्री जी, किताबें चाहिए हमें!’ आपस में हमने मंत्री जी के लिए और भी बहुत सी बातें कहीं, पर हमने उन्हें नहीं लिखा।शहरबानो ने कहा, ‘यदि मैं शिक्षा मंत्री बन जाऊं, तो मैं किसी भी लड़की को अशिक्षित नहीं रहने दूंगी।’ मैं फिर हँसी, किंतु मैंने शहरबानो की ओर देखा कि वह अब मुझ पर नहीं हँस रही थी।मैंने उससे गंभीरतापूर्वक कहा, ‘लेकिन शहरबानो, तुम दिवास्वप्न देख रही हो! अगले साल जब हम स्कूल खत्म करेंगे, तब हमारी पढ़ाई का अंत हो जाएगा: तुम शिक्षा मंत्री कैसे बन सकती हो?’
शहरबानो ने दूर बगीचे में खिले फूलों को देखा।उसने कहा, ‘इन फूलों को देखो, इनके प्रस्फुटन को याद रखो।मैं तुमसे कह रही हूँ कि एक दिन मैं शिक्षा मंत्री बनूंगी और घर-घर जाकर परिवारों से कहूंगी कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें।जब वे छोटी लड़कियां स्कूल जाएंगी तो मैं उन्हें नोटबुक और पेन दूंगी।मैं तब तक उन्हें नोटबुक और पेन देती रहूंगी जब तक कि वे पीएचडी पूरी न कर लें।’
मैंने उसे छेड़ा, ‘क्या तुम कहना चाहती हो कि तुम मेरे साथ अपनी कलम और नोटबुक शेयर करने से तंग आ चुकी हो?’
वह हँसी। ‘तुम कभी भी अपनी बेतुकी बातों से बाज नहीं आओगी।’
मैंने अपनी मां को जोर से बोलते हुए सुना था कि आज मुझे घर जल्दी पहुंचना होगा ताकि मैं कार्पेट का काम जल्दी से पूरा कर सकूं।ज्यादातर मैं स्कूल नहीं जा पाती थी, क्योंकि मुझे अपने माता-पिता द्वारा बेचे जाने वाले कार्पेटों को बुनने में मदद करनी होती थी।मैंने चेहरा बनाते हुए कहा, ‘प्रिय मंत्री जी मुझे जाना होगा, नहीं तो वे चिल्लाकर कहेंगी कि मैं स्कूल नहीं जा सकती और गड़ेरिये से मुझे शादी करनी होगी।’
शहरबानो ने कहा, ‘तुम्हारी मां, मेरी मां की बात कहां सुनती है?’
‘मैं क्या कह सकती हूँ? मेरे माता-पिता केवल इस बात की परवाह करते हैं कि लोग क्या कहेंगे? वे तो बस लोगों की ही सुनते हैं।’
‘तुम उन्हें समझाने की कोशिश क्यों नहीं करती?’
‘कोई मतलब नहीं! वैसे वे मेरी शादी अभी नहीं करना चाहते हैं, किंतु जब भी उनके पास पैसों की कमी होती है, वे इस पर चर्चा शुरू कर देते हैं।’
‘काश कि मैं कुछ कर पाती।’
‘मेरी प्यारी दोस्त, मैं अभी भी सिर्फ तुम्हारे कारण स्कूल जा पाती हूँ।’
यह बात सही थी।जब भी मैं निराश होती और स्कूल नहीं जा पाती थी तो शहरबानो एक फरिश्ते की तरह मुझे बचाने आती और बाहर ले आती, ठीक कीचड़ में फंसी कार की तरह। प्रतिरोध का विचार भी उसके मन में मुझे मदद करने के दौरान आया था।
इस तरह सब शुरू हुआ : ‘एक दिन जब एक परिवार मेरे माता-पिता से मेरा हाथ मांगने आए थे तो मैं स्कूल नहीं जा पाई।स्कूल के बाद शहरबानो मुझसे मिलने आई।उसने देखा कि मेरी आंखें लाल और सूजी हुई थीं।उसने डांटते हुए कहा, स्कूल आने के बजाय तुम क्यों रो रही हो? तुम्हें पता है आज इतिहास और भूगोल की कक्षा थी।’
मैंने उसकी बात काटी। ‘मुझे इतिहास और भूगोल की परवाह नहीं, विशेष रूप से अफगानिस्तान के भूगोल की।यह केवल युद्ध और क्रूरता, लड़ाई और तालिबान से निर्मित है।काश, मैं किसी और भूगोल में पैदा हुई होती।’
मन में रोष लिए शहरबानो ने कहा, ‘ऐसा इसलिए है कि हमारे लोग अनपढ़ हैं।यहां तक कि हमारे कई राजा और मंत्री अनपढ़ थे : वे पढ़-लिख नहीं सकते थे, वे केवल लड़ सकते थे।और ऐसे अज्ञानियों के इशारों पर लोग नाचते थे।अब वे कहते हैं कि तालिबान बदल गया है, लेकिन वे बिना किताब पढ़े कैसे बदल सकते हैं? यदि कोई व्यक्ति किताब नहीं पढ़ता है तो वह कैसे बदल सकता है? यदि हमारे सभी माता-पिता पढ़े-लिखे होते तो तुम जैसी लड़कियों को इन परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता।हमारा भूगोल इस तरह से निरंतर खतरे में नहीं होता।नेकबख्त, हमारे इतिहास को किसी न किसी मोड़ पर बदलना ही होगा।’
दिल से मुझे उसकी हर बात सही लगी।मैं चाहती हूँ कि चीजें बदलें, किंतु अपनी समस्याओं के सामने मैं हमेशा खुद को छोटा महसूस करती हूँ।मैं खामोश थी।
शहरबानो ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘क्या हुआ इस बार?’
‘मेरे माता-पिता चाहते हैं कि मैं गड़ेरिये खुदादाद से शादी कर लूं।’
‘देखो वह केवल तुम्हारा हाथ मांगने आया था।तुम्हारी शादी तो अभी नहीं हुई है न! यदि तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, तो शायद तुम अपने माता-पिता का मन बदल सको।मैं अपनी मां से कहूंगी कि वे तुम्हारी मां से बात करें।’
मैंने एक गहरी सांस ली और उसे गले से लगा लिया।मैंने उससे कहा, ‘मेरी प्यारी बहन, तुम्हारे बिना मैं क्या करूंगी?’
मैंने उसे बताया कि मेरे पिता मुझे पीटना चाहते थे जब मैंने उनसे कहा कि मैं उनके चचेरे भाई खुदादाद से शादी नहीं करूंगी, क्योंकि उससे भेड़ों की गंध आती है।मैंने उसे याद दिलाया कि जब हमने अपने रसायन विज्ञान के शिक्षक से पूछा था कि प्यार क्या है, तो वे बहुत देर तक सोचते रहे।फिर उन्होंने कहा था, ‘प्यार एक तत्व है।जो कुछ भी देखकर तुम पसंद करते हो, वही प्यार है।’
शहरबानो ने मुझसे पूछा, ‘नेकबख्त, तुम्हारा प्यार क्या है?’
मैंने कहा, ‘मुझे बस इतना पता है कि मेरा प्यार खुदादाद नहीं है।’
और हम दोनों जोर से हँस पड़े।
शहरबानो ने मेरे घर रुककर मुझे उस दिन पढ़ाए गए पाठों की जानकारी दी।ऐसा वह अक्सर करती थी।कभी-कभी वह जानबूझकर अपनी किताबें मेरे पास छोड़ जाती ताकि अगले दिन मैं स्कूल जरूर आऊँ।
हम स्कूल भी जाते तो अधिकतर हमारे शिक्षक अनुपस्थित रहते।हर बार हमारी प्रिंसिपल यह कहकर चली जाती कि अगले दिन कोई शिक्षक उपस्थित नहीं होगा।मैंने शहरबानो से कहा, ‘लगता है मेरी किस्मत में बिना रुकावट के पढ़ाई नहीं लिखी है।’ उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर ले गई।
‘यह तुम क्या कर रही हो?’
‘तुम मेरे साथ आओ, तुम्हें पता चल जाएगा।’
जब हमने प्रिंसिपल के ऑफिस में प्रवेश किया तो वे एक फोल्डर के पन्ने पलटने में व्यस्त थीं।उन्होंने विनम्रता से ऊपर देखा और कहा, ‘बताओ, तुम्हें क्या कहना है? शहरबानो ने उनसे पूछा कि क्या हम शिक्षकों और किताबों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं? उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, ‘हां, तुम ये कर सकती हो और उम्मीद करती हूँ कि तुम्हें सफलता मिले।’
शहरबानो उत्साहित थी और उसने विश्वास दिलाया कि हम यह कर सकते हैं।ऑफिस से बाहर निकलने तक मैं खामोश थी, फिर मैंने शहरबानो से कहा, ‘यह असंभव है।हम ऐसा कैसे कर सकते हैं?’ एक बार फिर शहरबानो ने अपनी बातों से मुझे कायल कर दिया और मुझे अपने भय पर शर्मिंदगी महसूस हुई।यही कारण था कि हम सेब के पेड़ के नीचे बैठकर शिक्षा मंत्री के लिए नारे तैयार कर रहे थे।
अपने पोस्टर्स तैयार करने के बाद हमने प्रिंटिंग प्रेस जाकर उनकी अतिरिक्त प्रतियां बनाईं ताकि अन्य कक्षाओं की लड़कियों को भी वे बांटे जा सकें।प्रिंसिपल ने हमारे विरोध प्रदर्शन के लिए पुलिस से अनुमति लेने में हमारी मदद की और सुरक्षा कर्मियों को निर्देश दिया कि वे हमारा समर्थन करें।उन्हें वे पत्रकार भी मिले जो काबुल के भुला दिए गए कोने में आकर हमारे प्रदर्शन को कवर कर सकें।उन्हें यहां तक आने के लिए अपना रास्ता स्वयं खोजना होगा, लेकिन किसी को भी नहीं पता था कि आगे क्या होगा?
मुझे पता था कि मेरे माता-पिता मुझे कभी भी विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं देंगे, इसलिए मैंने उनकी अनुमति नहीं ली।शहरबानो के दृढ़ निश्चय से मैं बहुत प्रभावित थी।यदि वे मुझे पीटेंगे तो पीटें- वे मेरी जान नहीं ले सकते।मैं सड़क पर शहरबानो के साथ हो गई।जब मैं सड़क के बीच में थी और यातायात को रोक रही थी, तो मुझे लगा कि मेरी रगों में खून की जगह कोई दिव्य शक्ति दौड़ रही थी।किताबों और शिक्षकों के लिए अपनी मांगों के लिए चिल्लाते हुए मैंने बहुत खुशी महसूस की।
जब-जब हम चिल्लाते थे, लोग हमारी ओर देखते थे- आखिर हमारी आवाजें हमारे दिलों से निकल रही थीं, जिनमें हमारे जीवन के दुखों और तकलीफों का गुबार समाया हुआ था।उन क्षणों में मैं स्वयं को बहुत शक्तिशाली महसूस कर रही थी।मन में एक विश्वास था कि कोई भी न तो मेरा रास्ता रोक सकता है, न ही मेरा भविष्य मुझसे छीन सकता है।
एक घंटे के विरोध प्रदर्शन के बाद मैं सैयद-उल-शुहदा हाई स्कूल की अन्य लड़कियों के साथ बैठ गई।हमारा उत्साह कम हो गया, क्योंकि हर कोई तेज धूप में थक गया था।जब मैं घर लौटी तो मैंने देखा कि मां गुस्से में थी।उसने मुझे हर तरह से डांटा और कहा कि यदि कोई लड़की टीवी पर दिखेगी तो उससे कोई शादी नहीं करेगा।मैं थक गई थी और कोई टकराव नहीं चाहती थी।मैं मार खाने से बचना चाहती थी।
अगले दिन फिर से मैं अपने बगीचे में फूलों से लदे पेड़ों के नीचे शहरबानो का इंतजार कर रही थी।आते ही उसने मुझसे पूछा कि मैं स्कूल क्यों नहीं आई।मैंने उसे बताया कि खुदादाद के परिवार को पता चल गया है कि मैं प्रदर्शन में शामिल हुई थी।उन्होंने मेरे पिता से कहा है कि अब मुझे और स्कूल नहीं जाने देना चाहिए।शहरबानो से मैंने कहा, ‘तुम आगे बढ़ो और शिक्षा मंत्री बनो।यह मेरे जैसी लड़कियों की समस्यायों को हल करने का बेहतर तरीका होगा।’ मैंने कहा कि वह मेरी यूनिफार्म और स्कूल की चीजें ले जाए और उनका इस्तेमाल करे।
शहरबानो ने कहा, ‘तुम हार मत मानो।’ उसने यह भी कहा कि यदि मुझे अच्छा लगे तो वह मेरे पिता से बात करेगी।उसने मुझे बताया कि उस दिन पुलिस हमारे स्कूल आई थी।यह विरोध प्रदर्शन के कारण था और वे इस बात की जांच कर रहे थे कि वाकई हमारे पास किताबें या शिक्षक नहीं हैं।यह बात उम्मीद जगाने वाली थी।वह सही थी, एक तरह से हमारी आवाजें कहीं-न-कहीं सुनी गई थीं।जल्द ही हमारी मांगों पर ध्यान दिया जा सकता है।
अगले दिन दोपहर, मैंने फिर शहरबानो का इंतजार किया कि वह आकर पूछेगी कि आज भी मैं क्यों स्कूल नहीं आई।लेकिन जैसे ही मैं पेड़ के नीचे आकर खड़ी हुई, मुझे एक गगनभेदी आवाज सुनाई दी।मैं कुछ सोच भी पाती कि दो और जोरदार धमाके हुए और फिर गोलियों के चलने की आवाजें सुनाई दीं।तभी मैंने पड़ोसियों को जोर से बातें करते सुना।वे कह रहे थे कि स्कूल पर हमला हुआ है।
मेरे मन में पहला विचार शहरबानो का आया।जैसे ही मैं स्कूल की ओर दौड़ी मैंने स्वयं से कहा- कुछ भी बुरा न सोचो, उसे कुछ नहीं हो सकता।मुझे लगा कि जमीन मेरे पैरों को नीचे खींच रही है।किंतु जहां तक मैं पहुंची थी वहां से मुझे धूल और धुएं के बड़े-बड़े बादल दिखाई दे रहे थे।जब मैं स्कूल के पास पहुंची तो धुएं और धूल भरी हवा के कारण और कपड़ों, धातु और मांस के टुकड़े देखकर मेरा दम घुटने लगा।अपना दर्द सहते हुए मैंने स्कूल परिसर में प्रवेश किया।जहां भी मैं कदम रखती वहां खून-ही-खून था, यहां तक कि नालियों का पानी भी लाल हो गया था।
वहां पड़े शव लोगों से घिरे हुए थे।चारों ओर से चीखने–चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं।एक कोने में अधजली दीवार के पास किताबों और बैगों का ढेर था।वहां दीवार पर लिखा हुआ था हाल ही में खोदा गया कुआं।हां, अफगानी स्कूली छात्राओं के सभी सपनों के समा जाने के लिए काफी गहरा कुआं।लोग अपने बच्चों के सामान और अवशेषों को इकट्ठा कर रहे थे।मैंने किताबों और नोटबुकों को बारीकी से देखते हुए प्रार्थना की कि इनमें शहरबानो का कुछ भी न हो।
मैंने हर जगह खोजा पर मुझे शहरबानो का कोई पता नहीं चला।शायद वह घायल हो गई हो और उसे अस्पताल ले जाना पड़ा हो।जिन अस्पतालों में मृतकों और घायलों को ले जाया जा रहा था, मैं उनमें से एक अस्पताल में गई।हर तरफ घायल पड़े हुए थे और कोहराम मच गया था।
एक ओर सफेद कपड़ों में लिपटी लाशों की कतार थी।लोग हर लाश पर से कपड़ा उठाते हुए अपने गुम व्यक्ति को खोज रहे थे।एक वृद्ध व्यक्ति कपड़ा उठाते हुए अपने आप से कह रहा था, मेरी बेटी-मेरी कामिला ठीक है।वह स्कूल में पढ़ती है, उसे कुछ नहीं होगा।लेकिन जब वह अंतिम लाश पर से कपड़ा उठा कर देखा तो जमीन पर गिर पड़ा।मैं डरी हुई थी।मुझे लगा कि मैं भी खड़ी नहीं हो सकती, किंतु मैंने स्वयं को संभाला।
एक महिला एक छोटी बच्ची को लिए हुए बिस्तर पर लेटी हुई थी।दूसरी ओर एक युवक एक शव के पास सदमे में बैठा था।मैं उसके पास गई और बड़ी विनम्रता से उससे पूछा, ‘क्या वह आपकी बहन है?’ कांपते होठों से सहमी आवाज में उसने कहा, ‘वह मेरी छोटी बहन है।’
‘तुम्हारे माता-पिता कहां हैं?’
‘मेरी एक घायल बहन दूसरे अस्पताल में है, मेरी मां उसके साथ है।मेरे पिता मेरी बड़ी बहन को खोज रहे हैं।’
मेरी आंखें भर आईं और गला रुंध गया।मेरे पास सांत्वना देने के किए कुछ भी न था।हमलावरों से मुझे नफरत हो रही थी।आंखों में आंसू लिए मैंने पीछे मुड़कर पूरे दृश्य को देखा।अस्पताल की एक दीवार पर एक सूची लगी हुई थी।मैं सूची में नाम देखने लगी।इसमें शहीदों और घायलों के नाम एक साथ दे दिए गए थे।मैंने इसमें क्रम से सभी नाम पढ़े, किंतु उनमें शहरबानो का नाम नहीं था।
मैं फिर दूसरे अस्पताल गई, वहां भी उसका नाम नहीं था।फिर मैं तीसरे अस्पताल गई।मुझे लग रहा था कि सुरक्षित होगी, तभी वहां मैंने उसका नाम शहीदों की सूची में देखा।
मुझे यकीन नहीं हो रहा था।मैंने बार-बार वह सूची देखी, उसमें शहरबानो का नाम था।उसका नाम उसके पिता के नाम सहित था।मैं दीवार की ओर झुकी और बेहोश हो गई।होश आने पर मुझे वह सब याद आया जो मैंने देखा था और फिर बेहोश हो गई।मुझे नहीं पता उस दिन मेरे साथ ऐसा कितनी बार हुआ।
बाद में मैंने उस दिन को याद किया जब शहरबानो ने मुझसे पूछा था, ‘तुम्हारा प्यार क्या है नेकबख्त?’ मुझे यह पता है कि मेरा प्यार तो वह और उसके साथ मेरी दोस्ती थी।उसने मेरे लिए बहुत कुछ किया, मृत्यु के सिवाय उसे कोई नहीं रोक सकता था।अब उसके अधूरे सपनों को मैं पूरा करूंगी।’
मेरा परिवार उस रात खाना खाते हुए खामोश था।जैसे ही हम डाइनिंग टेबल पर डिनर के लिए बैठे, मैं अपनी प्लेट में रखे भूने आलुओं से खेलने लगी।चुप्पी तोड़ते हुए मैंने कहा, ‘मैं फिर से स्कूल जाना शुरू कर दूंगी।’ मैंने एक आंख से अपनी मां को और दूसरी से अपने पिता को देखा।मेरी पीठ से ठंडा पसीना निकलने लगा।मेरी मां बड़ी तल्खी से कहने लगी, खुदादाद…… किंतु मेरे पिता ने उन्हें कुछ भी कहने से रोक लिया।मैं उसका पिता हूँ या खुदादाद।मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी स्कूल जाना शुरू रखे।हम नहीं जानते कि हममें से कोई भी कभी स्कूल गया।जाओ, जाओ मेरी बिटिया जाओ, और जिस तरह से तुम्हें जीना है जियो।’
मैं नि:शब्द थी।शहरबानो सही थी।हममें अपने संघर्षों का सामना करने का साहस होना चाहिए।दो दिन बाद, मैंने अपनी काली यूनिफार्म पहनी, सफेद स्कार्फ बांधा और अपने बैग को नोटबुकों से भर दिया।फिर अपने बगीचे से मैंने ताजा खिले फूलों की एक छोटी शाखा तोड़ी और स्कूल की ओर चल पड़ी।
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