कवि और अनुवादक

वरवर राव

जन्म 1940। वरिष्ठ चर्चित कवि। इसके अलावा शिक्षक, समालोचक और एक्टिविस्ट।  दीर्घ समय तक स्रुजनऔर अरूणतारापत्रिका के संपादक। 15 कविता पुस्तकें प्रकाशित। प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में अनूदित। 

तेलुगु से अंग्रेजी अनुवाद – एन वेणुगोपाल

मर्लिन मुनरो

तुम्हारे जिस्म का हर हिस्सा
सुंदरता को परिभाषित करता है
तुम्हारी हर अदा जवानी का बखान करती है

खूबसूरत महिला!
तुम्हारे दिव्य सौंदर्य को देख
दुनिया मंत्रमुग्ध है
तुम्हारा अधखुला मुख भी
स्वर्गिक वैभव का राज खोलता है

उम्र ने तुम्हारे जिस्म को तराश कर
सुडौल और आकर्षक बना दिया है
पर वह तुम्हारी बच्चों सी आंखों और दिल में बसी
मासूमियत को छू नहीं पाई है

एक जादुई अनुभूति की प्रत्याशा में
तुम्हारा निर्मल मन
इस पतनशील समाज से छला गया है
जो लोभ और लड़ाइयों में डूबा हुआ है

तुम जानती हो
यह दुनिया नियाग्रा से उत्पन्न
रोशनी को तो पकड़ लेती है
पर कभी विचार नहीं करती कि
वह आग कैसे पैदा हुई
इतने ऊंचे आल्टर से गिरती हुई
जल के विशाल हृदय को तोड़ती हुई

मानव मन का विकास
कठपुतली के खेल से
मशीन संचालन तक हुआ
पर करुणा को समझने में
एक इंच भी नहीं बढ़ पाया
शायद इसीलिए तुम कहीं नहीं बस पाई

कुछ देर के लिए तुम
भरे-बादलों के चेहरों पर
बिजली की तरह जगमगाई
उस क्षण का तुम्हारा वजूद
अभी भी सोना बरसा रहा है

लेकिन फिर भी
तुम नहीं बन पाई हो
लिखने के लिए एक ‘पवित्र’ विषय
क्या ऐसा नहीं कहा जाता है
पत्थर, कंकड़
और यहाँ तक कि राम की
खड़ाऊं को भी जीवन मिला
और महाकाव्यों का सृजन हुआ?
तुम्हें बदनाम करते, अफवाह फैलाते
जब तक वे थक नहीं जाते
हम अपने मुंह भींचे हुए हैं

लेकिन तुम, एक पूर्ण मानवी
सेक्स के उद्दीपन की प्रतीक
काव्य के लायक नहीं हो!

यह समाज तुम्हें नग्न देखना चाहता है
पर तुम्हारे हृदय के
निर्वस्त्र, मर्मस्पर्शी और निष्कलंक रूप
दिखने पर घृणा करता है

उस हृदय की भव्यता के प्रति
इस दुनिया ने अपनी आंखें मूंद ली हैं
जिसने तुम्हारे जिस्म की खूबसूरती को बढ़ाया

यही कारण है कि मन की शांति की
तुम्हारी सजग शाश्वत खोज
एक खूबसूरत सुदीर्घ निद्रा बन गई है।

कल कोई क्लास नहीं होगा

वे बच्चे बेबस से
सड़क की ज़ेबरा क्रॉसिंग पर खड़े हैं
उनकी आंखों में
अपनी मां की गरदन पर झूमने की आकुलता है

पीठ पर लदे बोझ से उनकी गरदन झुकी हुई है
बाल मुरझाए फूलों की गिरी पंखुड़ियों की तरह हैं
ड्रेस उनके चेहरों की सारी रंगत उड़ाता है
जूते तेज पैरों को
समय से पहले चलने से रोकते हैं
इस शहरी जंगल में

वे बच्चे
गिरे हुए सितारों के उदासीन सपने हैं
गाड़ियां उन बच्चों के लिए नहीं
केवल लाल सिग्नल के लिए रुकती हैं
वे हाथ जो पहिया घुमाते हैं
जो हैंडल संभालते हैं और ब्रेक लगाते हैं
वे सभी हाथ वहां नहीं होते
जो बच्चों को गले लगाते
लेकिन इस समय उन्हें कोई नहीं देख रहा है

मैं स्नेह से उनकी ओर हाथ हिलाता हूँ
वे मेरे हाथ को अजीब तरह से देखते हैं
मानो सोच रहे हों
इस कोलाहल के बीच यह कैसा राग है
पुलिस वैन के भीतर से मुस्कान पहचानते हुए
वे मेरी हथकड़ी और
उठी हुई मुट्ठी में एक संदेश सूंघ लेते हैं-
‘कल कोई क्लास नहीं होगा’

जैसे ही गाड़ियां रुकती हैं
धारा में बहते पत्थरों की तरह
वे शोर मचाते हुए सड़क पार करते हैं
बिना पीछे देखे
बच्चे खुशी से दौड़ पड़ते हैं।

संपर्क: बालमुकुन्द नंदवाना, 152, टैगोरनगर, हिरणमगरी, सेक्टर -4, उदयपुर – 313002 मो. 9983224383