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लेखक (1967-2021) बांग्ला साहित्यकार और पत्रकार। ‘आजकाल’ और ‘स्टार आनंद’ मीडिया से जुड़े रहे।पिछले साल कोरोना से मृत्यु। |
अनुवादक भोला प्रसाद सिंह वरिष्ठ लेखक और अनुवादक।लघु पत्रिका ‘कण’ निकालते रहे हैं। |
कई दिनों से बदन को झुलसा देने वाली गर्मी पड़ रही थी।बाहर चिलचिलाती धूप, कमरे के अंदर बेचैन करने वाली उमस।अंधरे बंद कमरे में भी पंखे से निकलने वाली हवा राहत देने के बजाए शरीर को तप्त ही कर रही थी।नयन कुछ ज्यादा ही परेशान थी।वह कभी कमरे के बाहर जाती, तो कभी अंदर आती, लेकिन कहीं भी उसे राहत नहीं मिल पा रही थी।ऐसी बात नहीं कि नयन को गर्मी और उमस की तकलीफ सहने की आदत नहीं।उसका पूरा नाम नयनतारा है, पिता उन्हें लाड़-प्यार से नयन बुलाते थे।वह आज सुबह से ही बहुत प्रसन्न थी, क्योंकि ठंडी हवा बह रही थी, और रह-रह कर बदन में एक सुखद सिहरन पैदा करती।मौसम विज्ञान ने भी सूचना दी थी- पूर्वानुमान है कि आज गांगेय क्षेत्रों में वर्षा होगी, क्योंकि बंगोपसागर में निम्न दबाव बना हुआ है।यद्यपि नयन को मौसम विभाग की सूचनाओं पर कोई बहुत भरोसा नहीं था, लेकिन आज उसका पूर्वानुमान सही लग रहा था।खुले बरामदे में बैठकर नयन चाय की चुस्कियां ले रही थी, तभी हवा का एक ठंडा झोंका आया और उसे आनन्द से भर गया।बहुत दिनों के बाद उसे एक सुखद अनुभूति हुई।नयन को एक अव्यक्त शब्दातीत तृप्ति की एहसास हुआ।ठंडी हवा के उस स्पर्श के बाद ही वर्षा की प्रतीक्षा में नयन घर-बाहर कर रही थी।नयन ही नहीं, गर्मी की प्रचंडता ने सबको उद्विग्न कर रखा था।
अभी थोड़ी देर पहले मानदा मौसी (नयन के घरेलू कामों में सहायिका) कह रही थी कि गर्मी के कारण शरीर घमौरियों से भर गया है, हमेशा शरीर खुजलाते हुए जान आफत में है।यदि वर्षा हुई तो वह खूब भींग-भींग कर नहाएगी।इसी बीच नयन की माँ ने उसे बाजार से समान लाने की सूची थमाते हुए छाता लेते जाने की हिदायत दी।क्योंकि वर्षा आनेवाली थी।लेकिन इस हिदायत को अनसुनी करते हुए वह बिना छाता लिए हुए बाजार चली गई।वह तो वर्षा में खूब भींगना और भींगकर आनन्द लेना चाहती थी।
इधर-उधर एफ.एम. चैनेल घुमा-घुमा कर यह जानने की कोशिश कर रही थी कि कहीं बारिश हुई है कि नहीं।तब तक टप-टप करती हुई वर्षा होने लगी।जब तक वह बरामदे में पहुंची, मूसलाधार वर्षा होने लगी, नयन स्थिर भाव से वहां खड़ा हो गई।थोड़ी देर में वर्षा की छींटों से पूरे मुख पर बूंदों की बारात सज गई।
मिट्टी से एक सोंधी गंध निकल रही थी।नयन ने जी भर कर साँस ली और मन ही मन कह उठी– अहा! कैसी दिलकश सुगंध है।नयन ताली बजाते हुए मन ही मन गा उठी– ‘आयी है बरखा, नवोढ़ा बरखा/धरती की आस लिए उतरी है आसमान भर बरखा।’
मां घर के दरवाजे पर आकर खड़ा हुई।भींगती हुई नयन को देखकर कहा, ‘पगली! तू भींगती क्यों है?’ नयन ने हँसते हुए मां से कहा, ‘आओ मां, तुम भी भीगो।चलो घर के सामने जो लंबा बगीचा है, वहां चलकर जी भरकर वर्षा में नहाएं।’ मां कुछ उत्तर देती इसके पहले कॉलिंग घंटी बज उठी।मां को लगा कि मानदा मौसी बाजार जाने के बजाय बीच रास्ते से लौट आयी है।दरवाजा खोलने पर, वहां कूरियर सेवा का एक व्यक्ति खड़ा मिला।उसने कहा- ‘नयनतारा सरकार के नाम से एक चिट्ठी है।नयनतारा यहीं रहती है?’
‘मैं उसकी मां हूँ, लाइए मुझे चिट्ठी दे दीजिए’, लेकिन उसने कहा, ‘यह चिट्ठी नयनतारा को ही मिलेगी।’
अंत में मां ने बाध्य होकर नयनतारा को बुलाया- ‘तुम्हारे नाम से एक चिट्ठी है, इसे तुम्हें ही ये देंगे, मुझे नहीं।’
नयन ने बुदबुदाते हुए कहा- ‘ये कूरियर सर्विस वाले अजीबोगरीब होते हैं।जब चिट्ठी सही पते पर पहुंच गई है तो उसे घर के किसी सदस्य को क्यों नहीं दे सकते- झूठ-मूठ का ये बखेड़ा करते हैं।’ बाध्य होकर नयन आई।उसे देखते ही कूरियर वाले ने पूछा, ‘‘क्या आप ही नयनतारा सरकार हैं?’
नयन ने कहा, ‘हां।’
‘तो यहां दस्तख्त कर दें।’ यह सुनते ही मां ने हस्तक्षेप किया, ‘लाइए मैं दस्तख्त कर देती हूँ।’
यह सुनते ही कूरियर वाला बिदक गया।उसने रूखे शब्दों में कहा, ‘जब मैं कह चुका हूँ कि जिसके नाम से चिट्ठी है, दस्तख्त उसी को करना है, तब आप जिद क्यों करती हैं।’ इस बार माँ को कहना पड़ा कि नयन देख नहीं सकती…।यह सुनते ही कूरियर वाला हतप्रभ हो गया।उसने हकलाते हुए कहा… ‘यह देख नही… पा..ती माने ब्लाइंड।’ मां ने कहा ‘हां’ यह सुनते ही कूरियर वाले का व्यवहार बिलकुल बदल गया।वह सहानुभूति प्रकट करने लगा।लेकिन नयन को अब किसी की सहानुभूति अच्छी नहीं लगती, बल्कि वह चुभती है।इस स्थिति से निकलने के लिए नयन ने उस व्यक्ति से पूछा ‘चिट्ठी कहां से आई है?’ जवाब में कूरियर वाले ने अत्यंत संयत स्वर में कहा- ‘हां… यह यानी आई बैंक से’
उसने दबे हुए स्वर में कहा– ‘मेरा ध्यान पहले इस ओर गया ही नहीं।’ कूरियर वाले के कातर चेहरे को देखकर नयन ने उसके प्रति शिष्टता व्यक्त करते हुए भावुकता में कहा– ‘आप समझेंगे भी कैसे कि जिसका नाम है नयनतारा वह नेत्रहीन है?’ नयन की इन बातों को सुनते हुए, मां ने मीठे शब्दों में झिड़की लगाई– ‘नयन! फिर शुरू हो गई…।’
कूरियर कर्मचारी चला गया।दरवाजा बंद होते ही एक कदम आगे बढ़कर नयन ने मां को आलिंगन में लेते हुए कहा- ‘मैं क्या करूं, तुम्हीं बताओ।मैं देख नहीं पाती इसका अर्थ मैं रो-रोकर अंधी नहीं हुई- यह बात क्या हर एक व्यक्ति को बताना होगा।’ मां ने दुलार से एक झिड़की लगाते हुए कहा- ‘फिजूल बातें तुमने फिर शुरू कर दी।तुम्हारी बचकानी हरकतें जरा भी कम नहीं हुई।पता नहीं तू कब बड़ी होगी?’ इसके बाद नयन ने मां के कंधे पर सिर रखते हुए और प्यार जताते हुए कहा- ‘आज केवल खिचड़ी और अंडे की भुजिया बनेगी और खाना मौसी बनाएगी- तथा मैं मेघदूत पढ़कर सारी दुपहरिया तुम्हें सुनाऊंगी।’ नयन ने अत्यंत उत्कंठा के साथ पूछा, ‘मां! आज आषाढ़ का पहला दिन है।’ यह सुनकर मां ने नयन को फिर झिड़की लगायी- ‘इस लड़की का फिर पागलपन शुरू हो गया।दिन भर कालिदास को लेकर पड़े रहने से काम चलेगा।चिट्ठी में क्या लिखा है- जानना नहीं होगा।रंजन को फोन कर दो कि वह लौटते समय यहां से होकर जाएगा।’ नयन ने मां को छोड़कर एक गोल चक्कर लगाने के बाद कहा, ‘रंजन…. को… फोन नहीं करना होगा, उसको आज आना ही है।’
‘इसका मतलब तुमसे उसकी बात हो गई है?’
‘क्या आज वह आएगा?’’ नयन ने फिर नृत्य की भंगिमा में ही कहा, ‘बात… नही…हुई, लेकिन वह आएगा, क्योंकि आज वर्षा हुई है… समझी मां।’
नयन कुछ बोलती, लेकिन इसी बीच टेलीफोन की घंटी बज उठी।नयन ने मन ही मन सोचा यह निश्चित रूप से रंजन का फोन है।पहले उसने मेरे मोबाइल पर किया होगा।उत्तर नहीं मिलने पर उसने लैंड लाइन पर फोन किया था।मां रंजन को बता रही थी कि पता नहीं कहां-कहां मोबाइल फेंककर रखती है।वर्षा हुई है इसलिए अतिशय आनंद में है और आज ही आई बैंक से चिट्ठी भी आई है।लगता है कोई जरूरी चिट्ठी है।तभी तो ‘आई बैंक’ ने कूरियर से भेजा है।लेकिन नयन को तो उस चिट्ठी से कोई सरोकार ही नहीं था।वह फिर से बरामदे में चली गई, वर्षा लगातार हो रही थी पर झमाझम नहीं, रिमझिम।वृक्ष की पत्तियों पर जल की टप-टप आवाज को सुनकर नयन सबकुछ समझ जाती थी।रात काफी हो गई थी, लेकिन नयन बरामदे में अकेली बैठी थी।काफी देर से मां नयन को घर के अंदर चलने का आग्रह कर रही थी।अंत में चिढ़ कर वह सोने चली गई।
नयन अकेली गुमशुम बैठी रही और सोचती रही।आज उसने मां और रंजन से खूब झगड़ा किया था।ऐसी उग्रता से उसने वर्षों से किसी से झगड़ा नहीं किया था।वैसे भी नयन स्वभाव से झगड़ालू नहीं थी।आज के क्रोध को भी सीमा से बाहर नहीं कहा जा सकता, लेकिन आज वह अत्यंत दुखी थी।उसे अव्यक्त पीड़ा मथ रही थी।उसकी मन:स्थिति को कोई समझ नहीं पा रहा था।उसका सबसे बड़ा दुख यही था।
उसकी दोनों आंखें पहले से खराब थीं, लेकिन स्कूल जाने के पहले किसी को पता नहीं था।खेल के मैदान में दूसरे सहपाठियों से खूब धक्के खाती थी।सभी कहते थे कि वह बिलकुल लद्दड़ है, भद-भद गिरती है।मजाकिया लहजे में उसके सहपाठी कहते थे, आई (नयन) पहले ठीक से चलना सीख।लेकिन हकीकत तो कुछ और था।उसका घर तब नया-नया बना ही था, दो-तल्ले की छत पर जाने के लिए जो सीढ़ियां बनी थीं उस पर रेलिंग नहीं थी।एक-तल्ला बनाने में ही पिता जी की सारी जमापूंजी खत्म हो गई थी।रेलिंग हीन सीढ़ी पर चढ़ते हुए नयन को ठेस लगी और वह नीचे गिर गई थी।उस समय की धुंधली सी याद थी- मां उसे गोद में लेकर खूब रोई थी और पिता एक अपराधी की भांति सिर झुका कर चुपचाप बैठे थे।नयन की आंखें इस हद तक खराब हो गई थीं यह तब मालूम हुआ जब वह स्कूल में पढ़ने लगी।क्लास के बोर्ड पर लिखा हुआ होमवर्क वह उतार नहीं पाती थी- इसलिए होमवर्क वह कैसे करती।
हर रोज का यही हाल था।उसके रवैये से परेशान होकर शिक्षिकाओं ने उसके पिता को स्कूल में बुलवाया और उसकी लापरवाही की शिकायत की, लेकिन पिता को तो असलियत का थोड़ा बहुत आभास था।इसलिए स्कूल से लौटते हुए पिता के मन में क्या आया कि वे मुहल्ले के ‘विश्वास ऑपटिकल हाउस’ पहुंच गए।डा. विश्वास बहुत देर तक नयन की आंखों की जांच करने के बाद गंभीर हो गए।इसके बाद उन्होंने दाहिनी आंख के लिए माइनस एइट (-८) और बाईं आंख के लिए माइनस सिक्स (-६) पावर का फाइबर युक्त कांच का भारी चश्मा निर्धारित कर दिया।उसके बाद चश्मा का पावर बढ़ाते-बढ़ाते एक दिन नयन के लिए पूरा जगत अंधकारमय हो गया अर्थात उसकी आंखों से रोशनी खत्म हो गई।
शुरू-शुरू में नयन को अजीब लगता।स्कूल जाना बंद हो गया था।घर का घेरा ही उसकी दुनिया बन गई थी।वह भले ही कुछ देख नहीं पाती थी, लेकिन सुन सब कुछ पाती थी और आवाज के आधार पर सब को पहचान जाती थी।
एक तरह से अच्छा था कि नयन की दादी जीवित नहीं थी, नहीं तो इस घटना से बहुत मर्माहत होती, क्योंकि उसने ही अपनी पोती की सुंदर आंखों पर मुग्ध होकर उसका नाम नयनतारा रखा था और पिता उसे नयन कहते थे।
रात को नयन के सो जाने के बाद पिता उसके बगल में आकर सो जाते थे।अकसर उसके माथे को सहलाते हुए रो पड़ते– एक शब्दहीन रुदन।गहरी निद्रा में नयन के माथे और गालों पर आंसुओं की गर्म बूंदें पड़तीं तो नयन को आभास हो जाता, लेकिन वह पिता को समझने नहीं देती।हाथ–पैर मोड़कर वह अकसर पिता के सीने के पास सोई रहती।
लेकिन यह सुख भी नयन को ज्यादा दिन तक नहीं मिल सका।सेरिब्रेल अटैक में पिता अचानक चल बसे।मन में तीव्र इच्छा के बावजूद वह उन्हें देख नहीं पाई।ऐसा दुर्भाग्य कि पिता के गुजर जाने के बाद आई बैंक से ऐसी ही एक चिट्ठी आयी थी कि ‘नयन’ के लिए एक कॉर्निया की व्यवस्था हो सकती है।लेकिन पिता की मुत्यु के बाद तो मां बिलकुल असहाय हो गई।बचत खाते में कहीं कानी-कौड़ी भी नहीं थी।उल्टे पिता का लिया हुआ कर्ज भी माथे पर था।पिता, नयन की आंखों के इलाज के लिए पागल की भांति दौड़ते थे।किसी से कर्ज भी ले लेते थे।उन रुपयों को चुकाना तो दूर की बात दो वक्त के लिए भोजन की जुगाड़ में ही मां परेशान रहती थी।सारा जीवन घर-परिवार को संवारने में मां लगी रही।पिता के रहते मां निश्िंचत थी।
कॉर्निया रिप्लेसमेंट सर्जरी का खर्च उसके वश में नहीं था।मुहल्ले के टाइप स्कूल में जाकर चिट्ठी लिखवा कर मां ने आइ बैंक को बतलाया था- इस बार नहीं, अगली बार यदि अकसर मिलेगा तो वह कोशिश करेगी।लेकिन वह अवसर नहीं आया।इधर मां भी चुपचाप बैठी नहीं थी।वह घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाती, उन्हें गाना सिखाती, सिलाई का काम करती और एक-एक पैसे को दांत से पकड़ती और अपने परिवार की गाड़ी खींचती।अब तो नयन ने ब्लाइंड स्कूल में दाखिला ले लिया था और पढ़ाई-लिखाई शुरू कर दी थी।ब्रेल लिपि में अक्षरों को सीखा।धीरे-धीरे वह आगे बढ़ती रही।माध्यमिक हायर सेकेंड्ररी के बाद उसने इस बार बी.ए.पार्ट वन पास कर लिया।उसकी मां ने बी.ए. में बांग्ला को अनिवार्य विषय के रूप में रखा था।इसलिए नयन ने भी बांग्ला लिया था।आज भी मां को बांग्ला-साहित्य का बहुत कुछ कंठस्थ था।पाठ्यक्रम के अध्याय इसलिए घर में आसानी से पूरे हो जाते।
धीरे-धीरे नयन बांग्ला की प्रेम-कविताओं से प्रभावित होने लगी।चंडीदास, विद्यापति से लेकर बागंला के आधुनिक कवियोें की बहुत कविताएं उसने पढ़ीं और उन्हें आत्मसात कर रखा था।कविता के अतिरिक्त नयन के जीवन से एक और पागल जुड़ गया था।उसका नाम था रंजन।रंजन से नयन का परिचय कॉलेज में हुआ था।उसकी आंखों पर भी हाई-पावर का चश्मा था।चश्मा नहीं लगाने पर रंजन भी लगभग कुछ नहीं देख पाता।बावजूद इसके वह तुलनात्मक साहित्य में एम. ए. फर्स्ट-क्लास था।
रंजन अनवरत यह सोचता रहता था कि वह क्या करे कि नयन के होठों पर मुस्कान रहे, चित्त उसका प्रसन्न रहे।पता नहीं कहां–कहां से ब्रेल अक्षरों में लिखी गई किताबों को वह लाता रहता था।अभी कुछ दिनों पहले ही रंजन कह रहा था कि वह ब्रेल अक्षर सीखेगा ताकि नयन को वह पत्र लिख सके।रंजन को यह द़ृढ़ विश्वास था कि एक वर्ष के भीतर वह कहीं न कहीं लेक्चरर की नौकरी पा लेगा।इसके बाद वह नयन से विवाह करेगा।सचमुच वह एक अनोखा पागल था।
गत वर्ष रंजन की पहल पर ही नयन का नाम आई बैंक में फिर से लिखवाया गया।नयन ने बहुत रोका, लेकिन रंजन ने उसकी एक न सुनी।
नयन की मां को एक सहारा मिल गया था।घर-परिवार की हर समस्या पर वह रंजन से परामर्श करती।आज की चिट्ठी से दोनों खूब प्रफुल्लित हुए थे।लेकिन सवाल है कि नयन अब क्या करेगी? प्राय: उसकी आंखों से अश्रु-धारा बहने लगती।नयन के अंदर एक दूसरी ही हलचल थी जिसे नहीं समझने के कारण रंजन क्षुब्ध हो गया था।नयन आखिर रंजन को कैसे समझाए कि अब उसे द़ृष्टि की जरूरत महसूस नहीं होती।अब वह कविता और-गीतों के माध्यम से प्रकृति को समझ लेती है।यहां तक कि व्यक्ति के स्नेह, ममता और घृणा -सब कुछ वह अपनी तरह से अनुभव कर पाती, समझ पाती, क्योंकि उसके प्रिय कवि सदा उसके पास रहते।वे नयन की चेतना में सही एहसास जगाते।आज ही तो जब वह वर्षा के छीटों को शरीर पर महसूस रही थी तभी उसे याद हो आई… ‘वर्षा ए वर्षा कितने दिनों बाद लौटोगी’- वर्षा और मैं, मैं और वर्षा।इसके बाद ये दोनों सखियां गंभीर हो जातीं…।वर्षा सखी के नरम हाथ जैसा लगती -जैसे प्रथम प्रेम का उपहार हो।
आंखों से देखने में असमर्थ होने के कारण वह हीन ग्रंथियों से ग्रसित नहीं थी, लेकिन उसके अंदर एक दमित गुंफन था।जो देखने में सक्षम थे, वे भी उसकी तरह चीजों को देख नहीं पाते थे और कभी वे देख नहीं पाएंगे।यह परोक्ष द़ृष्टि केवल उन्हें ही प्राप्त थी, जो द़ृष्टिहीन थे।झींगुर की आवाज, कामिनी फूल की तेज सुगंध से नयनतारा को अनिर्वचनीय सुख मिलता था।
फिर से बारिश शुरू हो गई थी, जिसे कान लगाकर सुनते-सुनते नयन सोच रही थी- एक और जरूरी बात मैं कहना भूल गई।द़ृष्टि लौटने के बाद नयन निरक्षर या अपढ़ ही समझी जाएगी।बचपन में अक्षर ज्ञान के बाद ही वह द़ृष्टिहीन हो गई थी।वर्ण, शब्द आदि की जानकारी के साथ शब्दों को सजाकर कैसे वाक्य बनाया जाता है, उनका उच्चारण कैसे किया जाता है वह तो कुछ भी नहीं जानती।
आज दिन भर वर्षा की बूंदों की ध्वनि को सुनते हुए नयन के मन में केवल एक ही बात आ रही थी, ‘वर्षा यहां होती है बारहों मास और मेघ गायों की तरह चरते हैं- यहां वहां, वहां’।अब वह केवल जानती थी ब्रेल अक्षर, ब्रेल की भाषा।कागज के शरीर को फोड़कर निकले ब्रेल के अक्षरों पर उंगली रख कर उन्हें पहचाना जा सकता था।नयन ऐसे ही शब्दों को पहचानती थी।
नयन अब द़ृष्टि पाकर क्या करेगी, कहीं ऐसा न हो कि अपरिचित अक्षरों को पहचानने या सीखने के क्रम में वह परिचित कविताओं को भूल जाए।यह सोचते ही नयन सिहर उठी।कहीं ऐसा न हो कि नई स्थितियों में वह जीवन को ही समझने में असमर्थ हो जाए!
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