चार दशक से भी अधिक समय से पत्रकारिता और निरंतर लेखन। ‘शिखर में आग’ और ‘सच कहने के लिए’ कविता संग्रह।
पूरे विश्व का है कबीर का करघा
किसी एक की नहीं है रैदास की रांपी
खोजो इन्हें
कोई तो वजह रही होगी
सदियों बाद भी करघा चलाते
नहीं बन पाया कोई कबीर
नहीं बन पाया कोई रैदास
रैदास की रांपी
और कबीर का करघा
कुछ कहते हैं सबके लिए
रैदास रोज चलाते रांपी, बनाते चर्मपादुका
गाते थे भजन- प्रभुजी तुम चंदन हम पानी
बांटते थे प्रसाद
यह सब लोकमंगल के लिए करते थे वे
रांपी चलाते और भजन गाते- गाते
दीपक से बाती हो गए रैदास
करघा चलता था कबीर का
और झरते थे उससे निर्गुण
करघे से कबीर ने बुनी चादर झीनी-झीनी
जाते समय रख दी उसे भी जस की तस
कभी मैली नहीं हुई उनकी चादर
बुनकर और पनही बनाने वाले ने देखी
चोंच में तिनका दबाए चिड़िया
कहा- निर्माण गीत गाए बिना नहीं होता निर्वाण
बुनकर ने कहा-
हमने खो दिया कबीर का करघा
नहीं रखी रैदास की रांपी की पत
पादुका बनाने वाले ने कहा-
तुम खोजो कबीर का करघा
मैं खोज रहा हूं रैदास की रांपी
हमें बनना है रैदास
तुम बनो कबीर
इस रक्तपाती समय में
लोकमंगल के लिए जरूरी है
रैदास और कबीर बनना ।
संपर्क : अन्नपूर्णा अपार्टमेंट, फ्लैट नं-402, बलदेव भवन रोड, पुनाईचक,पटना-800023 बिहार मो.9431076677