वरिष्ठ लेखिका

‘सच कहती कहानियाँ’, ‘एक अचम्भा प्रेम’ (कहानी संग्रह)। ‘एक शख्स कहानी-सा’ (जीवनी) ‘लावण्यदेवी’, ‘जड़ियाबाई’, ‘लालबत्ती की अमृतकन्या’ (उपन्यास) आदि चर्चित रचनाएँ।

(गतांक से आगे)

वह अस्पताल क्या था एक अजूबा था।दो एकदम यकसाँ बनी भव्य इमारतें एक-दूसरे से सटी हुई खड़ी थीं।उनका स्थापत्य इतनी सभ्यताओं को अपने में समेटे था कि लोग उन्हें  बाहर से देख कर यह विचार करते नज़र आते थे कि आख़िर यह कौन से काल का प्रतिनिधित्व करता है? दरअसल मुकुल के पिता बांग्लादेश, अर्थात पुराने भारत के सबसे अधिक ख्यातिप्राप्त वास्तुकार थे।वे भी मुकुल की तरह ही संवेदनशील और उदार थे।

अस्पतालों के उद्घाटन के दिन वहाँ ऐसी-ऐसी विभूतियाँ उपस्थित थीं कि जिसे अंग्रेज़ी में कहें तो कहा जाएगा ‘हूज़ हू’ का जमावड़ा।

उन विभूतियों में जर्मनी के बड़े-बड़े डॉक्टर भी मौजूद थे, कारण कि मुकुल ने सारे ‘सर्जिकल’ उपकरण जर्मनी में बने हुए लिए थे।उन नामी-गिरामी लोगों में जर्मनी का वह बड़ा सर्जन भी शामिल था जो ‘अंग प्रत्यारोपण’ का विश्व में सर्वश्रेष्ठ सर्जन माना जाता था।उसके उपस्थित होने का कारण मुकुल और ॠतु का सेवा भाव, उदारता और विनम्रता थी।

ॠतु-मुकुल ने जर्मनी के इस फ़र्म को उपकरणों हेतु बिना एक पैसा ‘दरदस्तूर’ किए जो भी बिल था, वह वैसा का वैसा तो दिया ही था, ऊपर से उनलोगों की इतनी प्रशंसा की थी कि वे लोग गदगद हो गए थे।

उन सर्जन महोदय ने मुकुल और ॠतु को स्वयं गाड़ी चलाकर गाँवों के भीतरी हिस्से से मरीज़ लाते देखा था।देखा उसने यह भी था कि वे अस्पतालों से नफ़ा करना तो दूर, अपने धन को भी दोनों हाथों से लुटा रहे थे।उसने ऐसे दानवीर आज तक नहीं देखे थे।वह कहता, मैंने ‘वॉलिन्टियर्स’ बहुतेरे देखे हैं पर ऐसे नहीं देखे।ये दोनों तो हर वक़्त ‘रिसेप्सनिस्ट’ की मेज़ के पास चक्कर लगाते रहते हैं और जैसे ही किसी आकस्मिक आपदा की सूचना मिलती है, उनमें से जो भी वहाँ मौजूद होता है वह तुरंत गाड़ी उठाकर घटनास्थल पर पहुँच जाता है।

उन लोगों का सेवाभाव और दान देखकर उनके जर्मन डॉक्टर मित्र ने उन दोनों को मर्सिडीज़ कम्पनी की एक-एक ‘एसयूव्ही’ (बड़ी गाड़ी) उपहार में देनी चाही, लेकिन जब उन दोनों ने साफ ना कर दिया, तो उनलोगों ने अत्यधिक आग्रह करके ॠतु-मुकुल को पचास प्रतिशत कम पर दो गाड़ियाँ दीं।ऊपर से उन जर्मन सर्जन महोदय और उपकरणों वाली कम्पनी के प्रतिनिधि ने तो यहां तक कह दिया कि ‘‘हम तो आपकी पुण्य-गंगा से ही जल लेकर नाम मात्र का आचमन कर रहे हैं।’’

उपसंहार

दसों दिशाओं में ॠतु-मुकुल की कीर्ति फैल रही थी।सभी एक स्वर में कह रहे थे कि भगवान ऐसे बच्चे सबको दे, जिन्होंने अपने पुरखों का ही नहीं अपनी आने वाली पीढ़ियों का  नाम भी रोशन किया है।सब यह भी कहते नज़र आ रहे थे कि आकाश से प्रभावती देवी और कान्तादेवी निश्चय ही इन दोनों पर फूल बरसा कर धन्य हो रही होंगी।

लग रहा था कि  ॠतु-मुकुल का नाम सोने के अक्षरों में आकाश में लिखा जा रहा था कि एक दिन बीती आधी रात को एक आपातकालीन मरीज़ की ख़बर आई, मुकुल कहीं और गया हुआ था इसलिए ॠतु ने अपनी ‘एस.यू.व्ही.’ उठाई और तेज़ी से गंतव्य की ओर निकल गई।

दुर्भाग्य से तभी नशे में धुत एक ट्रक ड्राइवर ‘आंडी-बांडी’ गाड़ी चलाता हुआ आया और उसने ॠतु की गाड़ी के परखचे उड़ा दिए।आश्चर्यजनक ढंग से इतनी बड़ी ॠतु के शरीर पर खरोंच तक नहीं आई, क्योंकि पहले झटके ने ही ॠतु को गाड़ी से बाहर उछाल दिया और टक्कर में गाड़ी की बगल में छोटे-छोटे सफेद जंगली फूलों से भरी घास की जो पट्टी थी, उस पर एकदम सीधा सुला दिया था।अप्रतिम सौंदर्य की धनी ॠतु उन फूलों के बीच ऐसी सो रही थी जैसे देवलोक से उतरी अप्सरा।

ॠतु के छोटे बैग में उसके सारे ‘ब्लड ग्रुप’ आदि विस्तार से लिखे हुए थे।ॠतु की आदत थी कि वह अपने साथ हमेशा देहदान आदि के पत्र रखा करती है।इसलिए उसकी अंतिम इच्छा के अनुरूप उसके सारे अंग तुरंत ही ज़रूरतमंदों को लगा दिए गए।चूंकि ॠतु ने किसी भी प्रकार के प्रचार-प्रसार की मनाही कर दी थी, अतः यह ख़बर मात्र सूचना की तरह दोनों अस्पतालों को दे दी गई।

माँ धरती के हरित परिधान पर स़फेद फूलों की शय्या पर सोई हुई अप्रतिम सुन्दरी ॠतु के चेहरे और शरीर में इतनी अपूर्व शांति व्याप्त थी, मानों किसी चित्रकार ने भगवान बुद्ध के महानिर्वाण का चित्र आंक दिया हो।

जन्म से ही सबको चौंकाती ॠतु ने अपने मृत्युकाल में भी सबको अपनी अलौकिक मृत्यु से चौंका दिया था।सारे उपस्थित और अनुपस्थित स्वजनों के मनोजगत में एक ही प्रश्न विराट बना खड़ा था।

क्या ॠतु को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था??…

(समाप्त)