दाशरथि भूयाँ

उड़िया कथाकार, कवि और लेखक। कई पुस्तकें प्रकाशित। कालाहांडी के लोगहिंदी में। संप्रति नगालैंड विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रो़फेसर। 

भगवान त्रिपाठी

उड़िया से हिंदी में अनूदित कई पुस्तकें। उत्तर प्रदेश हिंदीसंस्थान, लखनऊ द्वारा सौहार्द सम्मानसे सम्मानित।

निधि साहू की मोटरगाड़ी सड़क से गांव के रास्ते की ओर जैसे ही मुड़ी, उनकी नजर पड़ी कि कोई उनकी ओर तेज गति से दौड़ते हुए आ रहा है और चीखते हुए कह रहा है- ‘साहब रुक जाइए! रुक जाइए!’

वह आदमी उन्हें आगे न बढ़ने का इशारा कर रहा था। जब नजदीक आया तो पता चला कि वह उनका वफादार नौकर रंक है। निधि साहू वहीं उतर पड़े। रंक लंबी-लंबी सांस ले रहा था। हांफते हुए बोला- ‘साहब आपको पुलिस ढूंढ़ रही है। सही समय पर सतर्क कर देने के लिए मैं यहीं आपका इंतजार कर रहा था।’

रंक के डरे हुए चेहरे और उसे हांफते हुए देखकर निधि साहू ने पूछा- ‘क्यों रे, मामला क्या है?’

रंक ने उत्तर दिया- ‘साहब! सुकुटा प्रधान ने आत्महत्या की है। उसने आपसे कर्जा लिया है। इसलिए पुलिस आपको ढूंढ़ रही है।’

सुकुटा की आत्महत्या और उन्हें पुलिस के ढूंढ़ने की खबर पाकर उनके माथे पर पसीना चुहचुहा उठा। उनका कलेजा कांप उठा। पल भर में रंक का चेहरा निधि साहू के सामने आ गया। उनका बदन कांपने लगा। होंठ सूख आए। सीने की धड़कन बढ़ गई। भय का भूत उनपर सवार हो गया। उन्हें लगा कि एक भयानक तूफानी रात में कोई उनका पीछा कर रहा है और जान बचाने के लिए वे दौड़ रहे हैं।

सचमुच खुद को छिपाने के लिए वे कुछ इस तरह गायब हो गए कि किसी को कुछ पता ही नहीं चला। जाते समय रंक से सिर्फ इतना ही कह गए- ‘परिस्थिति सामान्य होते ही मुझे खबर करना।’

सुकुटा प्रधान के आत्महत्या करने में इनका दोष कहां था। बल्कि असमय में वे उसे उधार-कर्ज दिया करते थे। खेती के लिए जरूरी खाद और कीटनाशक दवाइयां अपनी दुकान से उधार देते थे। ओह! उनकी समझ में आ गई। बीते कल शाम को सुकुटा ने उनकी दुकान से कीटनाशक दवाई की जो शीशी ली थी, शायद उसे खाकर उसने आत्महत्या की है।

सुकुटा रोज की तरह बीते कल भी अपने खेत में गया था। वर्षा की कमी के कारण बांझ मां के पेट में एक भ्रूण की बलि चढ़ने की तरह धान के सारे पौधे धरती मां के वक्ष पर लुढ़क पड़े थे। मुच्छा भर सूखे-मुरझाए धान के पौधों को सुकुटा ने परख लिया था। अपने थके हुए हाथों से पसीना पोंछते हुए जम्हाई लेकर सुकुटा बैठ गया बीच खेत में। उसके हृदय में ढेर सारी पीड़ा धू-धू कर जल रही थी। खेत में आग बरस रही थी। फैले हुए खेत में बगुला-बगुली मछलियों की तलाश में मंडरा नहीं रहे थे। पक्षी और जानवरों को भगाने के लिए बनाया हुआ बिजूखा आकाश की ओर निहारते हुए चित पड़ा था। उसपर ओस की बूंदे पड़ी हुई थीं और मकड़ी के जाले फैल गए थे।

उसके मन में कर्ज के बोझ का भय दुगना हो गया था। शाम के समय वह खेत से लौटकर निधि साहू के पास गया था। कर्ज का हिसाब पूछा था। लौटते समय कीटनाशक दवाई की एक शीशी लाना भूला नहीं था। घर लौट कर पत्नी गेली से पखाल भात  परोसने के लिए कहा था। बेटा मुन्ना  ढिबरी जला कर पढ़ रहा था। सुकुटा ने मुन्ना से कहा कि तू अब स्कूल नहीं जाएगा। किसी के घर में काम-काज करने से हम कर्जा चुकाएंगे। तेरी माई के पांव भारी हैं। अब मजदूरी करने जा नहीं सकती। खा चुकने के बाद वह खेत की ओर निकल पड़ा था।

जब वह खेत में पहुंचा तब झींगुर तंबूरा बजा रहे थेझीं.. इर्.. इर्..इर्। न, इस साल अब फसल की आशा दिख नहीं रही है। क्या करेगा वह? परिवार का निर्वाह कैसे होगा। धान के खेतों की रखवाली के लिए बनाई गई लकड़ी के मचान पर चढ़ा फिर नीचे उतर कर वह खेत के बीच में आ गया और बिजूखा के पास बैठ गया। शीशी का ढक्कन खोल कर गटगट करके पी गया। अब झींगुर की आवाज उसके मस्तिष्क के अंदर से सुनाई पड़ रही थीझीं.. इर्.. इर्..इर्। उसके पेट के अंदर की कोई चीज मरोड़ खाने लगी। वह चीखते हुए बिजूखा के पास सो गया।

सवेरे-सवेरे किसी किसान ने खेत में सुकुटा को मरा हुआ देख कर खबर दी। पत्नी गेली रोती-बिलखती दौड़ी खेत की ओर। लोग इकट्ठे हो गए। खेत से लाश को घर के पास लाया गया। गेली दहाड़ मारते हुए रो रही थी- ‘मैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आई।’

भीड़ में से किसी ने कहा- ‘इतनी हड़बड़ी क्यों? सरकारी आदमी के आने तक इंतजार करो। सरकार ने अभी आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए सहायता की घोषणा की है। किसान के आत्महत्या करने से मुआवजा मिलता है।’

किसी और ने कहा- ‘कोई फायदा नहीं होगा। कुटीर योजना की सूची में सुकुटा का नाम न होने के कारण पिछले पंचायत चुनाव के समय उसने विजयी सरपंच को वोट नहीं दिया था। सरपंच क्या इस मामले में सिर खपाएगा। बल्कि वह इस घटना की खबर पुलिस को दे देगा।’

किसी और ने बिना पूछे ही कहा कि इस बी.डी.ओ. पर कोई भरोसा नहीं है। वह सरकार को बता देगा कि घरेलू झगड़े से सुकुटा ने आत्महत्या की है। आज का अखबार पढ़ा है। अमुक जिले के किसान ने आत्महत्या की थी। बी.डी.ओ. ने रिपोर्ट दी कि पारिवारिक घटना से किसान ने आत्महत्या की है, इसलिए सब बेकार हो गया।

एक बूढ़ा आदमी चिल्ला उठा- ‘सुकुटा कल से मर चुका है। लाश सारी रात खेत में पड़ी हुई थी। मरा हुआ आदमी क्या वापस लौटेगा। कल की लाश को अब रखना उचित नहीं है। लाश नहीं उठेगी तो मंदिर के पूजा-पाठ में देर होगी। चलो जल्दी अर्थी को तैयार करो।’

‘मैया री, मुझे मौत क्यों नही आई’ -पत्नी की दहाड़ डाहुक (जलकुंभी) पक्षी की आवाज की तरह  गूंज रही थी। उसके साथ ताल मिलाते हुए रोने के लिए कोई नहीं था। उस गांव में उसकी बिरादरी का कोई नहीं था। वह दूसरे गांव से आकर यहां साझे में खेती करके जैसे-तैसे गुजारा कर रहा था। दूसरी जाति की लड़की से शादी करने के कारण उसे उसके पिता ने घर से बेदखल कर दिया था। इस बात को सभी ने सोच लिया कि जरूर यही रिपोर्ट जाएगी कि सुकुटा की आत्महत्या के लिए उसकी पारिवारिक घटना ही जिम्मेदार है। इसलिए अब किसी ने देर नहीं की। लाश को अर्थी में रख कर बांधना शुरू किया। अर्थी के चारों किनारों को चार लोगों ने उठाया। मृदंग और मजीरा बजने लगा। गेली गांव के छोर तक रोती-बिलखती हुई लाश के पीछे दौड़ी। कुछ औरतें उसे घर लौटा ले आईं। लाश को जला चुकने के बाद कहीं से खबर पाकर पुलिस पहुंची और जांच-पड़ताल शुरू कर दी।

गेली का ससुर बिशनू शाम को पहुंचा। पिछले दस साल से बेटे को भूल गया था। घर में बेटे और बहू को घड़ी भर भी चैन से रहने नहीं देता था। किसान के आत्महत्या करने से सरकार से सहायता मिलती है। बहू को भी जरूर फौरन सरकारी सहायता मिली होगी। इस आशा में अपनी पत्नी के उकसाने पर बिशनू आया था  विधवा बहू के पास। गेली सिर झुकाए बैठी हुई थी। ससुर को देखकर रोना शुरू कर दिया- ‘मैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आई।’ उसे रोना आता नहीं था। इसलिए मोबाइल फोन  के रिंग टोन के बजने की तरह एक ही ढंग से एक ही आवाज में रो रही थी।

पड़ोस की बूढ़ी औरत गेली के ससुर को देखकर पास आई। ‘बेटे के जिंदा रहने तक कभी एक बार भी पास नहीं फटके। अब मरने के बाद!’

बिशनू के पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं था। उसने सिर्फ कहने के लिए कह दिया, ‘मौत की खबर पाकर बहुत दूर से आया हूँ। पिता के हृदय की वेदना को समझता कौन है? दाह-क्रिया और शुद्धि-कार्य को करने के लिए कोई है तो नहीं। रहा नाती, वह तो बच्चा है। इच्छा होती है कि जगन्नाथ पुरी जाकर शुद्धि-कार्य पूरा कर आऊं। सरपंच, बी.डी.ओ., एमएलए, कोई आया नहीं हैं।’

बिशनू की बातें सुनकर गुस्से में तमतमाते हुए बूढ़ी ने कहा- ‘मैं समझ गई कि तुम किस चीज के लिए आए हो। एक धेला लेकर आए नहीं हो। ऊपर से इस असमय में पैसे के लालच से आए हो। शरम नहीं आती तुम्हें।’

गुस्से में लाल-पीला होकर बूढ़ी लौट रही थी। गेली के मकान की ओर एक सफेदपोश आदमी को आते देख वह अटक गई। सुकुटा का बाप बिशनू काफी खुश हो गया। कहीं सहायता देने के लिए कोई सरकारी आदमी आ रहा होगा।

पास आने के बाद पता चला कि वह गांव का साहूकार निधि साहू है। गांव से पुलिस के चले जाने के बाद निधि साहू रात को गांव लौटा था।

निधि साहू कर्ज के मामले में कुछ कहने को आया है। गेली फिर से दहाड़ मारकर रोने लगी- ‘मैया री, मुझे मौत क्यों नहीं आई।’

निधि साहू ने कहा- ‘ठीक है, अपना रोना-धोना अब बंद कर। मरा हुआ आदमी फिर लौटकर आएगा क्या? बोल, मेरे कर्ज के रुपये कब लौटाएगी?’

पड़ोस के बूढ़े ने दखल देते हुए कहा- ‘उसके पास है भी क्या, जो वह लौटाएगी?’

निधि साहू ने जवाब दिया- ‘कुछ न हो, मां और बेटा तो है। मेरे घर में काम करके कर्ज चुकाएंगे। गेली मेरे घर में काम करेगी। बेटा मेरी दुकान में नौकर का काम करेगा। मैं इस असमय में वह बात नहीं कह रहा हूँ। कुछ दिनों के बाद मैं फिर आऊंगा। मां और बेटा तैयार होकर रहना’, कहते हुए निधि साहू चला गया।

गेली ने फिर से रोना शुरू कर दिया। पड़ोस  के बूढ़े ने ढांढस बंधाते हुए कहा- ‘तू क्यों रो रही है बेटी। तेरे पति के कर्ज को चुकाने के लिए उत्तराधिकारी के रूप में तेरे गर्भ में जो बच्चा पल रहा है, उसकी तनिक चिंता कर। बिना खाए-पिए बैठी रहोगी तो उस बच्चे का क्या हाल होगा?’

गेली के रोने की आवाज अब रिंग टोन की आवाज के बदलने की तरह बदल गई। वह अपने पेट को सहलाते हुए रोने लगी- ‘कर्ज के बोझ को उठाने के लिए इस संसार में आनेवाली संतान को मेरे गर्भ में पाल ही क्यों रहे हो प्रभु!’

 

दाशरथि भूयाँ, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, नगालैंड विश्वविद्यालय, मुख्यालय: लुमामी, जिला-जुन्हेबोटो, नगालैंड, पिन कोड-798627मो.7008132134

भगवान  त्रिपाठी, सी-33, शरधाबालि  चौथी गली एक्सटेंशन, खोड़ासिंगी, ब्रह्मपुर, जिला – गंजाम (ओड़िशा)  पिन-760010, मो.9437037485