वरिष्ठ लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता। बुंदेलखंड की स्त्री अभिव्यक्तियों पर पुस्तक मरी जाएं मल्हारें गाएं। संप्रति : प्राध्यापन।

दुआओं का व्यापारी

बाड़े तुम्हारे
हरे, लाल, नीले, पीले
और केसरी
जिनमें कैद हो तुम
अपने झंडे-डंडे के साथ
मवेशी की तरह
वह भी रास्ता भूल जाता है
कभी-कभी
बाड़े का

पर तुम
अपने दिमाग में लिए घूमते हो नक्शा
बाड़े का..
पर मैं
अक्कई पद्मशाली1
घूमती फिरती हूँ
उन्मत्त बेखौफ
इन सब बाड़ों के मुहानों पर
दुआओं का व्यापार करती…

तुम मुझे नपुंसक बोलते हो
ये तुम्हारी भाषा की लाचारी
तुम्हारे दिमाग की प्रवंचना है
जिसमें मैं गाली बन तैरती हूँ
पर मैं एक संपूर्ण मनुष्य हूँ
मनुष्य की तरह
तुम्हारे नवजात मेरी दुआओं से
जन्म लेते हैं
मेरे पैरों की थाप
और ताली की लय
तुम्हें आश्वस्त करती है
तुम्हारे जीवन के रंग
अनहद नाद की तरह
सब मुझसे शुरू
और मुझ में समाप्त होते हैं
मैं परती धरती का गीत हूँ

सुनो स्त्रियो
मैं अवहेलनाओं से बनी
उदासी नहीं हूं
मैं तिरस्कारों से उपजी
हताशा भी नहीं हूँ
तुम्हारी तरह

तुमने मेरे दबंग स्वरों में छुपी
कातर ध्वनि को
महसूस किया है कभी?
कभी किसी दिन या किसी रात
अकस्मात किसी बच्चे का
घर से बेदखल हो जाना
कभी किसी दिन या किसी रात
किसी बच्चे की टांगों के बीच
खौलते पानी से निकले आर्तनाद को
सुना है कभी?

फिर भी मैं बेचारगियों का संगीत नहीं
निर्भयता का उदग्र स्वर हूँ
क्योंकि
मुक्ति लिंग में नहीं
दिमाग में रचती है

मैं, रात के अंधेरे को चीरकर
निकल जाने वाली कबीट
लटकी हूँ उल्टी
तुम्हारे सभ्य समाज के चेहरे पर

सुनो पुरुषो
मैं देहराग की रागिनी नहीं
औदात्य और प्रेम का उत्कट राग हूँ

तनिक ठहरो
मेरे संपूर्ण अस्तित्व को
गाली में बदलने वालो
सुनो मेरी आत्मा की उदासियों को
जरा धीरज से कान लगा धरती पर
बस सुनो…
मैं तो बस दुआओं की व्यापारी हूँ…!

युद्धरत स्त्री

युद्ध तुम्हारे लिए
देशगान का ओजपूर्ण स्वर हो सकता है
मेरे लिए
अंधेरे में अपनी देह को दफनाना है युद्ध
तेज धौंकती आवाजों के बीच

तुम्हारे लिए साहस और बलिदान
का गान हो सकता है युद्ध
मेरे लिए एक लिहाफ के
सिले हुए मुंह के अंदर
देह की बेचारगी और भूख का
व्याकुल गान है युद्ध

तुम्हारे लिए
धरती/झंडा/डंडा की महिमा का गान
हो सकता है युद्ध
मेरे लिए
योनि/स्तन और मरती हुई आत्मा का
विलाप है युद्ध

तुम्हारे लिए जीवन/जीविका और देशभक्ति का
लिजलिजा स्वप्न है युद्ध
मेरे लिए
हर क्षण जीवन से मृत्यु पाने की
मर्मांतक पीड़ा की
निरुपायता से उपजी सिसकी है युद्ध

तुम्हारे लिए राष्ट्र-उन्माद है युद्ध
जिसके पार्श्व में खड़े
क्रूर शासक को
झुठलाते अपनी आत्मा को
रख रेहन तुम अंधेरे में भुनाते हो
अपने रुग्ण पौरुष को
खोजते हो एक स्त्री देह
युद्धवीर!
मनाते हो अपनी जय-पराजय का उत्सव

मेरे लिए सिर्फ
एक
देह
है
युद्ध…
सुनो

तुमने कहा सुनो न
मैं भीग गई
तुमने फिर कहा सुनो
मैं सुनने लगी
तुमने फिर-फिर कहा
सुनो, सुनो, सुनो
मैं बस सुनती रही
बोलने की बारी कभी आई ही नहीं…।

 

1. अक्कई पद्मशाली – एक किन्नर जिसकी टांगों पर उसके पिता ने खौलता पानी डाला और घर से निकाल दिया। पर आज वह समाज सेविका है।

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