संविधान को जीवन का माध्यम मानने वाले भीमराव आंबेडकर युग परिवर्तनकारी व्यक्तित्व थे. एक सदी पहले की परिस्थितियों में भी वह एक ऐसे आत्मनिर्भर समाज का सपना देख रहे थे, जो जाति-धर्म की दीवारों से परे हो. वे जानते थे कि इस सपने का सच होना कठिन है, लेकिन उन्हें विश्वास था कि अगर लोग मानसिक गुलामी को छोड़कर ख़ुद को शिक्षित करने की ओर प्रवृत्त हों, तो कुछ भी असंभव नहीं। इसीलिए उन्होंने हमेशा कहा, ‘मेरे नाम की जय-जयकार करने से अच्छा है, लोग मेरे बताए हुए रास्ते पर चलें। मैं बहुत मुश्किल से इस कारवां को इस स्थिति तक लाया हूं। यदि मेरे लोग, मेरे सेनापति इस कारवां को आगे नहीं ले जा सकें, तो पीछे भी मत जाने देना।’ आइए सुनते हैं भीमराव आंबेडकर के प्रेरक कथन-
वाचन: गुरी, चिकित्सक डेन्वर कॉलरॉडो।
संयोजन एवं संपादन : उपमा ऋचा
प्रस्तुति : वागर्थ भारतीय भाषा परिषद् कोलकाता
Excellent production, great quotes that apply so succinctly to our world today. Bravo, Upma-Richa!
अद्भुत।