(1928-2018) गुजराती के साथ हिंदी में भी लेखन। अपने यात्रा वृत्तांत सौंदर्यायानी नदी नर्मदाके लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार। चर्चित पुस्तक नर्मदा की परिक्रमा

श्रेष्ठ शासन

एक बार एक राजा ने अपने दरबारियों से पूछा, ‘मेरा शासन श्रेष्ठ है या मेरे पिता का शासन श्रेष्ठ था या मेरे दादा जी का शासन हमारे शासन से बेहतर हुआ करता था?’ जब कोई भी दरबारी राजा के इस प्रश्न का उत्तर न दे पाया, तब एक मंत्री ने राजा को सुझाव दिया कि इस प्रश्न का सही उत्तर पाने के लिए आप किसी ऐसे वृद्ध व्यक्ति को बुलाएं जिसने आप तीनों शासकों के राज्य-प्रबंधन को देखा हो।

राजा के हुक्म होने के साथ ही राज्य के कर्मचारी एक गरीब वृद्ध को खोज कर ले आए। वह राज्य का सबसे वृद्ध व्यक्ति था। राजा का प्रश्न सुनने के बाद उन्होंने झुककर कहा, ‘महाराज! मैं भला राज-काज का काम क्या समझूंगा! लेकिन मैंने आपके पिताश्री का शासन काल और वैसे ही आपके दादा जी का शासनकाल भी देखा है। इसलिए अपने जीवन की एक घटना आपको सुनाना चाहूंगा। इसे सुनकर आप स्वयं निर्णय कर लीजिएगा। यह कहकर उस वृद्ध ने अपनी बात कहनी शुरू की :

‘आपके दादा जी के दौर में एक बार बहुत भयंकर आंधी आई। मानो दिन में ही रात हो गई हो। एक हाथ को दूसरा हाथ न सूझे ऐसा। कितने ही मकानों की छतें उड़ गई थीं। बड़े-बड़े पेड़ जड़-मूल सहित उखड़ गए थे। उसी समय कीमती कपड़ों और आभूषणों से लदी हुई एक अत्यंत सुंदर स्त्री राह भटककर मेरे घर आ पहुंची। वह बहुत घबरायी हुई थी। मैंने उसे ढाढ़स बंधाते हुए कहा कि बहन, घबराने की कोई बात नहीं। आंधी रुकते ही मैं तुम्हें सकुशल तुम्हारे घर पहुंचा आऊंगा। मेरी बात सुनकर उसके मन को भी शांति मिली। थोड़ी देर बाद जब आंधी रुकी तो मैं उसे उसके घर पहुंचा आया। उस समय मैं जवान था मगर मेरे मन में कोई पाप पनप न सका। मुझे इस बात का बहुत संतोष था कि मैंने एक बहुत भला कार्य किया है।

आपके दादा जी के बाद आपके पिताजी का दौर आया। उस समय मैं अधेड़ उम्र का हो गया था और उस घटना को याद करते हुए सोचता था कि मैं भी कैसा मूर्ख था। उस स्त्री के आभूषण उतार कर यदि उसे घर से बाहर निकाल दिया होता तो उस झंझावात में किसी को कानों कान खबर भी न होती।

अब आपका शासन है। अब मैं बूढ़ा हो चुका हूँ, फिर भी कई बार सोचता हूँ कि जवानी के दिनों में मैं कैसा महामूर्ख हुआ करता था। अगर उस समय उस स्त्री को मैंने रख लिया होता तो किसी को कुछ पता नहीं चलता। ओह, कितनी सुंदर थी वह स्त्री और कितने कीमती आभूषण पहने हुए थे उसने! आज उस घटना को याद करता हूँ तो बहुत पछतावा होता है।’

इतना कहकर वह वृद्ध चुप हो गया। राजा को अपने प्रशासन पर बहुत गर्व था। उस वृद्ध की बात सुनकर उसके गर्व का महल ढह गया।

बुद्धिमान मंत्री

एक बहुत ही क्रूर राजा था। उसने प्रजा पर बहुत सारे कर चढ़ा रखे थे। उसके अत्याचारों से तंग आकर लोग पलायन करने लगे और गांव के गांव खाली हो गए।

एक बार राजा अपने मंत्री के साथ आखेट पर गए। दूर-दूर तक कई गांव निर्जन पड़े हुए थे। खेत-खलिहान सूने पड़े हुए थे। कहीं भी किसी मनुष्य का नामोनिशान न था।

जंगल में एक पेड़ पर दो उल्लू बात कर रहे थे। मंत्री पक्षियों की भाषा जानता था। उत्सुकतावश राजा ने पूछा: ‘मंत्री, ये उल्लू क्या बात कर रहे हैं?’ मंत्री ने उत्तर दिया, ‘महाराज, निर्जन स्थानों में उल्लुओं का ही वास होता है। ये दोनों उल्लू अपने पुत्र और पुत्री का विवाह तय कर रहे हैं। पुत्री का पिता दहेज में बीस निर्जन गांव दे रहा है मगर पुत्र का पिता तीस गांव मांग रहा है। जवाब में पुत्री के पिता ने कहा कि हमारे राजा जी सलामत रहें। थोड़े ही दिनों में मैं तीस तो क्या चालीस गांव अपनी पुत्री को दहेज में दूंगा।’

यह बात सुनकर राजा को अपनी प्रजा पर किए गए अत्याचार याद आ गए। वह बहुत लज्जित हुआ। उसने सारे कर माफ कर दिए। उसका देश उजड़ने से बच गया।

संपर्क : बिनय कुमार पटेल : सहायक प्राध्यापक, ननी भट्टाचार्य स्मारक महविद्यालय, जयगांव, अलीपुरद्वार, पश्चिम बंगालमो.9832861510