एकांत श्रीवास्तव
अँजोर (छत्तीसगढ़ी कविताएं कवि द्वारा हिंदी अनुवाद सहित)
प्रकाशन संस्थान, दिल्ली : मूल्य : २५० रुपये
इसमें छत्तीसगढ़ के बहाने गांव के मार्मिक चित्र उजागर हुए हैं।ये कविताएं आधुनिक विकास की आत्मघाती लहरों में डूबते गांव का पुनर्वास करती हैं।ये न पूर्णतः कल्पसृष्टि हैं, न ही खालिस यथार्थ।इनमें दोनों के बीच संतुलन के साथ सधा काव्यात्मक अनुभव-लोक है।

मुक्ता
शब्द बहुरुपिये हो गये (कविता संग्रह)
मोनिका प्रकाशन, जयपुर : मूल्य : ३२५ रुपये
इन कविताओं के माध्यम से स्त्री के मन, स्त्री के जीवन तथा वजूद को एक अनोखी काव्यात्मक संवेदना के दायरे में लाने की कोशिश है।स्त्री-विमर्श की जानी-पहचानी हदों को यहां तोड़ा गया है।स्त्री वजूद से आगे कवयित्री मुक्ता ने नारी जीवन की जटिलताओं और विसंगतियों को उजागर किया है।

अभय कुमार ठाकुर
स्त्रियों का अमृत महोत्सव कब होगा? (आलोचना)
वाणी प्रकाशन, दिल्ली : मूल्य : २०० रुपये
इसमें स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज में स्त्री आकांक्षा के स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों, खासकर हिंदी साहित्य में उनकी अभिव्यक्ति पर विचार किया गया है।इसमें मोहन राकेश के नाटक ‘आधे-अधूरे’ और सुरेंद्र वर्मा के उपन्यास ‘मुझे चांद चाहिए’ पर विस्तृत चर्चा है।

अनंत
दो गुलफामों की तीसरी कसम (फिल्म चर्चा)
कीकट प्रकाशन, पटना : मूल्य : ४०० रुपये
इस पुस्तक में ‘तीसरी कसम’ का बीज रेणु को कब, कहां मिला, उसके किरदार किन वास्तविक व्यक्तियों पर आधारित थे, उनके चरित्र, उनकी भाषा, उनकी कथा रेणु को कैसे और कहां से मिली- इन सबकी ठोस विवेचना है।यह कहानी शैलेंद्र तक कैसे पहुंची, इस पर भी विस्तार से लिखा गया है।

ज्योति रीता
मैं थिगली में लिपटी थेर हूँ (कविता संग्रह)
संभावना प्रकाशन, हापुड़ : मूल्य : १९९ रुपये
इस संकलन में आम जन की संवेदना से जुड़ी कविताएं हैं।जीवन में जो भी बेचैन करने वाली चीज मिली, उसे कवि ने एक अनोखी काव्य-भाषा दी है।इनमें नौकरीशुदा स्त्रियों के एकल जीवन के भी चित्र हैं।