युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। क्या हो यदि किसी दिन कोई आपसे कहे कि अबतक का समग्र ज्ञान पुरुषों द्वारा अपनी कामनाओं के औचित्य-स्थापन की प्रक्रिया भर है? शायद एक बारगी आप इसे स्वीकार नहीं कर पाएंगे कि ज्ञान भी स्त्री-पुरुष का भेद कर सकता...
सीमांत का सौंदर्य और विषाद : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय।किसी युग के काव्य-वैशिष्ट्य को चिह्नित करते हुए यह ज़रूर देखना चाहिए कि वे कविताएँ ग्रामीण संवेदना को कैसे अभिव्यक्त करती हैं| इससे उनकी जनोन्मुखता, सामुदायिकता, इंद्रियबोध, पारिस्थितिक गहनता, वाचिकता, जीवंतता...
सत्यजीत राय के सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव
सहायक प्रोफेसर, प्रदर्शनकारी कला विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा ‘बहु दिन धरे, बहु कोश दुरेबहु व्यय कोरे, बहु देश घुरेदेखते गियेछि पर्वत-माला, देखते गियेछि शिंधुदेखा होए ना चक्षु मेलियाघर होते शुधु दुई पा फेलियासारा देश घुरे, देखा होए न...
नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। नीलेश रघुवंशी का जन्म विदिसा के कस्बा‘गंज बासौदा’ में हुआ। बासौदा का इतिहास मालवा के पठारी भूगोल में बहुत गहरे धंसा हुआ है। नीलेश का आरंभिक भावबोध बासौदा के कस्बाई जीवन-अनुभवों में आकार लेता है। इसमें आठ बहनों,...
सत्यजीत राय के सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव
सहायक प्रोफेसर, प्रदर्शनकारी कला विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा ‘बहु दिन धरे, बहु कोश दुरेबहु व्यय कोरे, बहु देश घुरेदेखते गियेछि पर्वत-माला, देखते गियेछि शिंधुदेखा होए ना चक्षु मेलियाघर होते शुधु दुई पा फेलियासारा देश घुरे, देखा होए न...
नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। नीलेश रघुवंशी का जन्म विदिसा के कस्बा‘गंज बासौदा’ में हुआ। बासौदा का इतिहास मालवा के पठारी भूगोल में बहुत गहरे धंसा हुआ है। नीलेश का आरंभिक भावबोध बासौदा के कस्बाई जीवन-अनुभवों में आकार लेता है। इसमें आठ बहनों,...
पंकज चतुर्वेदी-प्रतिवाद की भंगिमा : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। कवि-वैशिष्ट्य जैसे इस बात का प्रमाण है कि हर कवि में एक भिन्न संवेदनतंत्र होता है, उसी तरह कविता का युग-वैशिष्ट्य इस बात का प्रमाण है कि कवि का भाव बोध इतिहास के भीतर ही बनता है। ऐतिहासिक शक्तियां उसके भावबोध,...
पवन करण की गोलचक्कर से दूर जाती कविताएं : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। हिंदी कविता के इतिहास में दो प्रवृत्तियां लगातार दिखाई पड़ती हैं। पहली प्रवृत्ति, कविता को कवि-कौशल से अर्जित बहुमूल्य कलात्मक वस्तु मानने की और दूसरी, कविता को जीवन का स्वाभाविक कलात्मक विकास तथा सार्वजनिक...
आशुतोष दुबे की कविताएं अनुभूति की सार्वजनीनता खोजती हैं : आशीष मिश्र
युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। आशुतोष दुबे की मनोगतियों का स्व-साक्षीभाव उसकी गुरुता को बढ़ा देता है। यहाँ सिर्फ द्रष्टा किसी दृश्य को नहीं देखता, बल्कि आत्म का कोई और स्तर है जो द्रष्टा को देखते हुए भी देखता है। यह उसकी भी गतियों को...
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