आलेख
आदिवासी होने का अर्थ : मीनाक्षी नटराजन, अनुवाद :अवधेश प्रसाद सिंह

आदिवासी होने का अर्थ : मीनाक्षी नटराजन, अनुवाद :अवधेश प्रसाद सिंह

सोशल एक्टिविस्ट, पूर्व लोकसभा सदस्य (म.प्र.) लेखक, भाषाविद एवं अनुवादक. जब नेहरू से पूछा गया कि आदिवासियों के प्रति भारत का रुख क्या होना चाहिए तो उन्होंने कहा, ‘विनम्रता’। 1931 में, जनगणना आयुक्त जे.एच. हट्टन ने यह सुझाव दिया कि आदिवासी समुदायों की मान्यताओं की रक्षा...

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स्त्री-विमर्श का सच : चंद्रभान सिंह यादव

स्त्री-विमर्श का सच : चंद्रभान सिंह यादव

युवा आलोचक। ‘मीडिया और आधी आबादी का सच’ पर पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च। जॉन स्टुअर्ट मिल की रचना ‘द सब्जेक्सन ऑफ़ विमेन’ के अनुसार,  स्त्री और पुरुष के बीच शारीरिक विषमताएं अवश्य हैं, किंतु बौद्धिक क्षमता में दोनों बराबर हैं। सीबीएससी, प्रादेशिक बोर्ड या सिविल सेवाओं के...

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प्रसाद और छायावाद – साधारण में छिपे असाधारण की खोज : विनोद शाही

प्रसाद और छायावाद – साधारण में छिपे असाधारण की खोज : विनोद शाही

वरिष्ठ आलोचक और नाटककार।आलोचना की लगभग तीस पुस्तकें।अद्यतन पुस्तक ‘संस्कृति और राजनीति’। जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक भी हैं और उसका शिखर भी।उनके छायावाद को समझना, एक तरह से हिंदी छायावाद की मूल प्रकृति को समझने जैसा है।प्रसाद ने छायावाद की जो जमीन तैयार की, उसे...

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स्त्री के अंतर्लोक का वैभव : आशीष मिश्र

स्त्री के अंतर्लोक का वैभव : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। क्या हो यदि किसी दिन कोई आपसे कहे कि अबतक का समग्र ज्ञान पुरुषों द्वारा अपनी कामनाओं के औचित्य-स्थापन की प्रक्रिया भर है? शायद एक बारगी आप इसे स्वीकार नहीं कर पाएंगे कि ज्ञान भी स्त्री-पुरुष का भेद कर सकता...

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रामविलास शर्मा के पत्र : संतोष शर्मा

रामविलास शर्मा के पत्र : संतोष शर्मा

रसायनशास्त्री और पूर्व-शिक्षक। रामविलास शर्मा की पुत्रवधू। पति विजयमोहन शर्मा के साथ एक पुस्तक का संपादन पत्रों के महत्व को रामविलास जी ने बहुत पहले ही पहचान लिया था। उन्होंने जान लिया था कि पत्रों में एक उष्मा होती है जो पढ़ने वाले को अभिभूत करती है और इनमें दी गई...

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सीमांत का सौंदर्य और विषाद : आशीष मिश्र

सीमांत का सौंदर्य और विषाद : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय।किसी युग के काव्य-वैशिष्ट्य को चिह्नित करते हुए यह ज़रूर देखना चाहिए कि वे कविताएँ ग्रामीण संवेदना को कैसे अभिव्यक्त करती हैं| इससे उनकी जनोन्मुखता, सामुदायिकता, इंद्रियबोध, पारिस्थितिक गहनता, वाचिकता, जीवंतता...

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सोच का एक दूसरा रास्ता हमेशा होता है : अब्दुलरजाक गुरना का विचारलोक

सोच का एक दूसरा रास्ता हमेशा होता है : अब्दुलरजाक गुरना का विचारलोक

लेखक और अनुवादक। यूनिवर्सिटी ऑफ केंट से अंग्रेजी और उत्तर-औपनिवेशिक साहित्य के रिटायर्ड प्रोफेसर अब्दुलरजाक गुरना का जन्म 1948 में तंजानिया के जंजीबार में हुआ था| 1960 के दशक में परिस्थितियों ने उनके नाम के साथ शरणार्थी की पहचान जोड़ दी| उसी पहचान को लेकर वे यूनाइटेड...

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सत्यजीत राय के  सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव

सत्यजीत राय के सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव

सहायक प्रोफेसर, प्रदर्शनकारी कला विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा ‘बहु दिन धरे, बहु कोश दुरेबहु व्यय कोरे, बहु देश घुरेदेखते गियेछि पर्वत-माला, देखते गियेछि शिंधुदेखा होए ना चक्षु मेलियाघर होते शुधु दुई पा फेलियासारा देश घुरे, देखा होए न...

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नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र

नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। नीलेश रघुवंशी का जन्म विदिसा के कस्बा‘गंज बासौदा’ में हुआ। बासौदा का इतिहास मालवा के पठारी भूगोल में बहुत गहरे धंसा हुआ है। नीलेश का आरंभिक भावबोध बासौदा के कस्बाई जीवन-अनुभवों में आकार लेता है। इसमें आठ बहनों,...

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रामविलास शर्मा के पत्र : संतोष शर्मा

रामविलास शर्मा के पत्र : संतोष शर्मा

रसायनशास्त्री और पूर्व-शिक्षक। रामविलास शर्मा की पुत्रवधू। पति विजयमोहन शर्मा के साथ एक पुस्तक का संपादन पत्रों के महत्व को रामविलास जी ने बहुत पहले ही पहचान लिया था। उन्होंने जान लिया था कि पत्रों में एक उष्मा होती है जो पढ़ने वाले को अभिभूत करती है और इनमें दी गई...

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निराला की दृष्टि में भाषा और जातीयता : कृष्णदत्त शर्मा

निराला की दृष्टि में भाषा और जातीयता : कृष्णदत्त शर्मा

(1942- 2021)। दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर से 2007 में सेवानिवृत्त। पश्चिमी साहित्यशास्त्र के विशेषज्ञ। कोरोना की दुखद चपेट में असामयिक मृत्यु। अंग्रेज़ी के एक बड़े आलोचक ने भाषा को मानव-मन के ऐसे ‘शस्त्रागार’ की संज्ञा दी है, ‘जिसमें अतीत के विजय-स्मारक और भावी...

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शब्दों की आड़ में अर्थों का दुखांत : उपमा ऋचा

शब्दों की आड़ में अर्थों का दुखांत : उपमा ऋचा

पिछले एक दशक से लेखन में सक्रिय। संप्रति स्वतंत्र पत्रकार और अनुवादक 'शब्दों पर बात करने के लिए शब्दों का प्रयोग करना ठीक वैसा ही है जैसा कि पेंसिल का चित्र बनाने के लिए पेंसिल का इस्तेमाल करना। एक निहायत ही मुश्किल, पेचीदा और गुमराह करने वाली कवायद!' -पैट्रिक रूथफ़्स...

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मलूकदास की चिंता और अकाल : आलोक कुमार पाण्डेय

मलूकदास की चिंता और अकाल : आलोक कुमार पाण्डेय

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा  में शोधार्थी। मलूकदास (17वीं सदी) का पारिवारिक धंधा व्यापार था, जिसमें प्रायः उनका मन नहीं लगता था । वे अपने समाज में व्याप्त अनेक प्रकार की दुश्वारियों से दो-चार हो रहे थे । न केवल उनका काव्य, बल्कि वैयक्तिक...

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सत्यजीत राय के  सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव

सत्यजीत राय के सिनेमा में रवींद्रनाथ ठाकुर की छाया : सुरभि विप्लव

सहायक प्रोफेसर, प्रदर्शनकारी कला विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा ‘बहु दिन धरे, बहु कोश दुरेबहु व्यय कोरे, बहु देश घुरेदेखते गियेछि पर्वत-माला, देखते गियेछि शिंधुदेखा होए ना चक्षु मेलियाघर होते शुधु दुई पा फेलियासारा देश घुरे, देखा होए न...

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नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र

नीलेश रघुवंशी – स्त्री कविता का भूगोल : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। नीलेश रघुवंशी का जन्म विदिसा के कस्बा‘गंज बासौदा’ में हुआ। बासौदा का इतिहास मालवा के पठारी भूगोल में बहुत गहरे धंसा हुआ है। नीलेश का आरंभिक भावबोध बासौदा के कस्बाई जीवन-अनुभवों में आकार लेता है। इसमें आठ बहनों,...

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प्रसाद और छायावाद – साधारण में छिपे असाधारण की खोज : विनोद शाही

प्रसाद और छायावाद – साधारण में छिपे असाधारण की खोज : विनोद शाही

विनोद शाही वरिष्ठ आलोचक और नाटककार। आलोचना की लगभग तीस पुस्तकें। अद्यतन पुस्तक ‘संस्कृति और राजनीति’। जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक भी हैं और उसका शिखर भी। उनके छायावाद को समझना, एक तरह से हिंदी छायावाद की मूल प्रकृति को समझने जैसा है। प्रसाद ने छायावाद की जो जमीन...

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कविता का कोरोना काल : जयश्री सिंह

कविता का कोरोना काल : जयश्री सिंह

मुंबई विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक। ताजा किताब ‘भय आक्रांत’(कथेतर गद्य)।  इस समय पूरा विश्व एक बड़ी त्रासदी से गुजर रहा है। देशों की उन्नत सभ्यताओं को एक अदृश्य वायरस ने बौना कर दिया है। मध्यम वर्गीय परिवार का व्यक्ति आज फिर से संघर्ष के उसी बिंदु पर आ कर...

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पंकज चतुर्वेदी-प्रतिवाद की भंगिमा : आशीष मिश्र

पंकज चतुर्वेदी-प्रतिवाद की भंगिमा : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। कवि-वैशिष्ट्य जैसे इस बात का प्रमाण है कि हर कवि में एक भिन्न संवेदनतंत्र होता है, उसी तरह कविता का युग-वैशिष्ट्य इस बात का प्रमाण है कि कवि का भाव बोध इतिहास के भीतर ही बनता है। ऐतिहासिक शक्तियां उसके भावबोध,...

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केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएं : हरिमोहन शर्मा

केदारनाथ सिंह की कुछ कविताएं : हरिमोहन शर्मा

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्राध्यापक। ‘चंद्रशेखर वाजपेयी कृत रसिक विनोद’, ‘उत्तर छायावादी काव्य भाषा’ और ‘रचना से संवाद’ (आलोचना) पुस्तकें प्रकाशित। प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह के काव्य संग्रह ताल्सताय और साइकिल (2005) के शीर्षक को देख कर थोड़ा...

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पवन करण की गोलचक्कर से दूर जाती कविताएं : आशीष मिश्र

पवन करण की गोलचक्कर से दूर जाती कविताएं : आशीष मिश्र

युवा आलोचक। और साहित्यिक-सांस्कृतिक रूप से निरंतर सक्रिय। हिंदी कविता के इतिहास में दो प्रवृत्तियां लगातार दिखाई पड़ती हैं। पहली प्रवृत्ति, कविता को कवि-कौशल से अर्जित बहुमूल्य कलात्मक वस्तु मानने की और दूसरी, कविता को जीवन का स्वाभाविक कलात्मक विकास तथा सार्वजनिक...

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