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विजयश्री तनवीर, दिल्ली: मैं ‘वागर्थ’ के संपादक के पास यह शिक़ायत दर्ज़ कराना चाहती हूँ कि इसके अक्टूबर 2023 अंक में रजनी शर्मा बस्तरिया की कहानी ‘सेवती का ककवा गंधरु का रूमाल’  मेरी कहानी ‘जो डूबा सो पार’ की सौ फ़ीसद नकल है। मेरी यह कहानी 2020 में ‘अहा ज़िन्दगी’ के  फ़रवरी...

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हंसा दीप, कनाडा:‘वागर्थ’ के सितंबर  अंक। ‘टूटी पेंसिल’ की बेहतरीन प्रस्तुति ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तहेदिल से शुक्रिया अदा करती हूँ। कहानी पर लगातार कई प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं। ‘वागर्थ’ का पाठक वर्ग व्यापक है। राजेश पाठक, गिरिडीह:‘वागर्थ’ का अगस्त अंक। यह एक...

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शशि खरे, रायपुर:‘वागर्थ’ जुलाई अंक। लंबे समय बाद इतना गंभीर, रचनात्मक, लगातार बांधे रखने में सक्षम, सही मायने में संपादकीय पढ़ा है। प्रेमचंद साहित्य को लेकर  अतीत और वर्तमान, वैश्वीकरण का फैलाव और मानसिक संकीर्णता, पैसा, सुख और सत्ता की दौड़ में शामिल लोग और बदलता...

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रामदुलारी शर्मा: भानुप्रकाश रघुवंशी की कविताएं ‘वागर्थ’ पत्रिका में प्रकाशित होना वाकई सुखद संदेश है। वह समय के एक सजग रचनाकार हैं। एक तरफ राजनीतिक-सामाजिक विद्रूपताओं पर पैनी नजर रखते हैं तो दूसरी ओर उनकी रचनाएं संवेदना में बेहद मार्मिक और नम होकर गहराई में उतरती चली...

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प्रिय मेरी अच्छी-सी छोटी बहना कुसुम, आज अचानक सुबह-सुबह मेरा झोला तुम्हारी सौगात से भर गया। सौगात यानी ‘वागर्थ’ का मई 2023 अंक। ‘अचानक’ इसलिए कि इस बार कई महीनों के अंतराल में ‘वागर्थ’ आया। ‘समावर्तन’ का भी यही हाल है। प्रकाशित हर महीने वेबसाइट में हो जाता है, किंतु...

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राजेंद्र पटोरिया, नागपुर:‘वागर्थ’ का अप्रैल २०२३ अंक। ‘भारतीय नदियों पर संकट’ (प्रस्तुति : रमा शंकर सिंह) विशेष रूप से पढ़ा।इस पर पहले भी संकट था, आज भी संकट है।यदि सरकार योजनाबद्ध तरीके से प्लानिंग बनाकर पूरी निष्ठा, ईमानदारी एवं समर्पण के साथ इस ओर कदम बढ़ाए तो...

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प्रशांत कुमार, मुंबई:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में जितेंद्र कुमार सोनी की ‘किराए का मकान’ काफी सुंदर कहानी है। मुंबई जैसे शहर में पिछले १० सालों से मैं भी किराए के मकान में रहता हूँ, मेरा बेटा भी यहीं पैदा हुआ। जब घर बदला था तो बेटा कई दिन तक बार-बार यही कहता रहा कि पापा...

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विवेक सत्यांशु, इलाहाबाद - ठीक होली के १ दिन पहले वागर्थ का मार्च २०२३ अंक प्राप्त हुआ, आभारी हूँ।होली में इससे अच्छा उपहार कुछ नहीं हो सकता। असहमति के विवेक से ही सर्जनात्मक आलोचना का विकास होता है।कहानियां तो सभी अच्छी हैं किंतु मनोरंजन व्यापारी की कहानी माननीय दशा...

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मीनाक्षी आहूजा -‘वागर्थ’ फरवरी अंक में कीर्ति शर्मा की प्रकाशित कहानी ‘उजाले की ओर’ एक खूबसूरत कहानी है।जीवन एक बार मिलता है और बुढ़ापे में जीवनसाथी का न होना सच में कष्टकारी है।औरत के जीवन में त्याग के साथ ऊर्जा भी प्रति क्षण क्षीण हो कर केवल एडजेस्टमेंट में खर्च हो...

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गंगा प्रसाद, कांचरापाड़ा-‘वागर्थ’ के जनवरी २०२३ के अंक में प्रकाशित हेरम्ब चतुर्वेदी का आलेख ‘गांधी की मृत्यु देखना चाहते थे औपनिवेशिक सत्ताधीश’ बहुत ही महत्वपूर्ण लगा।आलेख संग्रहणीय है। ‘आशावाद के जनकवि : ध्रुवदेव मिश्र पाषाण’ को पढ़कर उन दिनों में खो गया, जिन दिनों...

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अजय प्रकाश, इलाहाबाद:‘वागर्थ’ के नवंबर अंक में समीक्षा संवाद के अंतर्गत शेखर जोशी से जुड़े प्रश्न और उत्तर दोनों लाजवाब हैं।शेखर जोशी जब दिल्ली से इलाहाबाद आए तो ज्ञान प्रकाश जी के साथ गुड़ की मंडी में रहते थे और हर शनिवार को इंडियन काफी हाउस जाते थे।इसलिए पत्रकारों ने...

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सुधीर सजल, भोपाल:‘वागर्थ’ अक्टूबर २०२२ अंक।आंचलिक गंध और ध्वनियों से पगी, रहस्य और रोमांच से भरी, स्वाभाविक नाटकीयता में गुंथी अवधेश प्रसाद सिंह की कहानी ‘तीजी’ बहुत संवेदित करती है। पी. के. सिंह, पटना:‘वागर्थ’ का अक्टूबर २०२२ अंक प्राप्त हुआ।अद्योपांत पढ़कर...

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दशरथ कुमार सोलंकी- निश्चित ही, यह जानना और समझना नितांत नया है कि हिंसा स्वाभाविक है और अहिंसा अर्जित! इसके पीछे का तार्किक विश्लेषण अपूर्व है।साधुवाद आज के समय के सच को उजागर करने के लिए। चैताली सिन्हा- सितंबर अंक में बोधिसत्व की बहुत सुंदर और प्रासंगिक कविताएं...

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विश्वनाथ किशन भालेराव:‘वागर्थ’ बहुत ही महत्वपूर्ण पत्रिका है।पढ़ने के बाद वैचारिक क्षमता का निर्माण होता है।ज्ञानवर्धक जानकारी है।कवयित्री चित्रा पंवार की कविताएं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत ही मार्मिक और जीवन के प्रति सचेत होने के संबंध में लिखी गई हैं। विष्णु...

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गंगा प्रसाद, कांचरापाड़ा:‘वागर्थ’ 2022 अगस्त अंक।संपादकीय के तहत ‘स्वतंत्रता के इन 75 सालों ने क्या दिया’ पढ़कर लगा कि अपनी बात रखी गई है।सुभाष चंद्र कुशवाहा का आलेख ‘1857 घुड़सवार सैनिक, मातादीन और उसके साथियों की बगावत’ दस्तावेज जैसा मालूम पड़ा।लघुकथा ‘कारण’ (मीरा जैन)...

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सबाल्टर्न की अर्थवत्ता महेश कुमार, बनारस :‘वागर्थ’ के मई अंक में शंभुनाथ जी ने ‘एलीट विमर्श और लोकमन’ संपादकीय लिखा है।एलीट समाज और लोक के बीच के प्रतिस्पर्धी संबंधों की पड़ताल की गई है।मिथकीय और संस्कृत साहित्य के अलावा आधुनिक ‘राष्ट्र और राष्ट्र-राज्य’ से भी संदर्भ...

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धीरेन्द्र सिंह -‘वागर्थ’ जून अंक।डॉ. कुसुम खेमानी के हिंदी साहित्य के विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए।कुछ कहानियां इस अंक में काफी लंबी हैं।पत्रिका का सबसे आकर्षक भाग लगा विविध भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद।सभी अनुवादकों...

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उदय राज सिंह:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में मल्टीमीडिया एक उत्तम प्रयास है! उपयोगी और लाभदायक! आभार पूरी टीम के प्रति ! अंकेश मद्धेशिया: ऐसे और भी वीडियो बनाइए, कथनों का चयन बहुत अच्छा है. बहुत सामयिक! समर सिंह: अप्रैल अंक की मल्टीमीडिया प्रस्तुति को कई बार पूरा सुना....

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नौशीन परवीन, रायपुर:‘वागर्थ’ के जनवरी अंक से लेकर मैं अब तक ‘वागर्थ’ को गंभीरता से पढ़ती आ रही हूँ।मुझे लगता है कि हिंदी में यह अपनी तरह की एक अलग पत्रिका है जो सुनियोजित रूप से संपादित और प्रकाशित होती है।इसकी विविध सामग्री पठनीय और संग्रहणीय है।पूरी ‘वागर्थ’ टीम इसके...

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भावना सिंह, हालिशहर :2022 के जनवरी अंक में छपी ईशमधु तलवार जी की कहानी ‘पत्थर के डालर’ अंतर्मन को छू गई।सच में इस कोरोना महामारी ने बहुतों से बहुत कुछ छीन लिया।हम दिन-रात पाने की चाह में बस चलते चले जा रहे थे, पता नहीं कब इस महामारी ने हम पर विराम लगा दिया।यह कैसी...

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