शत्रुसूदन श्रीवास्तव:‘वागर्थ’ के नवंबर 2024 अंक में सरिता कुमारी की कहानी ‘कंबल’ पढ़कर बहुत अच्छा लगा। शुरू से अंत तक पाठक एक सांस में बिना रुके कहानी का आनंद ले सकते हैं। धीरेंद्र मेहता: नवंबर अंक में वीनेश अंताणी की गुजराती कहानी ‘वैसा ही घर’ गहराई से छूनेवाली कहानी...
पाठक संसद- नवंबर 2024
रंजीत कुमार पुष्पाकर, प्रयागराज:‘वागर्थ’ के सितंबर अंक में जानी मानी साहित्यकार कुसुम खेमानी जी के बतरस, ‘आकाश से झरा समुद्र में तिरा’ ने लघु भारत, मारीशस के बारे में बेहद महत्वपूर्ण जानकारी से हम सभी को समृद्ध किया। पर्यटन को लेकर वह चर्चा में रहता ही है पर वहां के...
पाठक संसद- अक्टूबर 2024
योगेंद्र, रांची:‘वागर्थ’ का अगस्त, 24 अंक। मैंने पहले सुभाष चंद्र कुशवाहा की कहानी ‘रिक्तता’ पढ़ी। उनकी कहानी पढ़ते हुए उषा प्रियंवदा की कहानी ‘वापसी’ और अनुज की कहानी ‘बोर्डिंग पास’ की याद आई। जिस युग में हमलोग हैं, उसमें परिवार बिखर गया है। हम अंधे विकास की दौड़ में...
पाठक संसद- सितंबर 2024
सुधीर विद्यार्थी:‘वागर्थ’ के अगस्त 2024 अंक में प्रकाशित इतिहास पर निरंतर खोजपूर्ण और प्रतिबद्ध लेखन से जुड़े सुभाष चंद्र कुशवाहा की कहानी ‘रिक्तता’ रचनात्मकता की बुलंदी पर है। जीवन को देखने की दृष्टि ही किसी को बड़ा कथाकार बनाती है। वीडियो कालिंग से संबंधों को जिंदा...
पाठक संसद- अगस्त 2024
धनेश पांडेय:‘वागर्थ’ के जुलाई अंक में कुसुम खेमानी का रस-स्निग्ध बतरस। किशोरी अमोनकर के संगीत के प्रति उनकी दीवानगी को मुबारकबाद। बात रखने और दूर तक पहुंचाने की कुशलता के सभी कायल हैं! स्मृतियां जब शिल्प साधकर होंठों से उतरती हैं, तो साहित्य का अप्रतिम शृंगार बन जाती...
पाठक संसद- जुलाई 2024
रजनी शर्मा बस्तरिया, रायपुर:‘वागर्थ’ का जून 2024 अंक जो आदिवासी साहित्य पर आधारित है, बहुत ही शानदार है। मन को छू लेने वाला है। अनुज जी की कविताएं मुठभेड़ 1, 2, 3, 4, 5 लाजवाब हैं। कनक तिवारी की रचना सारगर्भित है और शुभम यादव जी का लेख ‘आदिवासी जीवन की वर्तमान...
पाठक संसद- जून 2024
दिलीप दर्श, पुणे: मई अंक में हरिमोहन झा की बेहतरीन कहानी ‘विनिमय’ का शुभंकर मिश्र द्वारा बेहतरीन अनुवाद। मैथिली साहित्यकार हरिमोहन झा को बचपन से ही पढ़ता आ रहा हूँ। उनके लेखन में व्यंग्य की जो धार है, वह हास्य के प्रवाह में कुंद नहीं होती। इस कहानी में मूल्यों के क्षरण...
पाठक संसद- मई2024
चित्तरंजन मिश्र, गोरखपुर:‘वागर्थ’ के मार्च अंक में उर्मिला शिरीष की कहानी ‘बहस के बाहर’ पढ़ने को मिली। ऐसे समय में जब बहस के केंद्र में बहुसंख्यकवाद, बहुमतवाद और मेरा धरम - तुम्हारा धरम, तुम लोगों ने ये किया तो हमलोगों ने उसका बदला ऐसे चुकाया कि खौफनाक मनुष्यता-विरोधी...
पाठक संसद- अप्रैल 2024
मोती लाल:‘वागर्थ’ का मार्च 2024 का अंक स्वागत योग्य है। संपादकीय एवं अन्य सामग्री पठनीय एवं संग्रहणीय है। एक सजग पाठक के लिए इसे पढ़ते रहना अनिवार्य जैसा है। धर्म और स्त्री को लेकर लिखा गया लेख बहुत मार्मिक है। इनका गठजोड़ सदियों से भारतीय जनता के शोषण का बड़ा हथियार रहा...
पाठक संसद- मार्च 2024
विवेक सत्यांशु, इलाहाबाद: संपादकीय सुखवाद पर ज्ञान की श्रेष्ठ को स्थापित करता है। कहानियां सभी अच्छी हैं, लेकिन जसिंता केरकेट्टा की कहानी ‘अंतिम वार’ संवेदना के धरातल पर स्पर्श करने वाली और चेतन को झकझोर देने वाली कहानी है। नगेन शइकिया की असमिया कहानी ‘बहुत शर्म आई’...
पाठक संसद- फरवरी 2024
राजेश पाठक, गिरिडीह : युवा लेखिका जसिंता की कहानी ‘अंतिम वार’, भोगे हुए यथार्थ के धागे से रची-बुनी एक सशक्त कहानी है। यह सामाजिक विद्रूपताओं पर तीखा प्रहार है। इस कथा के पात्र समाज में पैठे बहुरूपियों के छल-छद्म को उधेड़ने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते। इनके विचार तथा...
पाठक संसद- 2024
पुष्पांजलि दाश: ‘वागर्थ’ के दिसंबर 2023 अंक में बाप बेटी के पवित्र रिश्ता को शर्मशार करने वाली, अमर्यादित कुकृत्य पर बेबाकी ढंग से कलम चलाने की ताकत रखने के लिए ‘झोपड़पट्टी की नायिका’ कहानी की लेखिका पिंकी कांति को साधुवाद। दिलो दिमाग को झकझोर देने वाली घटना का फैसला...
पाठक संसद दिसंबर- 2023
भूपेन्द्र सिंह, लखीसराय: दुनिया की भीड़ से हटकर ‘वागर्थ’ पत्रिका पढ़ना बहुत ही सुखद लगता है। वैचारिकी और साहित्य सृजन को यह अनूठी पत्रिका बहुत प्रोत्साहित करती है। बहरहाल मैंने बड़े चाव से ‘वागर्थ’ के अक्टूबर अंक को पढ़ा। इसका आवरण पृष्ठ बहुत ही आकर्षक लगा। एक नई पहल बहुत...
पाठक संसद
विजयश्री तनवीर, दिल्ली: मैं ‘वागर्थ’ के संपादक के पास यह शिक़ायत दर्ज़ कराना चाहती हूँ कि इसके अक्टूबर 2023 अंक में रजनी शर्मा बस्तरिया की कहानी ‘सेवती का ककवा गंधरु का रूमाल’ मेरी कहानी ‘जो डूबा सो पार’ की सौ फ़ीसद नकल है। मेरी यह कहानी 2020 में ‘अहा ज़िन्दगी’ के फ़रवरी...
पाठक की टिप्पणी
हंसा दीप, कनाडा:‘वागर्थ’ के सितंबर अंक। ‘टूटी पेंसिल’ की बेहतरीन प्रस्तुति ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तहेदिल से शुक्रिया अदा करती हूँ। कहानी पर लगातार कई प्रतिक्रियाएँ मिल रही हैं। ‘वागर्थ’ का पाठक वर्ग व्यापक है। राजेश पाठक, गिरिडीह:‘वागर्थ’ का अगस्त अंक। यह एक...
पाठक की टिप्पणी
शशि खरे, रायपुर:‘वागर्थ’ जुलाई अंक। लंबे समय बाद इतना गंभीर, रचनात्मक, लगातार बांधे रखने में सक्षम, सही मायने में संपादकीय पढ़ा है। प्रेमचंद साहित्य को लेकर अतीत और वर्तमान, वैश्वीकरण का फैलाव और मानसिक संकीर्णता, पैसा, सुख और सत्ता की दौड़ में शामिल लोग और बदलता...
पाठक की टिप्पणी
रामदुलारी शर्मा: भानुप्रकाश रघुवंशी की कविताएं ‘वागर्थ’ पत्रिका में प्रकाशित होना वाकई सुखद संदेश है। वह समय के एक सजग रचनाकार हैं। एक तरफ राजनीतिक-सामाजिक विद्रूपताओं पर पैनी नजर रखते हैं तो दूसरी ओर उनकी रचनाएं संवेदना में बेहद मार्मिक और नम होकर गहराई में उतरती चली...
पाठक की टिप्पणी
प्रिय मेरी अच्छी-सी छोटी बहना कुसुम, आज अचानक सुबह-सुबह मेरा झोला तुम्हारी सौगात से भर गया। सौगात यानी ‘वागर्थ’ का मई 2023 अंक। ‘अचानक’ इसलिए कि इस बार कई महीनों के अंतराल में ‘वागर्थ’ आया। ‘समावर्तन’ का भी यही हाल है। प्रकाशित हर महीने वेबसाइट में हो जाता है, किंतु...
पाठक की टिप्पणी
राजेंद्र पटोरिया, नागपुर:‘वागर्थ’ का अप्रैल २०२३ अंक। ‘भारतीय नदियों पर संकट’ (प्रस्तुति : रमा शंकर सिंह) विशेष रूप से पढ़ा।इस पर पहले भी संकट था, आज भी संकट है।यदि सरकार योजनाबद्ध तरीके से प्लानिंग बनाकर पूरी निष्ठा, ईमानदारी एवं समर्पण के साथ इस ओर कदम बढ़ाए तो...
पाठक की टिप्पणी
प्रशांत कुमार, मुंबई:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में जितेंद्र कुमार सोनी की ‘किराए का मकान’ काफी सुंदर कहानी है। मुंबई जैसे शहर में पिछले १० सालों से मैं भी किराए के मकान में रहता हूँ, मेरा बेटा भी यहीं पैदा हुआ। जब घर बदला था तो बेटा कई दिन तक बार-बार यही कहता रहा कि पापा...
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