प्रतिक्रिया
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

प्रशांत कुमार, मुंबई:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में जितेंद्र कुमार सोनी की ‘किराए का मकान’ काफी सुंदर कहानी है। मुंबई जैसे शहर में पिछले १० सालों से मैं भी किराए के मकान में रहता हूँ, मेरा बेटा भी यहीं पैदा हुआ। जब घर बदला था तो बेटा कई दिन तक बार-बार यही कहता रहा कि पापा...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

विवेक सत्यांशु, इलाहाबाद - ठीक होली के १ दिन पहले वागर्थ का मार्च २०२३ अंक प्राप्त हुआ, आभारी हूँ।होली में इससे अच्छा उपहार कुछ नहीं हो सकता। असहमति के विवेक से ही सर्जनात्मक आलोचना का विकास होता है।कहानियां तो सभी अच्छी हैं किंतु मनोरंजन व्यापारी की कहानी माननीय दशा...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

मीनाक्षी आहूजा -‘वागर्थ’ फरवरी अंक में कीर्ति शर्मा की प्रकाशित कहानी ‘उजाले की ओर’ एक खूबसूरत कहानी है।जीवन एक बार मिलता है और बुढ़ापे में जीवनसाथी का न होना सच में कष्टकारी है।औरत के जीवन में त्याग के साथ ऊर्जा भी प्रति क्षण क्षीण हो कर केवल एडजेस्टमेंट में खर्च हो...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

गंगा प्रसाद, कांचरापाड़ा-‘वागर्थ’ के जनवरी २०२३ के अंक में प्रकाशित हेरम्ब चतुर्वेदी का आलेख ‘गांधी की मृत्यु देखना चाहते थे औपनिवेशिक सत्ताधीश’ बहुत ही महत्वपूर्ण लगा।आलेख संग्रहणीय है। ‘आशावाद के जनकवि : ध्रुवदेव मिश्र पाषाण’ को पढ़कर उन दिनों में खो गया, जिन दिनों...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

अजय प्रकाश, इलाहाबाद:‘वागर्थ’ के नवंबर अंक में समीक्षा संवाद के अंतर्गत शेखर जोशी से जुड़े प्रश्न और उत्तर दोनों लाजवाब हैं।शेखर जोशी जब दिल्ली से इलाहाबाद आए तो ज्ञान प्रकाश जी के साथ गुड़ की मंडी में रहते थे और हर शनिवार को इंडियन काफी हाउस जाते थे।इसलिए पत्रकारों ने...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

सुधीर सजल, भोपाल:‘वागर्थ’ अक्टूबर २०२२ अंक।आंचलिक गंध और ध्वनियों से पगी, रहस्य और रोमांच से भरी, स्वाभाविक नाटकीयता में गुंथी अवधेश प्रसाद सिंह की कहानी ‘तीजी’ बहुत संवेदित करती है। पी. के. सिंह, पटना:‘वागर्थ’ का अक्टूबर २०२२ अंक प्राप्त हुआ।अद्योपांत पढ़कर...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

दशरथ कुमार सोलंकी- निश्चित ही, यह जानना और समझना नितांत नया है कि हिंसा स्वाभाविक है और अहिंसा अर्जित! इसके पीछे का तार्किक विश्लेषण अपूर्व है।साधुवाद आज के समय के सच को उजागर करने के लिए। चैताली सिन्हा- सितंबर अंक में बोधिसत्व की बहुत सुंदर और प्रासंगिक कविताएं...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

विश्वनाथ किशन भालेराव:‘वागर्थ’ बहुत ही महत्वपूर्ण पत्रिका है।पढ़ने के बाद वैचारिक क्षमता का निर्माण होता है।ज्ञानवर्धक जानकारी है।कवयित्री चित्रा पंवार की कविताएं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत ही मार्मिक और जीवन के प्रति सचेत होने के संबंध में लिखी गई हैं। विष्णु...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

गंगा प्रसाद, कांचरापाड़ा:‘वागर्थ’ 2022 अगस्त अंक।संपादकीय के तहत ‘स्वतंत्रता के इन 75 सालों ने क्या दिया’ पढ़कर लगा कि अपनी बात रखी गई है।सुभाष चंद्र कुशवाहा का आलेख ‘1857 घुड़सवार सैनिक, मातादीन और उसके साथियों की बगावत’ दस्तावेज जैसा मालूम पड़ा।लघुकथा ‘कारण’ (मीरा जैन)...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

सबाल्टर्न की अर्थवत्ता महेश कुमार, बनारस :‘वागर्थ’ के मई अंक में शंभुनाथ जी ने ‘एलीट विमर्श और लोकमन’ संपादकीय लिखा है।एलीट समाज और लोक के बीच के प्रतिस्पर्धी संबंधों की पड़ताल की गई है।मिथकीय और संस्कृत साहित्य के अलावा आधुनिक ‘राष्ट्र और राष्ट्र-राज्य’ से भी संदर्भ...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

धीरेन्द्र सिंह -‘वागर्थ’ जून अंक।डॉ. कुसुम खेमानी के हिंदी साहित्य के विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए।कुछ कहानियां इस अंक में काफी लंबी हैं।पत्रिका का सबसे आकर्षक भाग लगा विविध भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद।सभी अनुवादकों...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

उदय राज सिंह:‘वागर्थ’ के अप्रैल अंक में मल्टीमीडिया एक उत्तम प्रयास है! उपयोगी और लाभदायक! आभार पूरी टीम के प्रति ! अंकेश मद्धेशिया: ऐसे और भी वीडियो बनाइए, कथनों का चयन बहुत अच्छा है. बहुत सामयिक! समर सिंह: अप्रैल अंक की मल्टीमीडिया प्रस्तुति को कई बार पूरा सुना....

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

नौशीन परवीन, रायपुर:‘वागर्थ’ के जनवरी अंक से लेकर मैं अब तक ‘वागर्थ’ को गंभीरता से पढ़ती आ रही हूँ।मुझे लगता है कि हिंदी में यह अपनी तरह की एक अलग पत्रिका है जो सुनियोजित रूप से संपादित और प्रकाशित होती है।इसकी विविध सामग्री पठनीय और संग्रहणीय है।पूरी ‘वागर्थ’ टीम इसके...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

भावना सिंह, हालिशहर :2022 के जनवरी अंक में छपी ईशमधु तलवार जी की कहानी ‘पत्थर के डालर’ अंतर्मन को छू गई।सच में इस कोरोना महामारी ने बहुतों से बहुत कुछ छीन लिया।हम दिन-रात पाने की चाह में बस चलते चले जा रहे थे, पता नहीं कब इस महामारी ने हम पर विराम लगा दिया।यह कैसी...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

नंदकिशोर तिवारी, वाराणसी:‘वागर्थ’ मासिक का दिसंबर ’21 अंक देखा।जायसी का पद्मावत : पंचशती चर्चा जानकारीपूर्ण लगी।जसिंता केरकेट्टा की कहानी ‘औरत का घर’ हरियश राय की ‘इंडिया’, नर्मदेश्वर कर ‘अजान’ रुचिकर लगे।कविताएं भारत यायावर, राजेंद्र उपाध्याय, पूजा यादव की रचनाएं...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

प्रेमकुमार गौतम (उ.प्र.) : ‘वागर्थ’ जून-नवंबर 2021 अंक में प्रकाशित कुछ दिवंगत रचनाकारों की रचनाओं ने बरबस ध्यान खींच लिया| शरतचंद श्रीवास्तव की कविता ‘आधी रात’, सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव की कथा- ‘कीचड़’ बेहद मर्मस्पर्शी बन पड़ी है| मरहूम जहीर कुरेशी की कथा -...

read more
पाठक की टिप्पणी

पाठक की टिप्पणी

सौरभ सिंह: ‘वागर्थ’ दिसंबर 2021 अंक| वैश्विक बाजार ने गांवों में अपरंपार इच्छाएं पैदा की हैं| परंतु लोगों के पास इसे पूरा कर सकने का कोई साधन नहीं है| इस अंतर्विरोध ने असह्य अवसाद और अवसन्नता पैदा की है| अतिरिक्त उत्पादन की चाहत ने प्रकृति का नाश कर दिया| व्यक्तिवादी...

read more
मन के भीतर की कई परतों की पड़ताल

मन के भीतर की कई परतों की पड़ताल

पूनम सिंह, मुहफ्फरपुर: जून-नवंबर 21 अंक में वैभव सिंह की कहानी इस अंक के नागरिक परिसर में विमर्श के कई प्रश्न खड़े करती है| हिंदी लोकवृत की समस्याओं को लेकर अवधेश प्रधान, बसंत त्रिपाठी तथा अन्य सजग बौद्धिकों द्वारा की गई परिचर्चा ने इस परिसर में संवाद को बहुतस्तरीय और...

read more
कम से कम मैं मानवीय तो कहला ही सकूं

कम से कम मैं मानवीय तो कहला ही सकूं

संजय जायसवाल, नैहाटी :  वागर्थ के अक्टूबर अंक में ज्ञानप्रकाश जी की सारी गजलें हमारे दिल की बातें हैं, लाजवाब| बहुत दिनों बाद लगा कि सच पढ़ नहीं देख रहा हूँ| शैलेय की तीनों कविताएं पठनीय हैं| बढ़ती दूरियों और खामोशियों पर एक सामीप्य और संवाद की गहरी बेचैनी| पुष्पांजलि...

read more
भावपक्ष के समान उत्तम कोटि का कला पक्ष

भावपक्ष के समान उत्तम कोटि का कला पक्ष

हंसा दीप, कैनेडा : सितंबर 2021 का वागर्थ। नि:संदेह आने वाली पीढ़ियों को अपना भविष्य अंग्रेजी भाषा में नज़र आता है, परिणामस्वरूप हिंदी भाषी क्षेत्रों में भी हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा रह गई है। पालक अपने बच्चों को बचपन से ही अंग्रेजी स्कूलों में भेजकर उनके सुनहरे...

read more