समीक्षा संवाद
दो स्त्री रचनाकारों के उपन्यास : मृत्युंजय श्रीवास्तव

दो स्त्री रचनाकारों के उपन्यास : मृत्युंजय श्रीवास्तव

प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी।इस वर्ष के आरंभ में ही दो ऐसे उपन्यास आ गए, जिनसे हिंदी कथा साहित्य समृद्ध होता दिख रहा है।यह एक संयोग ही है कि जिन उपन्यासों की चर्चा यहां होगी, उनकी रचनाकार स्त्रियां हैं।दोनों स्त्री रचनाकारों की चिंता और मांग भी समान...

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उम्मीदों के चार कवितालोक : आनंद गुप्ता

उम्मीदों के चार कवितालोक : आनंद गुप्ता

युवा कवि।कई कविता संकलन तथा प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।संप्रति उत्तर २४ परगना में अध्यापन।कविता और स्मृति का एक दूसरे के साथ गहरा संबंध रहा है।स्मृतियों में लौटना, यानी फिर अतीत के गुजरे हुए पलों को जीना।स्मृतिविहीन कविता और जिंदगी दोनों नीरस हो जाती...

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जयशंकर प्रसाद और जैनेंद्र कुमार – जीवनी के दर्पण में : मृत्युंजय श्रीवास्तव

जयशंकर प्रसाद और जैनेंद्र कुमार – जीवनी के दर्पण में : मृत्युंजय श्रीवास्तव

प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी।जयशंकर प्रसाद और जैनेंद्र कुमार की जीवनियां बहुतों के लिए उत्सुकता जगा सकती हैं, क्योंकि दोनों अपने-अपने समय के बड़े साहित्यकार रहे हैं।   प्रसाद के अवसान के ८३ वर्ष बाद आई यह जीवनी प्रसाद की रचनाओं की परतें भी खोलती है,...

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हिंदी कहानी के कुछ नए चेहरे : अंकित कुमार मौर्य

हिंदी कहानी के कुछ नए चेहरे : अंकित कुमार मौर्य

युवा समीक्षक।बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग में शोधरत।रवींद्र आरोही के पहले कहानी संग्रह ‘जादू : एक हँसी एक हीरोइन’, शेषनाथ पांडेय के कहानी संग्रह ‘इलाहाबाद भी!’, सविता पाठक के कहानी संग्रह ‘हिस्टीरिया’ तथा मिथिलेश प्रियदर्शी के कहानी संग्रह ‘लोहे का बक्सा...

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तीन उपन्यास-तीन जमीनें : सरोज सिंह

तीन उपन्यास-तीन जमीनें : सरोज सिंह

वरिष्ठ लेखिका और समीक्षक।संप्रति इलाहाबाद में शिक्षण कार्य।उपन्यास अपने समय और समाज की सशक्त विधा और उपलब्धि है।साथ ही यह पाठक से संवाद करने में अधिक समर्थ है।हर उपन्यास में एक कथा संसार होता है।कथा में घटनाओं की श्रृंखला होती है, किस्सागो तथा श्रोता एक दूसरे के...

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जन बुद्धिजीवी और ग्रामचेतस : मृत्युंजय

जन बुद्धिजीवी और ग्रामचेतस : मृत्युंजय

    प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी।ऐसे समय में जब सोच की शोचनीय हालत हो और हर स्तर पर सोच के महा अकाल के दृश्य उपस्थित हों तथा बिना सोचे-समझे जीने की लत लग गई हो, विजय कुमार और नरेश चंद्रकर की संपादित किताब जन बुद्धिजीवी एडवर्ड सईद का जीवन और...

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कविता और जीवन का संवाद : मधु सिंह

कविता और जीवन का संवाद : मधु सिंह

    युवा लेखिका।विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में पीएच.डी. की शोध छात्रा।कोलकाता के खुदीराम बोस कॉलेज में शिक्षण।कविता और मनुष्य का पुराना सृजनात्मक नाता है।कविता मानव मन की कई उलझनों को स्पष्ट करने और कई बार चेतना को जगाने का काम करती है।यह गहरे अवसाद...

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हिंदी आलोचना की नई जमीन : संजय जायसवाल

हिंदी आलोचना की नई जमीन : संजय जायसवाल

कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी.हिंदी आलोचना की नई जमीन उर्वर होने के साथ संभावनाओं से भरी है।आलोचना की समृद्ध परंपरा के साथ आज कई आलोचक निरंतर नए मिजाज के साथ लेखन कर रहे हैं।तथ्यपरकता, विश्लेषणात्मकता, आलोचनात्मक विवेक और...

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जमीन के तीन उपन्यास : श्रद्धांजलि सिंह

जमीन के तीन उपन्यास : श्रद्धांजलि सिंह

  युवा लेखिका।दार्जिलिंग गवर्मेंट कॉलेज में प्रोफेसर।  साहित्य अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों से टकराने और उन पर सोचने का अवसर देता है।इसलिए आजादी के इस अमृत महोत्सव में एक नागरिक और एक मनुष्य की हैसियत से समय की क्रूर और नग्न सच्चाइयों से रूबरू होना बेहद जरूरी...

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मुश्किल हालात में भी कविता : रमेश अनुपम

मुश्किल हालात में भी कविता : रमेश अनुपम

  कवि और आलोचक। अद्यतन कविता संग्रह‘लौटता हूँ मैं तुम्हारे पास’।  आठवें दशक से अपनी काव्य यात्रा प्रारंभ करने वाले प्रगतिशील धारा के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी का छठवां और नवीनतम काव्य संग्रह ‘उल्लंघन’, नौवें दशक के बाद के कवियों में अपना एक अलग स्थान बनाने वाले...

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आलोचना के कुछ आयाम : संजय जायसवाल

आलोचना के कुछ आयाम : संजय जायसवाल

कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी.    हिंदी आलोचना का काम आलोचकीय दृष्टि के भीतर संवेदना को बचाए रखने का है।आम तौर पर आलोचना की चर्चा करते ही गंभीर और बौद्धिक होने का दबाव बनने लगता है।हाल ही में प्रकाशित वरिष्ठ...

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साहित्यकारों पर एकाग्र-पत्रिकाओं का हस्तक्षेप :अमित साव

साहित्यकारों पर एकाग्र-पत्रिकाओं का हस्तक्षेप :अमित साव

काज़ी नज़रुल विश्वविद्यालय में शोध छात्र।   यह एक अनोखी बात है कि हाल में चार वरिष्ठ साहित्यकारों पर चार पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाले।जब किसी रचनाकार के जीवन और कृतित्व से संबंधित ज्ञात-अज्ञात तथ्यों के आधार पर विभिन्न लेखकों द्वारा मूल्यांकन किसी पत्रिका में...

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स्वायत्तता के लिए संघर्ष – आदिवासी कविताएं : शिव कुमार यादव

स्वायत्तता के लिए संघर्ष – आदिवासी कविताएं : शिव कुमार यादव

युवा आलोचक।‘नयी परंपरा की खोज’ सद्यः प्रकाशित आलोचना पुस्तक।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापन। जेसिंता केरकेट्टा का हाल में प्रकाशित तीसरा कविता संग्रह संग्रह है ‘ईश्वर और बाज़ार’।ईश्वर के नाम पर एक बाज़ार सजाया जा रहा है।मंदिर में प्रवेश करने से पहले व्यक्ति को...

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बाजार के दबाव के बीच आम जीवन का राग-विराग : संजय कुंदन

बाजार के दबाव के बीच आम जीवन का राग-विराग : संजय कुंदन

चर्चित कहानीकार।अद्यतन कहानी संग्रह ‘श्यामलाल का अकेलापन’, उपन्यास ‘तीन ताल’।संप्रति ‘नवभारत टाइम्स’, नई दिल्ली में सहायक संपादक।   पिछले दो-तीन दशकों से हिंदी कहानी की मुख्यधारा में ऐसी कहानियों को ज्यादा महत्व मिलता रहा है, जो समाज के बड़े संकटों की शिनाख्त करती...

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कविताओं का वैविध्य मानीखेज है : रमेश अनुपम

कविताओं का वैविध्य मानीखेज है : रमेश अनुपम

कवि और आलोचक।अद्यतन कविता संग्रह ‘लौटता  हूँ मैं तुम्हारे पास’। लीलाधर जगूड़ी ने अपने काव्य संग्रह ‘कविता का अमरफल’ में कहा है, ‘कविता में इतिहास का होते हुए भी अपने समय का होना पड़ता है।जो अपने समय का नहीं, वह इतिहास का भी नहीं हो सकता है।’ यह इतिहास का होते हुए अपने...

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परंपरा और आधुनिकता के बीच फँसी कहानियां : सुनीता

परंपरा और आधुनिकता के बीच फँसी कहानियां : सुनीता

पेशे से अध्ययन-अध्यापन।मधुबनी व आधुनिक चित्रकारिता का शौक़।प्रकाशित पुस्तक : ‘शोषण में हिस्सेदारी’। ‘साहित्यिक गैंगवाद’ प्रोजेक्ट पर कार्य। हिंदी कहानी के क्षेत्र में बदलाव उत्तरोत्तर जारी है।उसके प्लाट और शैली में विविधता है।सूचना क्रांति ने सृजन, सोच और सरोकारों को...

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काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक

काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक

हिंदी विभाग, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, वाराणसी में अध्यापन काव्यांतरण मात्र अनुवाद-कर्म नहीं है, बल्कि कविकर्म का विशिष्ट मार्ग है- बेहद कठिन लेकिन संतुलित मार्ग। लोकधर्मी परंपरा में अगाध विश्वास और रुचि के कारण राधावल्लभ त्रिपाठी और सदानंदशाही ने अपने काव्यांतरणों के...

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काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक

काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक

हिंदी विभाग, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, वाराणसी में अध्यापन काव्यांतरण मात्र अनुवाद-कर्म नहीं है, बल्कि कविकर्म का विशिष्ट मार्ग है- बेहद कठिन लेकिन संतुलित मार्ग। लोकधर्मी परंपरा में अगाध विश्वास और रुचि के कारण राधावल्लभ त्रिपाठी और सदानंदशाही ने अपने काव्यांतरणों के...

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सभ्य समाज रचने के लिए कविता : संजय जायसवाल

सभ्य समाज रचने के लिए कविता : संजय जायसवाल

कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी. कविता की लंबी यात्रा से गुजरते हुए कहा जा सकता है कि यह जीवन से एक संवाद है। इसमें जीवन की असंख्य बातों पर बातचीत होती है। यह जितनी भावपूर्ण दुनिया है उतनी ही चेतना संपन्न भी। संबद्धता,...

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हिंदी कहानी में नए मोड़ : रमेश अनुपम

हिंदी कहानी में नए मोड़ : रमेश अनुपम

कवि, आलोचक। अद्यतन कविता संग्रह 'लौटता हूं मैं तुम्हारे पास'  आज की कहानी कई अर्थों में अपनी पूर्ववर्ती कहानियों से भिन्न है। यह न केवल नई विषयवस्तुओं का संधान करती है, बल्कि कथा के अनेक ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में प्रवेश करने का जोखिम भी उठाती है, जो आज से पहले लगभग...

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