प्रबुद्ध लेखक, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी।ऐसे समय में जब सोच की शोचनीय हालत हो और हर स्तर पर सोच के महा अकाल के दृश्य उपस्थित हों तथा बिना सोचे-समझे जीने की लत लग गई हो, विजय कुमार और नरेश चंद्रकर की संपादित किताब जन बुद्धिजीवी एडवर्ड सईद का जीवन और...
कविता और जीवन का संवाद : मधु सिंह
युवा लेखिका।विद्यासागर विश्वविद्यालय, मेदिनीपुर में पीएच.डी. की शोध छात्रा।कोलकाता के खुदीराम बोस कॉलेज में शिक्षण।कविता और मनुष्य का पुराना सृजनात्मक नाता है।कविता मानव मन की कई उलझनों को स्पष्ट करने और कई बार चेतना को जगाने का काम करती है।यह गहरे अवसाद...
हिंदी आलोचना की नई जमीन : संजय जायसवाल
कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी.हिंदी आलोचना की नई जमीन उर्वर होने के साथ संभावनाओं से भरी है।आलोचना की समृद्ध परंपरा के साथ आज कई आलोचक निरंतर नए मिजाज के साथ लेखन कर रहे हैं।तथ्यपरकता, विश्लेषणात्मकता, आलोचनात्मक विवेक और...
जमीन के तीन उपन्यास : श्रद्धांजलि सिंह
युवा लेखिका।दार्जिलिंग गवर्मेंट कॉलेज में प्रोफेसर। साहित्य अपने समय के ज्वलंत प्रश्नों से टकराने और उन पर सोचने का अवसर देता है।इसलिए आजादी के इस अमृत महोत्सव में एक नागरिक और एक मनुष्य की हैसियत से समय की क्रूर और नग्न सच्चाइयों से रूबरू होना बेहद जरूरी...
मुश्किल हालात में भी कविता : रमेश अनुपम
कवि और आलोचक। अद्यतन कविता संग्रह‘लौटता हूँ मैं तुम्हारे पास’। आठवें दशक से अपनी काव्य यात्रा प्रारंभ करने वाले प्रगतिशील धारा के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी का छठवां और नवीनतम काव्य संग्रह ‘उल्लंघन’, नौवें दशक के बाद के कवियों में अपना एक अलग स्थान बनाने वाले...
आलोचना के कुछ आयाम : संजय जायसवाल
कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी. हिंदी आलोचना का काम आलोचकीय दृष्टि के भीतर संवेदना को बचाए रखने का है।आम तौर पर आलोचना की चर्चा करते ही गंभीर और बौद्धिक होने का दबाव बनने लगता है।हाल ही में प्रकाशित वरिष्ठ...
साहित्यकारों पर एकाग्र-पत्रिकाओं का हस्तक्षेप :अमित साव
काज़ी नज़रुल विश्वविद्यालय में शोध छात्र। यह एक अनोखी बात है कि हाल में चार वरिष्ठ साहित्यकारों पर चार पत्रिकाओं ने विशेषांक निकाले।जब किसी रचनाकार के जीवन और कृतित्व से संबंधित ज्ञात-अज्ञात तथ्यों के आधार पर विभिन्न लेखकों द्वारा मूल्यांकन किसी पत्रिका में...
स्वायत्तता के लिए संघर्ष – आदिवासी कविताएं : शिव कुमार यादव
युवा आलोचक।‘नयी परंपरा की खोज’ सद्यः प्रकाशित आलोचना पुस्तक।इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापन। जेसिंता केरकेट्टा का हाल में प्रकाशित तीसरा कविता संग्रह संग्रह है ‘ईश्वर और बाज़ार’।ईश्वर के नाम पर एक बाज़ार सजाया जा रहा है।मंदिर में प्रवेश करने से पहले व्यक्ति को...
बाजार के दबाव के बीच आम जीवन का राग-विराग : संजय कुंदन
चर्चित कहानीकार।अद्यतन कहानी संग्रह ‘श्यामलाल का अकेलापन’, उपन्यास ‘तीन ताल’।संप्रति ‘नवभारत टाइम्स’, नई दिल्ली में सहायक संपादक। पिछले दो-तीन दशकों से हिंदी कहानी की मुख्यधारा में ऐसी कहानियों को ज्यादा महत्व मिलता रहा है, जो समाज के बड़े संकटों की शिनाख्त करती...
कविताओं का वैविध्य मानीखेज है : रमेश अनुपम
कवि और आलोचक।अद्यतन कविता संग्रह ‘लौटता हूँ मैं तुम्हारे पास’। लीलाधर जगूड़ी ने अपने काव्य संग्रह ‘कविता का अमरफल’ में कहा है, ‘कविता में इतिहास का होते हुए भी अपने समय का होना पड़ता है।जो अपने समय का नहीं, वह इतिहास का भी नहीं हो सकता है।’ यह इतिहास का होते हुए अपने...
परंपरा और आधुनिकता के बीच फँसी कहानियां : सुनीता
पेशे से अध्ययन-अध्यापन।मधुबनी व आधुनिक चित्रकारिता का शौक़।प्रकाशित पुस्तक : ‘शोषण में हिस्सेदारी’। ‘साहित्यिक गैंगवाद’ प्रोजेक्ट पर कार्य। हिंदी कहानी के क्षेत्र में बदलाव उत्तरोत्तर जारी है।उसके प्लाट और शैली में विविधता है।सूचना क्रांति ने सृजन, सोच और सरोकारों को...
काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक
हिंदी विभाग, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, वाराणसी में अध्यापन काव्यांतरण मात्र अनुवाद-कर्म नहीं है, बल्कि कविकर्म का विशिष्ट मार्ग है- बेहद कठिन लेकिन संतुलित मार्ग। लोकधर्मी परंपरा में अगाध विश्वास और रुचि के कारण राधावल्लभ त्रिपाठी और सदानंदशाही ने अपने काव्यांतरणों के...
काव्यांतरण की चुनौती – लोकवादी धारा : समीर कुमार पाठक
हिंदी विभाग, डी.ए.वी. पी.जी. कॉलेज, वाराणसी में अध्यापन काव्यांतरण मात्र अनुवाद-कर्म नहीं है, बल्कि कविकर्म का विशिष्ट मार्ग है- बेहद कठिन लेकिन संतुलित मार्ग। लोकधर्मी परंपरा में अगाध विश्वास और रुचि के कारण राधावल्लभ त्रिपाठी और सदानंदशाही ने अपने काव्यांतरणों के...
सभ्य समाज रचने के लिए कविता : संजय जायसवाल
कवि और समीक्षक. विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं प्रबुद्ध रंगकर्मी. कविता की लंबी यात्रा से गुजरते हुए कहा जा सकता है कि यह जीवन से एक संवाद है। इसमें जीवन की असंख्य बातों पर बातचीत होती है। यह जितनी भावपूर्ण दुनिया है उतनी ही चेतना संपन्न भी। संबद्धता,...
हिंदी कहानी में नए मोड़ : रमेश अनुपम
कवि, आलोचक। अद्यतन कविता संग्रह 'लौटता हूं मैं तुम्हारे पास' आज की कहानी कई अर्थों में अपनी पूर्ववर्ती कहानियों से भिन्न है। यह न केवल नई विषयवस्तुओं का संधान करती है, बल्कि कथा के अनेक ऐसे दुर्गम क्षेत्रों में प्रवेश करने का जोखिम भी उठाती है, जो आज से पहले लगभग...
अवहेलित स्त्रियों का संसार : सरोज सिंह
सी.एम.पी. कॉलेज, इलाहाबाद में हिंदी विभागाध्यक्ष 8 मार्च 1975 से अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष शुरू हुआ था। उस समय से 45 साल बीत गए। कहना मुश्किल है कि समाज में स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा कितनी हो पा रही है और अवहेलित स्त्रियां कितनी मुखर हो पा रही हैं। हमारे कथा...
उपन्यास में बदलते गांव : श्रद्धांजलि सिंह
युवा लेखिका, दार्जिलिंग गवर्मेंट कॉलेज में प्रोफेसर उपन्यास को आधुनिक जीवन का महाकाव्य कहा गया है। अपने उत्पत्ति काल से ही उपन्यासों ने जीवन को उसकी समग्रता में पकड़ने और व्यक्त करने की कोशिश की है। समकालीन दौर में जब नए-नए विमर्शों ने अपनी अभिव्यक्ति के सबसे सशक्त...
हिंदी उपन्यास में नया प्रस्थान : रमेश अनुपम
कवि और समीक्षक कृतियाँ 'ठाकुर जगमोहन सिंह समग्र', ' समकालीन हिंदी कविता', 'जल भीतर इक बृच्छा उपजै' (काव्य संचयन), 'लौटता हूँ मैं तुम्हारे पास' (काव्य संग्रह)। वंदना राग की 'बिसात पर जुगनू' और अनामिका की 'आईनासाज' पुस्तकों पर चर्चा अनामिका का 'आईना साज़’ मध्य भारत...
नवजागरण की समकालीन चेतना/ अच्युतानंद मिश्र
अच्युतानंद मिश्र युवा आलोचक। अद्यतन कविता संग्रह ‘आंख में तिनका’ और लेखों का संग्रह ‘बाजार के अरण्य में’। नवजागरण के संदर्भ में जर्मन दार्शनिक एडोर्नो ने लिखा है ‘नवजागरण जरूरी है, मगर असंभव’। कोई भी समाज अपनी यथास्थितियों के विरुद्ध संघर्ष करता है, लड़ता है- यह...
हिंदी गद्य की नई भंगिमाएं : ज्ञानरंजन और राजेश जोशी की नई गद्य पुस्तकों पर चर्चा/ रमेश अनुपम
कवि और समीक्षक कृतियाँ 'ठाकुर जगमोहन सिंह समग्र', ' समकालीन हिंदी कविता', 'जल भीतर इक बृच्छा उपजै' (काव्य संचयन), 'लौटता हूँ मैं तुम्हारे पास' (काव्य संग्रह)। ज्ञानरंजन अपनी कहानियों तथा महत्वपूर्ण पत्रिका ‘पहल’ के संपादक के रूप में पिछले पांच दशक से...
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