लघुकथा
गंदगी : शम्भू शरण सत्यार्थी

गंदगी : शम्भू शरण सत्यार्थी

बाप-बेटे दोनों पैदल बाजार जा रहे थे। गंदगी से सने नाली की सफाई कर रहे मजदूरों को देखकर। बेटे ने पूछा, ‘पापा, ये क्या कर रहे हैं?’ ‘अरे बेटा, ये लोग नाली की सफाई करने वाले लोग हैं।’ ‘क्या नाली की सफाई करने वाले अलग लोग होते हैं?’ ‘हां बेटा। वे छोटी जात के होते हैं।...

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दरारें : जाफर मेहदी जाफरी

दरारें : जाफर मेहदी जाफरी

अख़बार और पत्रिकाएं बहुत जमा हो गई थीं। रखने की जगह न रह गई थी। छोटे से घर में क्या क्या जमा करें? अपने लिए ही जगह कम पड़ने लगी थी। कबाड़ी ने आवाज़ लगाई तो उसे बुला लिया। अख़बार तो उसने तोल लिए। अब नंबर आया मैगज़ीन का। उसपर उसने नाक-भौं चढ़ानी शुरू की। उनमें वह छटनी करने लगा...

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भयतंत्र में एक शाम : संतोष सुपेकर

भयतंत्र में एक शाम : संतोष सुपेकर

‘अरे!’ पैंतालीस वर्षीय सागर ने पत्नी को आते  हुए देखा तो पूछ बैठा, ‘अकेली  ही आ गई! मुझे फोन कर दिया होता, लेने आ जाता, सुनसान रास्ता था...’ ‘लगाया था आपका फोन, पर लगा ही नहीं। फिर सोचा निकल ही चलूँ, और आ गई, बस्स!’ ‘अरे पर...  रास्ता कितना सुनसान है और रात भी होने...

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अंतःपीड़ा : सुनील गज्जाणी

अंतःपीड़ा : सुनील गज्जाणी

वह बौखलाता झटपट घर में घुसा। घुसते ही अपने पहने जनाने कपड़े फुर्ती से खोलने लगा तो उसकी पत्नी हैरत से बोली, ‘क्या हो गया आपका, इतनी जल्दी आ गए!’ ‘बाजार में किन्नर मिल गया था।’ ‘आप भी तो किन्नर ही हो न!’ ‘मगर हूँ तो बहुरूपिया ही!’ ‘फिर?’ ‘उसकी बात ने मेरे दिलो-दिमाग को...

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अंतर्यामी : राजेंद्र उपाध्याय

अंतर्यामी : राजेंद्र उपाध्याय

दोपहर का खाना, बरसाती आदि पीठ पर लादकर ले जाने वाला मेरा झोला काफी पुराना और जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था। एक दिन बाजार से गुजरते हुए अचानक दुकान में टंगे झोलों पर नजर पड़ी तो एक खरीद लिया। घर पहुंचकर पत्नी को बताया तो बोली, ‘ठीक किया, खरीद लिया। कई दिनों से सोचकर भी...

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घर : राम करन

घर : राम करन

मड़ई का घर जब बरसात में टिपिर-टिपिर चूता है तो सोना के अम्मा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं। शुरू होती है दो कमरों के घर में भाग-दौड़, जैसे चूहा-दौड़ शुरू हो गई हो। कटोरा इधर रखो, गिलास उधर। धीरे-धीरे थाली-कड़ाही से लेकर भदेली-परात पूरे घर में फैल जाता है। जले पर नमक...

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समझौता : अरिमर्दन कुमार सिंह

समझौता : अरिमर्दन कुमार सिंह

एक बड़े देश ने खरबों डॉलर के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान विक्रेता देश से इस शर्त पर खरीदे कि ये विमान पड़ोसी दुश्मन देश को न बेचे जाएं। जैसे ही ये विमान क्रेता देश में पहुंचे, पड़ोसी देश ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हल्ला मचाना शुरू कर दिया कि इससे इस क्षेत्र का शक्ति संतुलन...

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हसरत : सुरेश शॉ

हसरत : सुरेश शॉ

हेड क्लर्क सुजान मियां को अचानक मिठाइयां बांटता देख, दफ्तर के लोगों को हैरानी हुई। ‘किस खुशी में जलेबियां बांटी जा रही हैं भाईजान?’ - कोने वाली सीट पर बैठे मकबूल ने आवाज़ लगाई। ‘बताता हूँ भई, सब बताता हूँ। पहले आप मुंह तो मीठा करें।’ मौके पर मौजूद साहबानों से...

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पैबंद : कुलदीप सिंह भाटी

पैबंद : कुलदीप सिंह भाटी

लक्ष्मण को घर में सब प्रेम से लिच्छू कहते हैं। मां, पिता, दादा और बड़ी बहन किसना के साथ रहने वाला लिच्छू दस बरस का होने वाला है, पर आज भी घर में सबके स्नेह का पात्र है। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिता एक फैक्ट्री में चौकीदारी करते हैं और मां घरों में...

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अद्भुत : मीरा जैन

अद्भुत : मीरा जैन

निर्णायक मंडल द्वारा वृद्धाश्रमों के सर्वश्रेष्ठ संचालक के रूप में सम्मान हेतु गौतम के नाम की घोषणा होते ही वहां उपस्थित अन्य संचालक व्यथित हो खुसुर-फुसुर करने लगे। एक ने कहा- ‘गौतम के नाम की घोषणा! यह कैसे संभव है, मेरा वृद्धाश्रम तो एकदम साफ सुथरा, सर्वसुविधा युक्त...

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रेड लाइट : सुरेश सौरभ

रेड लाइट : सुरेश सौरभ

‘बड़ी देर कर दी’, बाइक खड़ी करते हुए पति से वह बोली। ‘झोला गिर गया था।बड़ी मुश्किल से मिल पाया।’ उबासी लेते हुए पति बोला। ‘कैसे गिरा?’ ‘सामान ज्यादा हो गया था, पीछे बांध लिया, बहुत आगे निकल आया तब पीछे बंधे झोले पर ध्यान गया।खैर मिल गया, ऊपर वाले की दुआ से।’ ‘किस भले...

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अंतिम अस्त्र : शेफालिका सिन्हा

अंतिम अस्त्र : शेफालिका सिन्हा

दुकानदार अड़ा हुआ था, ‘नहीं, इसे हम नहीं बदल सकते, कल हमने चेक करके दिया था।’ ‘चेक करके आपने खराब वाला दे दिया।मुझसे इतनी गलती जरूर हुई कि मैंने देख कर नहीं लिया’, मायूसी से सीमा ने कहा। दुकानदार कहने लगा, ‘हम कांच की चीजें नहीं बदलते।’ सीमा का मूड उखड़ गया, ‘कल मेरे...

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कालो : सुजाता कुमारी

कालो : सुजाता कुमारी

एक बार सर्दी के दिनों में मैं ट्रेन से सफर कर रही थी।मेरे सामने वाले बर्थ पर एक बारह साल की बच्ची बैठी हुई थी। वह मुझे भयभीत नजरों से बार-बार निहारे जा रही थी।थोड़ी देर में ही वह नफरत भरे लहजे में कहने लगी- ‘कालो! भागो!’ मैं चकित थी।भला यह बच्ची मुझे देख कर इस तरह...

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नया भाई : शशि बाँयवाला

नया भाई : शशि बाँयवाला

यह दावत अनूठी थी। सभी खुश थे। सालभर पहले जब मेरे पचीस वर्षीय भाई की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई तो मैं कई दिन तक शोक में डूबी रही। तब ऐसी किसी दावत के बारे में सोचना नामुमिकन था। आज मेरे सद्यःजात भाई का जन्मोत्सव है। मेरे माता-पिता खुश हैं और उन्हें खुश देखकर मैं गदगद...

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हर्डल्स : नूतन अग्रवाल ज्योति

हर्डल्स : नूतन अग्रवाल ज्योति

‘आज बाहर जाना है और आज ही महारानी को बीमार पड़ना था।’उर्मिला बड़बड़ाते हुए जल्दी-जल्दी बचे बर्तन साफ कर रही थी।आज उसका महिला सशक्तिकरण को लेकर एक जरूरी कार्यक्रम है। तभी ससुर जी ने आवाज लगाई,‘उर्मि बेटा, एक कप चाय और बना दो।सामने वाले शर्मा जी आए हैं।’ ‘जी पापा’ कहते हुए...

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रांग नंबर : राजेश पाठक

रांग नंबर : राजेश पाठक

सुमित पटना से गिरिडीह जा रहा था।स्टेशन पर वर्षों बाद कॉलेज के सहपाठी रमन से उसकी भेंट हो गई।इस तरह अकस्मात भेंट होने से दोनों खुश हुए।वे एक-दूसरे से हाथ मिला ही रहे थे कि उनकी ट्रेन आ गई।दोनों संयोग से एक ही ट्रेन से सफर करने वाले थे। रमन ने कहा - चलो अब ट्रेन में जगह...

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वजूद : श्रवण कुमार सेठ

वजूद : श्रवण कुमार सेठ

‘कैसी लगी बिटिया, भाई साहब?’ ‘सब ठीक ही है...’ ‘तो रिश्ता पक्का समझें..?’ ‘हां...लेकिन...?’ ‘लेकिन क्या भाई साहब...?’ ‘नाक-नक्श, चाल-ढाल, बात-व्यवहार वगैरह तो बहुत अच्छा है।बस एक ही कमी है बिटिया रानी में।’ ‘अब कौन सी कमी है भाई साहब?’ ‘बात करते समय उसकी आंखें नीची...

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साइकिल : शंभू शरण सत्यार्थी

साइकिल : शंभू शरण सत्यार्थी

पापा मुझे एक साइकिल खरीद दीजिए, स्कूल से पैदल आने-जाने में काफी थक जाता हूँ। पिता ने कहा- ठीक है। एक दो महीने रुक जाओ बेटा। जरूरत के हिसाब से साइकिल मेरे भी काम आ जाएगी। मजदूरी के पैसे में से बचाकर खदेरन रोज २० रुपये गुलक में डालने लगा। करीब चार महीने में लगभग पचीस सौ...

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जिस्मों का तिलिस्म : सतीश राठी

जिस्मों का तिलिस्म : सतीश राठी

वे सारे लोग सिर झुकाये खड़े थे।उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी।दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कई सिरकटे जिस्म पंक्तिबद्ध खड़े हैं।मैं उनके नज़दीक गया।मैं चकित था कि ये इतनी लंबी लाईन लगाकर क्यों खड़े हैं? ‘क्या मैं इस लंबी कतार की...

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निर्णय : पूजा भारद्वाज

निर्णय : पूजा भारद्वाज

रवि की मां का पांच दिन पहले निधन हुआ है।परिवार के लोग तेरहवीं के विषय में सलाह-मशविरा कर रहे हैं। रवि - चाचा जी, कितना खर्च हो जाएगा? चाचा - यही कोई डेढ़-दो लाख और बाकी तुम्हारी श्रद्धा है। रवि - ठीक है। चाचा - क्या ठीक है? क्या करना है, कैसे करना है कुछ बता ही नहीं...

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