लघुकथा
एंटीक : अमृता पांडेय

एंटीक : अमृता पांडेय

बेटे और बहू की आज छुट्टी थी। वे लगभग चार घंटे बाद बाजार से लौटे थे। ढेर सारी चीजें खरीद लाए थे और लिविंग रूम और उन्हें अपने बेडरूम में सजाने की चर्चा कर रहे थे। उन चीजों में पुरानी घड़ी थी, टेबल लैंप था, कुछ कलाकृतियां थीं। धातु की बनी कुछ मूर्तियां, लकड़ी और कांच के...

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आत्मग्लानि : गोविंद भारद्वाज

आत्मग्लानि : गोविंद भारद्वाज

‘पापा, देखो इस फोटो प्रदर्शनी में सबसे संवेदनशील फोटो यही लगी।’ ‘हां बेटा, इस फोटो के लिए ही इसके फोटोग्राफर को बेस्ट फोटोग्राफी का पुरस्कार मिला था... लेकिन कुछ दिनों बाद...।’ ‘कुछ दिनों बाद क्या पापा...?’ ‘बेटा इस फोटोग्राफर ने पुरस्कार लेने के बाद हमेशा-हमेशा के...

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एंग्री बर्ड : यशोधरा भटनागर

एंग्री बर्ड : यशोधरा भटनागर

‘क्यों बहन! बड़ी उदास दिख रही हो। क्या बात है?’ ‘कुछ नहीं, समय तेजी से बदला है। बदलते समय के साथ इंसान बिलकुल बदल गया।’ गुलमोहर की शाखा पर, घने हरे पत्तों की छांह में बैठी चिड़ियां बतिया रही थीं। ‘देखो न! हम इनके साथ इनके घरों में कितने प्यार से रहते थे।’ ‘हमारी...

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कड़वी घूंट : सारिका भूषण

कड़वी घूंट : सारिका भूषण

‘दीदी, आपके घर में कौन आया हुआ है, नीचे बंदूक लिए पुलिस वाले खड़े हैं। मैं तो डर ही गई!’ उसकी कामवाली बाई ने घर के अंदर घुसते ही नीमा से कहा। ‘अरे! मेरे जेठ आए हुए हैं, बड़े नेता हैं। जल्दी से जाकर रात के डिनर की तैयारी कर। डाइनिंग टेबल पर कुछ ड्राई फ्रूट्स रखे हैं।...

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तुषारापात : राधेश्याम भारतीय

तुषारापात : राधेश्याम भारतीय

हर रोज की भांति रिटायर्ड पर्सन सुबह पार्क में इकट्ठा होते, हलका-फुलका व्यायाम करते, हा!... हा! कर ठहाका लगाते, फिर थोड़ा आराम करके अपने-अपने घर को चल देते। ‘श्याम बाबू, क्या बात है, चेहरा क्यों उतरा हुआ है? भाभी ने डांट दिया क्या?’ हरदयाल ने पूछा। ‘हरदयाल भाई, क्या...

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नेत्रहीन : गोविंद भारद्वाज

नेत्रहीन : गोविंद भारद्वाज

‘सर कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आज आप आ रहे हैं न?’ ‘बिलकुल आ रहा हूँ... पहले ये बताओ कि भीड़ कितनी आ जाएगी।’ ‘भीड़-भाड़ का कोई कार्यक्रम नहीं है सर... नेत्रहीनों के लिए कुछ गिफ्ट भेंट करने हैं... उनको प्रोत्साहित करने की कुछ योजनाओं की शुरुआत करनी है।’ ‘नेत्रहीनों का...

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भूख : शशि बायंवाला

भूख : शशि बायंवाला

डिजाइनर सजल वर्मा की एक दिन के लिए छूट की खबर आग की तरह दिल्ली में फैल चुकी थी। छूट पचास प्रतिशत थी, मतलब 5 लाख के डिजाइनर कपड़े ढाई लाख में, कमाल है! शोरूम की पार्किंग में महंगी गाड़ियों की कतार थी, तो अंदर उससे अधिक भीड़ थी। मुझे लगा कि नई सड़क के पटरी बाजार में खड़ी...

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रोटी का हिसाब : तनवीर अख़्तर रूमानी

रोटी का हिसाब : तनवीर अख़्तर रूमानी

उसका पति साल भर पहले ही दुनिया से गुजर चुका था। अब अपने तीन बच्चों का पालन-पोषण उसके जिम्मे था। वह दिन भर शहर के बाजारों में घूम-फिर कर कागज, प्लास्टिक और गत्ते आदि के टुकड़े चुनती थी। उसकी सबसे बड़ी आठ वर्षीय बेटी भी यही काम करती थी। मंझला और छोटा बेटा, दोनों दिन भर...

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कैदी : ज्ञानदेव मुकेश

कैदी : ज्ञानदेव मुकेश

दयाल ने गुप्ता से शिकायत की, ‘तुमलोगों ने एकदम आना-जाना ही छोड़ दिया!’गुप्ता ने मोबाइल से नजरें हटाकर कहा, ‘बहुत व्यस्तता रहती है। समय कहां मिलता है!’दयाल ने पूछा, ‘भाभी जी और बच्चे कहाँ हैं?’गुप्ता ने बताया, ‘अपने-अपने कमरे में।’दयाल भाभी जी के कमरे में गए। वे भी...

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कुंडल नहीं कवच : ट्विंकल सिंह तोमर

कुंडल नहीं कवच : ट्विंकल सिंह तोमर

‘ये देख लक्ष्मी... कितनी सुंदर साड़ी है!’ जमुना ने अपनी सखी से हर्षित स्वर में कहा। साड़ी का धानी रंग लक्ष्मी की आंखों को लुभा गया, पर साड़ी पर हाथ भी न धरा। आगे एक चादर पर सुंदर जेवर सजे थे। जमुना ने चांद जैसे आकार वाले कुंडल उठा लिए- ‘ये देख लक्ष्मी, कितने सुंदर हैं...

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चार लघुकथाएं :फरहत अली खान

चार लघुकथाएं :फरहत अली खान

हादसा जब वह घर से निकला तो रास्ते में एक अजनबी से सामना हुआ। उसे लगा कि वह शख़्स रो रहा है। या फिर उसकी सूरत ही ऐसी है। शायद लगातार दुख और तकलीफें सहने की वजह से उसकी शक्ल ऐसी हो गई है। दोनों अपनी-अपनी रफ्तार से चल रहे थे। इसलिए वह बस कुछ ही पल के लिए उसका चेहरा पढ़...

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परवरिश : मीरा जैन

परवरिश : मीरा जैन

सुबह-सुबह  ठेकेदार को अचानक अपने दरवाजे पर आया देख सुखदेव आश्चर्यचकित रह गया। चरण स्पर्श करते हुए बोला- ‘आइए मालिक! आपके चरण इस घर में पड़ गए, मेरा घर धन्य हो गया। कैसे आना हुआ आपका?’ ‘सुखदेव! मेरे नए निर्माण स्थल पर तुम दोनों पति-पत्नी मात्र एक दिन ही काम पर आए, क्या...

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घोंसला : गोविन्द भारद्वाज

घोंसला : गोविन्द भारद्वाज

‘मैं शाम को दफ्तर से लौटकर आऊं तो यह चिड़िया का घोंसला मुझे दिखना नहीं चाहिए, समझे...!’ रवि बाबू ने बड़े बेटे पर बरसते हुए कहा। ‘पापा चिड़िया के घोंसले में अभी छोटे-छोटे अंडे हैं...। अभी घोंसले को कैसे बाहर फेंक सकते हैं...! कुछ दिन इंतजार कर लेते हैं। बच्चे उड़ने लायक हो...

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नीला बैग : राजेश पाठक

नीला बैग : राजेश पाठक

ॠतेश पूजा की छुट्टी में घर जाने के लिए गिरिडीह स्टेशन पर एक लोकल ट्रेन में सवार हुआ। ट्रेन में काफी भीड़ थी। पैर रखने की जगह मुश्किल से मिल पा रही थी। थोड़ी देर बाद अगला स्टेशन आने वाला था। ट्रेन की गति धीमी हो गई। उतरने वाले गेट पर एक लंबा कद वाला व्यक्ति ॠतेश से, नीले...

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जूते की महिमा (बांग्ला) :कल्याण मंडल, अनुवाद :इबरार खान

जूते की महिमा (बांग्ला) :कल्याण मंडल, अनुवाद :इबरार खान

भानु कैवर्त, जग्गू बूनो, मना चांडाल और कदम शेख़ को दरबार में हाजिर किया गया। हालांकि, इन चारों में से कोई भी यह नहीं जानता कि आखिर इनका अपराध क्या है। जानना जरूरी भी नहीं। जबकि दरबार में उपस्थित अन्य सभी भली-भांति जानते हैं कि इनमें से हर एक ने जो अपराध किया है वह बहुत...

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खूबसूरती : उपमा शर्मा

खूबसूरती : उपमा शर्मा

ऑपरेशन थियेटर में लेडी डाक्टर की बातचीत कानों में पड़ने पर काजल ने आंखें खोलीं। वह टांके लगा रही थी। दर्द से काजल की आंखों में आँसू आ गए थे। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सा दर्द ज्यादा है- शरीर का या अपनी खूबसूरती खत्म होने का। उसे सहेलियों की बातें याद आ रही थीं,...

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थिंक पॉजिटिव : आलोक सतपुते

थिंक पॉजिटिव : आलोक सतपुते

पहला दोस्त (पाउच खोलते हुए) - ले सौंफ खा ले। दूसरा दोस्त - नहीं, मैंने सौंफ खाना छोड़ दिया है। पहला दोस्त - क्यों भला? दूसरा दोस्त- कुछ दिन पहले तक मैं इसी ब्रांड के पाउच की सौंफ खाता था। लेकिन एक बार इस पाउच को खोलकर मुंह में लिया ही था कि मुंह में कुछ गड़ने का अहसास...

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अंतर्द्वंद्व : अरिमर्दन कुमार सिंह

अंतर्द्वंद्व : अरिमर्दन कुमार सिंह

नई पोस्टिंग वाली जगह पर एक फलवाले से परिचय बढ़ गया। वह हमें खरीद दाम पर फल दे देता था। एक दिन उसने मुझको फोन किया, ‘सर, दस हजार रुपए की सख्त जरूरत है। जुगाड़ हो जाएगा? मेरा एटीएम कार्ड पता नहीं कहां खो गया है। मेरे लड़के ने दुबई से पैसा भेजा है, परंतु पैसा दो दिनों बाद...

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हथौड़ा : राम करन

हथौड़ा : राम करन

फाइल लेकर बाहर निकला तो देखा बरामदे के बाहर एक मजदूर हाथ में कुल्हाड़ी जैसा बड़ा हथौड़ा लेकर खड़ा था। मैं उससे कुछ कहता, उससे पहले वह बोल पड़ा, ‘साहेब, फर्श क्यों तुड़वा रहे हैं?’ मैंने फर्श को गौर से देखा। मुझे समझते देर नहीं लगी। फंड आया हुआ था, उसे खर्च करना था। पूरे...

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हकीम की दवा : मनोहर जमदाडे

हकीम की दवा : मनोहर जमदाडे

‘दवा ले लो! दवा ले लो!’ कहते हुए एक हकीम चैननगर पहुँच। गांव के बीचों-बीच आकर ‘चमत्कारिक दवा ले लो!’ कहकर जोर-जोर से गला फाड़ने लगा। हकीम की आवाज सुनकर मिनटों में भीड़ का सैलाब उमड़ आया।  ‘सचमुच चमत्कारिक दवा है आपकी?’ गांव के मुखिया ने आगे आकर पूछा। ‘जरूर, सौ जड़ीबूटियों...

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