लघुकथा
कालो : सुजाता कुमारी

कालो : सुजाता कुमारी

एक बार सर्दी के दिनों में मैं ट्रेन से सफर कर रही थी।मेरे सामने वाले बर्थ पर एक बारह साल की बच्ची बैठी हुई थी। वह मुझे भयभीत नजरों से बार-बार निहारे जा रही थी।थोड़ी देर में ही वह नफरत भरे लहजे में कहने लगी- ‘कालो! भागो!’ मैं चकित थी।भला यह बच्ची मुझे देख कर इस तरह...

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नया भाई : शशि बाँयवाला

नया भाई : शशि बाँयवाला

यह दावत अनूठी थी। सभी खुश थे। सालभर पहले जब मेरे पचीस वर्षीय भाई की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हुई तो मैं कई दिन तक शोक में डूबी रही। तब ऐसी किसी दावत के बारे में सोचना नामुमिकन था। आज मेरे सद्यःजात भाई का जन्मोत्सव है। मेरे माता-पिता खुश हैं और उन्हें खुश देखकर मैं गदगद...

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हर्डल्स : नूतन अग्रवाल ज्योति

हर्डल्स : नूतन अग्रवाल ज्योति

‘आज बाहर जाना है और आज ही महारानी को बीमार पड़ना था।’उर्मिला बड़बड़ाते हुए जल्दी-जल्दी बचे बर्तन साफ कर रही थी।आज उसका महिला सशक्तिकरण को लेकर एक जरूरी कार्यक्रम है। तभी ससुर जी ने आवाज लगाई,‘उर्मि बेटा, एक कप चाय और बना दो।सामने वाले शर्मा जी आए हैं।’ ‘जी पापा’ कहते हुए...

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रांग नंबर : राजेश पाठक

रांग नंबर : राजेश पाठक

सुमित पटना से गिरिडीह जा रहा था।स्टेशन पर वर्षों बाद कॉलेज के सहपाठी रमन से उसकी भेंट हो गई।इस तरह अकस्मात भेंट होने से दोनों खुश हुए।वे एक-दूसरे से हाथ मिला ही रहे थे कि उनकी ट्रेन आ गई।दोनों संयोग से एक ही ट्रेन से सफर करने वाले थे। रमन ने कहा - चलो अब ट्रेन में जगह...

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वजूद : श्रवण कुमार सेठ

वजूद : श्रवण कुमार सेठ

‘कैसी लगी बिटिया, भाई साहब?’ ‘सब ठीक ही है...’ ‘तो रिश्ता पक्का समझें..?’ ‘हां...लेकिन...?’ ‘लेकिन क्या भाई साहब...?’ ‘नाक-नक्श, चाल-ढाल, बात-व्यवहार वगैरह तो बहुत अच्छा है।बस एक ही कमी है बिटिया रानी में।’ ‘अब कौन सी कमी है भाई साहब?’ ‘बात करते समय उसकी आंखें नीची...

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साइकिल : शंभू शरण सत्यार्थी

साइकिल : शंभू शरण सत्यार्थी

पापा मुझे एक साइकिल खरीद दीजिए, स्कूल से पैदल आने-जाने में काफी थक जाता हूँ। पिता ने कहा- ठीक है। एक दो महीने रुक जाओ बेटा। जरूरत के हिसाब से साइकिल मेरे भी काम आ जाएगी। मजदूरी के पैसे में से बचाकर खदेरन रोज २० रुपये गुलक में डालने लगा। करीब चार महीने में लगभग पचीस सौ...

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जिस्मों का तिलिस्म : सतीश राठी

जिस्मों का तिलिस्म : सतीश राठी

वे सारे लोग सिर झुकाये खड़े थे।उनके कांधे इस कदर झुके हुए थे कि पीठ पर कूबड़-सी निकली लग रही थी।दूर से उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे कई सिरकटे जिस्म पंक्तिबद्ध खड़े हैं।मैं उनके नज़दीक गया।मैं चकित था कि ये इतनी लंबी लाईन लगाकर क्यों खड़े हैं? ‘क्या मैं इस लंबी कतार की...

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निर्णय : पूजा भारद्वाज

निर्णय : पूजा भारद्वाज

रवि की मां का पांच दिन पहले निधन हुआ है।परिवार के लोग तेरहवीं के विषय में सलाह-मशविरा कर रहे हैं। रवि - चाचा जी, कितना खर्च हो जाएगा? चाचा - यही कोई डेढ़-दो लाख और बाकी तुम्हारी श्रद्धा है। रवि - ठीक है। चाचा - क्या ठीक है? क्या करना है, कैसे करना है कुछ बता ही नहीं...

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कबाड़ : ज्ञानदेव मुकेश

कबाड़ : ज्ञानदेव मुकेश

‘कबाड़ीवाले भैया, जरा रुकना!’ एक बच्चे ने आवाज दी तो कबाड़ीवाले ने पीछे मुड़कर देखा।एक उदास बच्चा बुला रहा था।कबाड़ी वाला ठेला डगराते हुए बच्चे के पास वापस आया।उसने बच्चे से पूछा, ‘तुम्हें कौन-सा पुराना सामान बेचना है?’ मगर बच्चे ने एक दूसरा सवाल रख दिया, ‘तुम कबाड़ी के...

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बहू या बेटी : पवित्रा अग्रवाल

बहू या बेटी : पवित्रा अग्रवाल

बेटा बाहर से आया।आते ही भुनभुनाते हुए उसने सबसे पहले टीवी बंद किया और मां को घूरते हुए बोला, ‘जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ रही है, अक्ल कम होती जा रही है।आप को नहीं मालूम कि गुड्डू की दसवीं की परीक्षा होने वाली है! कुछ दिन के लिए बेटे-बहू के आग्रह पर आई मां ने कुछ कहना...

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नीड़ : श्रवण कुमार सेठ

नीड़ : श्रवण कुमार सेठ

एक चिड़िया पेड़ की एक सुंदर डाल पर आकर बैठ गई। -यह पेड़ अच्छा रहेगा मेरे घोंसले के लिए, छायादार और फलदार है।वह खुद से बातें करने लगी।कुछ देर बाद वह उड़ी और चुन-चुन कर तिनके लाकर घोंसला बनाने में जुट गई।उसके साथ दो छोटे-छोटे बच्चे भी थे। यह देखकर पेड़ ने कहा- अरी चिड़िया!...

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और वह बंट गया : मार्टिन जॉन

और वह बंट गया : मार्टिन जॉन

नवनिर्मित मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी थी।मंदिर की बाहरी-भीतरी सज्जा के लिए बशीर मियां की तारीफ हो रही थी।उसकी उम्दा कारीगरी से पूरा गांव अभिभूत था।शाम का वक्त था।वह टहलते-टहलते मंदिर के करीब पहुंचकर ठहर गया।प्यार और स्नेह आंखों में भरकर मंदिर को निहारने लगा।उसके...

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गोद : शशि बायंवाला

गोद : शशि बायंवाला

मैं दफ्तर के काम से बाहर गया हुआ था।सुबह आया तो सीधा दफ्तर ही चला गया।लौटने में देर हो गई।मीता से बात ही नहीं हो पाई।मैंने सोचा सब ठीक ही होगा, वरना वह ख़ुद ही कॉल कर लेती।इतनी रात को भी जब बहादुर ने दरवाजा खोला तो मेरा दिमाग ठनका।मैंने पूछा, ‘मैडम नहीं हैं?’‘नहीं,...

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खंडहर : श्रवण कुमार सेठ

खंडहर : श्रवण कुमार सेठ

‘बाबू जी! मंदिर के बगल वाला मकान बिलकुल खंडहर-सा हो गया है।अगर आप सहमत हों, तो उसे मेरे मित्र संतोष बाबू खरीदना चाहते हैं।उसकी मुंह मांगी कीमत भी देने को तैयार हैं।’ ‘वह उस खंडहर क्या करेंगे बेटे?’ पिता ने पूछा। ‘हमें इससे क्या लेना-देना बाबू जी...! वह कुछ भी करें,...

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भंवर : ॠचा शर्मा

भंवर : ॠचा शर्मा

रोज की तरह वह बस स्टैंड पर आ खड़ी हुई।शाम ६ बजे की बस में यहीं से बैठती है।काम निपटाकर सुबह पांच बजे वापस आ जाती है।आज घर से निकलते समय ही मन बेचैन हो रहा था।मिनी बड़ी हो रही है।रंग भी निखरता जा रहा है।दूसरी मांएं अपनी लड़की की सुंदरता देख खुश होती हैं, वह डरती है।आज...

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मोल-भाव : किंशुक गुप्ता

मोल-भाव : किंशुक गुप्ता

पापा के साथ नैनीताल के माल रोड पर घूम रहा था।तभी छलांग लगाने की मुद्रा में रखे हुए थर्मोकोल का मेंढक खरीदने की इच्छा हुई।दुकान लगाकर बैठी छोटी लड़की से दाम पूछा तो उसने 25 रुपये बताए। लड़की से पूछा- क्यों, कम में नहीं देगी? पांच-दस रुपये से ज्यादा का वैसे भी नहीं है।...

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सरकारी आदमी : अरिमर्दन कुमार सिंह

सरकारी आदमी : अरिमर्दन कुमार सिंह

ट्रेन में बैठे बूटन बाबू ये बातें अपने एक दोस्त से साझा कर रहे थे- ‘कोरोना जब अपने पीक पर था तो पत्नी का इलाज पहले सरकारी अस्पताल में करा रहा था।फिर कुछ गंभीर होने पर प्राइवेट हॉस्पिटल में लेकर भागा।सरकारी डॉक्टर तो उसे मार ही देता, भाई! न समय से चेक-अप, न साफ-सफाई और...

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कारण :मीरा जैन

कारण :मीरा जैन

‘‘मम्मी! आज परिधि भाभी बाजार में मिल गई थीं।हम दोनों ने साथ-साथ ही खरीदारी की।आपको पता है, बातचीत के दौरान अधिकांश समय वे सासु मां को ही याद करती रहीं।उनकी बातों से ऐसा लगा कि वे उनके बगैर गिन-गिन कर एक-एक दिन निकाल रही हैं।जाते-जाते तो उन्होंने यहां तक कह दिया- ‘अभी...

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टीवी की करामात : चित्रगुप्त

टीवी की करामात : चित्रगुप्त

चचा चूड़ियां बेचकर आ रहे थे तो मैंने उन्हें रोक लिया। -कहां से आ रहे चचा? -मंगलपुरवा से आय रये बेटा।चचा ने अपनी दाढ़ी खुजाते हुए साइकिल खड़ी कर दी। -अरे चचा ऊ तो हिंदुओं का गांव है, वहां जाते डर नहीं लगा? -काहे का डर बच्चा, पीढ़ियां निकल गईं यही करते करते।चूड़ियां बेचते...

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जाति-कुजाति : चित्रगुप्त

जाति-कुजाति : चित्रगुप्त

पापा को एडमिट हुए एक हफ्ते से ज्यादा हो गए थे, पर किसी का मजाल था कि कोई कुछ बाहर से लेकर खा ले।छोटी बहन बाहर से लेकर कुछ खाने की जिद करती तो दादी झिड़क देतीं- ऊंचे कुल के हैं।नेम-धर्म से रहना पड़ता है ...कौनो जाति-कुजाति के हाथ का खाकर अपना धर्म थोड़ी न भ्रष्ट करना है।...

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