लघुकथा
गुड्डे को सॉरी बोलो : मनोज चौहान

गुड्डे को सॉरी बोलो : मनोज चौहान

ऑफिस से लौटकर और हाथ-मुंह धोकर जैसे ही नरेन चाय पीने बैठा, उसने देखा कि पास ही तीन साल की बिटिया शिवन्या खिलौने से खेलने में व्यस्त है। हमेशा की तरह उसने रिमोट पर अपना हक जमाया हुआ है। नरेन के टीवी का रिमोट मांगने पर नन्ही शिवन्या ने कहा, ‘पापा, पहले मेरे गुड्डे को...

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चिराग तले अंधेरा : सेराज खान बातिश

चिराग तले अंधेरा : सेराज खान बातिश

फकीर मास्टर मुहल्ले के प्रसिद्ध लोगों में थे। एक हकीकत यह है कि वे अंत तक हाई स्कूल पास नहीं कर पाए थे। जब भी बेवजह वे पीठ पर कूबड़ बनाते हुए बातें करते, उन्हें देख कर हँसी आ जाती और वे गंभीर हो जाते। बच्चे उनसे खुश रहते और अभिभावक संतुष्ट। बच्चों को प्यार से सिखाना,...

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मांड़ का मजहब : मार्टिन जॉन

मांड़ का मजहब : मार्टिन जॉन

‘घबड़ाओ नहीं कासिम। बेफ़िक्र होकर बताओ।’ ‘सर, मेरे मोबाइल में अंजान नंबरों से मुझे जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं। ‘क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?’ ‘मेरी बीवी रोज़ नाली में मांड़ बहाने के बजाए उसे गली मोहल्ले की गायों को पिला देती है।’ ‘मांड तो कोई गंदी चीज़ नहीं है।...

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नींद का हरकारा : ज्ञानदेव मुकेश

नींद का हरकारा : ज्ञानदेव मुकेश

बूढ़े दादा-दादी रात के भोजन के बाद बड़े चिंतित थे, क्योंकि उन्हें नींद बिलकुल नहीं आ रही थी। कल उनके पोते का जन्मदिन था। दादी के कहा, ‘संदूक में एक पुराना खिलौना रखा है, वह दे देते हैं।’ दादा ने कहा, ‘हां, कुछ साल पहले लिया था, मगर किसी को दे नहीं पाया था। जरा देखो, नया...

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बिना टिकट : गजेंद्र रावत

बिना टिकट : गजेंद्र रावत

उसे एक्टिंग का बहुत शौक है। न जाने कितनी बार स्कूल से बंक मारकर उसने ढेरों फिल्में देख डाली थीं। वह मुंबई की फिल्मी दुनिया के सपने देखने लगा था। लेकिन क्या करे, वहां का कोई जुगाड़ बैठ नहीं पा रहा था। एक दिन हिम्मत करके वह बिना टिकट ही ट्रेन पर चढ़ गया। उसकी जेब में...

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अनुत्तरित प्रश्न : ज्योति मिश्रा

अनुत्तरित प्रश्न : ज्योति मिश्रा

छड़ी हथेली पर लगी तो एक छोटी कक्षा में चीकू की रुलाई फूट पड़ी। मास्टर साहब ने गुस्से में चीकू की उत्तर पुस्तिका छीनते हुए कड़क आवाज में कहा, ‘परीक्षा में नकल करते हो...! क्या नकल करके लिखा है, दिखाओ।’ चीकू ने सहमी हुई आवाज में कहा, ‘...मास्टर जी! कुछ नहीं। बस एक सवाल का...

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मुस्कान : पूजा भारद्वाज

मुस्कान : पूजा भारद्वाज

आज बस जैसे ही रेलवे क्रॉसिंग से निकली सामने से आती रोडवेज बस को मैंने ध्यान से देखा। आज भी वही दूसरा ड्राइवर था। मुझे चिंता हुई। दूसरेे दिन रेलवे क्रॉसिंग पर ट्रेन आने के इंतजार के दौरान मैं बस से उतरा और दूसरी तरफ खड़ी रोडवेज की ओर चला आया। बस ड्राइवर को राम-राम कर...

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अंग्रेजी मीडियम : शेफालिका सिन्हा

अंग्रेजी मीडियम : शेफालिका सिन्हा

दो-तीन दिनों से काम करने वाली मुन्नी मुझसे कुछ कहना चाह रही है, पर कह नहीं पा रही थी। कहे भी कैसे, सुबह में मुन्नी के आने के पहले तो मैं स्कूल चली जाती हूँ, शाम को जब मुन्नी आती है, तब मैं थकी-हारी सोई रहती हूँ। इस समय मैं किसी का सुनना नहीं चाहती।  एक रविवार ही होता...

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असली इंसान : गोविंद भारद्वाज

असली इंसान : गोविंद भारद्वाज

रेलगाड़ी के जिस डिब्बे में रामबाबू बैठा था, उसी में अचानक टीटी आ गया। रामबाबू ने जैसे ही टिकिट दिखाने के लिए जेब में हाथ डाला वह बुदबुदाया, ‘ये क्या मेरा बटुआ..और पैसे.. टिकिट..सब कहां..।’  रामबाबू की जेब कट चुकी थी। टीटी बाबू को देखकर उसके चेहरे पर घबराहट के मारे...

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सफलता का मापदंड : मुकेश पोपली

सफलता का मापदंड : मुकेश पोपली

आज शाम 5 बजे कंपनी के सीईओ सभी कर्मचारियों को संबोधित करेंगे, इसलिए निर्धारित समय पर मीटिंग हाल में सब लोग एकत्र हो जाएं! यह संदेश कंपनी के प्रत्येक कर्मचारी के मोबाइल पर सुबह 11 बजे चमकने लगा था। 4 बजकर 55 मिनट पर अचानक सबके कंप्यूटर बंद हो गए। मयंक को छोड़कर सब लोग...

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इकलौता बेटा :रविशंकर सिंह

इकलौता बेटा :रविशंकर सिंह

-भाई, मेरी लड़की के लिए कहीं अच्छा घर-वर दिखे, तो बताना! -कैसा लड़का चाहिए? -लड़का सरकारी नौकरी में हो। परिवार छोटा हो। -छोटा परिवार! -हां, उसपर भाई-बहनों की जिम्मेदारी न हो। उसके माता-पिता पेंशन होल्डर हों तो सोने पर सुहागा। -एक इंजीनियर लड़का है चलेगा? -क्या वह सरकारी...

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पूर्वग्रह : शशि बांयवाला

पूर्वग्रह : शशि बांयवाला

एक शिक्षिका की अपने संस्थान में काफी सख्त छवि थी। कुछ ऐसा ही प्रचार था। एक दिन कुछ विद्यार्थियों को उस तक कुछ कागजात पहुंचाने के लिए कहा गया।  9 से 14 वर्ष तक के विद्यार्थी थे। सभी ने मना कर दिया। किसी ने एक बहाना बनाया तो किसी ने दूसरा। शिक्षिका पुस्तकालय में थी। अंत...

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ममी : कनक किशोर

ममी : कनक किशोर

महेश अपने बरामदे में टहल रहा था। वह अपने ही ख्यालों में डूबा हुआ था। मैं उसके नजदीक पहुंचा, पर उसे पता नहीं चला। मेरी आवाज को सुन मेरी ओर मुखातिब हो बोल पड़ा ‘तुम कब आए सुदेश? आओ आओ बैठो यार।’ पर उसकी बातों में वह खनक नहीं थी, जो उसकी पहचान थी। जिगरी था मेरा। बीस...

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उतरन : विष्णु सक्सेना

उतरन : विष्णु सक्सेना

- ताऊ प्रणाम, आपके लिए दीवाली उपहार लाया हूँ ! - आशीर्वाद बेटा। क्या लाया? - एप्पल वाच है, आधुनिकता की पहचान! बस साथ लगा यह बटन दबाओ, समय चमकने लगेगा। - बहुत बढ़िया, पर यह वाच बहुत महंगी होगी! - आपको उससे क्या लेना। यह तो आपको मेरी तरफ से उपहार है! - फिर भी! - बात ऐसी...

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गंदगी : शम्भू शरण सत्यार्थी

गंदगी : शम्भू शरण सत्यार्थी

बाप-बेटे दोनों पैदल बाजार जा रहे थे। गंदगी से सने नाली की सफाई कर रहे मजदूरों को देखकर। बेटे ने पूछा, ‘पापा, ये क्या कर रहे हैं?’ ‘अरे बेटा, ये लोग नाली की सफाई करने वाले लोग हैं।’ ‘क्या नाली की सफाई करने वाले अलग लोग होते हैं?’ ‘हां बेटा। वे छोटी जात के होते हैं।...

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दरारें : जाफर मेहदी जाफरी

दरारें : जाफर मेहदी जाफरी

अख़बार और पत्रिकाएं बहुत जमा हो गई थीं। रखने की जगह न रह गई थी। छोटे से घर में क्या क्या जमा करें? अपने लिए ही जगह कम पड़ने लगी थी। कबाड़ी ने आवाज़ लगाई तो उसे बुला लिया। अख़बार तो उसने तोल लिए। अब नंबर आया मैगज़ीन का। उसपर उसने नाक-भौं चढ़ानी शुरू की। उनमें वह छटनी करने लगा...

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भयतंत्र में एक शाम : संतोष सुपेकर

भयतंत्र में एक शाम : संतोष सुपेकर

‘अरे!’ पैंतालीस वर्षीय सागर ने पत्नी को आते  हुए देखा तो पूछ बैठा, ‘अकेली  ही आ गई! मुझे फोन कर दिया होता, लेने आ जाता, सुनसान रास्ता था...’ ‘लगाया था आपका फोन, पर लगा ही नहीं। फिर सोचा निकल ही चलूँ, और आ गई, बस्स!’ ‘अरे पर...  रास्ता कितना सुनसान है और रात भी होने...

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अंतःपीड़ा : सुनील गज्जाणी

अंतःपीड़ा : सुनील गज्जाणी

वह बौखलाता झटपट घर में घुसा। घुसते ही अपने पहने जनाने कपड़े फुर्ती से खोलने लगा तो उसकी पत्नी हैरत से बोली, ‘क्या हो गया आपका, इतनी जल्दी आ गए!’ ‘बाजार में किन्नर मिल गया था।’ ‘आप भी तो किन्नर ही हो न!’ ‘मगर हूँ तो बहुरूपिया ही!’ ‘फिर?’ ‘उसकी बात ने मेरे दिलो-दिमाग को...

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अंतर्यामी : राजेंद्र उपाध्याय

अंतर्यामी : राजेंद्र उपाध्याय

दोपहर का खाना, बरसाती आदि पीठ पर लादकर ले जाने वाला मेरा झोला काफी पुराना और जीर्ण अवस्था में पहुंच चुका था। एक दिन बाजार से गुजरते हुए अचानक दुकान में टंगे झोलों पर नजर पड़ी तो एक खरीद लिया। घर पहुंचकर पत्नी को बताया तो बोली, ‘ठीक किया, खरीद लिया। कई दिनों से सोचकर भी...

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घर : राम करन

घर : राम करन

मड़ई का घर जब बरसात में टिपिर-टिपिर चूता है तो सोना के अम्मा के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती हैं। शुरू होती है दो कमरों के घर में भाग-दौड़, जैसे चूहा-दौड़ शुरू हो गई हो। कटोरा इधर रखो, गिलास उधर। धीरे-धीरे थाली-कड़ाही से लेकर भदेली-परात पूरे घर में फैल जाता है। जले पर नमक...

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