युवा कवयित्री।दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में शोधार्थी।

धरती का गर्भपात

१.
घने जंगलों के बीच
सिंगरौली में उसका गर्भ
सदियों से सिंचित था
जिसकी सुरक्षा को लेकर
पहरेदारों से ज्यादा सतर्क थी
ऊंचे पेड़ों पर बैठी नन्ही चिड़िया
चमकीली गिलहरियों के बीच होड़
दाने चुनने से कहीं ज्यादा
शिकारियों के कदमों की आहट सुनने के लिए थी
रूई से नर्म खरगोश अपने साथियों के साथ
उसके गर्भ की रक्षा के लिए थे प्रतिबद्ध
चौकन्ने रहते थे पहाड़
पहाड़ी नदियां भी
किसी प्रशिक्षित योद्धा जितनी ही शांत
इन सबके बीच
सिंगरौली के घने जंगलों में
उसका गर्भ सदियों से सिंचित था।

२.
जंगल से दूर था
बहुरूपियों का शहर
जिनके गर्म तोप पी सकते थे
नदियों का सारा जल
तोड़ सकते थे क्रशर
चौकन्ने पहाड़ों का कंधा
डायनामाइट पेट फाड़ निकाल सकते थे
गर्भस्थ शिशु
चमकीले बूट रौंद सकते थे
नवजात का गर्भनाल
और अब
धरती का भ्रूण
उनके लिए उत्सव नहीं अवसर था।

३.
जंगल और बहुरूपियों की जंग में
पेड़ों से गिरने लगे पहरेदारों के गर्म दिल
डायनामाइट के शोर में
जारी था गर्भपात
कहते हैं कि उस रोज आकाश में
बादल नहीं पहाड़ उड़ रहे थे
और
धरती के बलात गर्भपात के स्राव से
निराश थी योद्धा नदी
उसके भाग्य में अब यात्रा से कहीं ज्यादा
यातना थी।

४.
सिंगरौली के भ्रूण को याद करते हुए
मुझे याद आ रहा है डिगबोई
जिसका भ्रूण हर महीने मेरे घर
सब्सिडी के साथ सिलेंडर में कैद होकर आता है
मेरे सपने में आता है जादूगोड़ा
और यूरेनियम
मेरे अजन्मे विकृत बच्चों की नसों में बहने लगता है
मेरी किताबों से झड़ने लगता है
झरिया की कोयले की धूल में सने बच्चों का भविष्य
दुनिया के तमाम विस्थापनों को याद करते हुए
मनुष्यता के विस्थापन पर कोई तर्क नहीं दे सकती
पर महसूस कर रहीं हूँ
मैं अपनी आत्मा के हर हिस्से में गर्भस्राव…।

डिलेवरी ब्वाय

दुपहिया बाइक पर
ग्लोबलाइजेशन का बोरा लटकाए
उसके जवान कंधे उतने ही झुके हैं
जितना किसी युद्ध में हारे हुए
सिपाही के कंधे होते हैं
जवान कंधों पर
बंदूक है या ग्लोबलाइजेशन का बोरा
किसी को क्या फर्क पड़ता है?
जो कभी पिता की साइकिल पर बैठ कर
जाता था बाज़ार
हवामिठाई के लिए करता था जिद
आज उसकी रीढ़ की हड्डी
बाज़ार का नया खंभा है
उसकी ऊंचाई कुतुबमीनार और
एंटिलिया से कहीं ज्यादा है

मैं सोचती हूँ
अंतहीन इच्छाओं की अंधेरी दुनिया में
रात-दिन की दौड़ से थके
इन धावकों के सपनों में
क्या ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ स्लोगन गाते
विज्ञापन आते होंगे?

क्या कोई अर्थशास्त्री बता पाएगा
उसकी आंखों के नीचे उभरे गड्ढों में
कुल जमा पूंजी कितनी है
क्या कोई घड़ी की कंपनी बता सकती है
पूरे दिन में एक बार भी ठहर कर
सांस लेने का वक्त
उन्होंने इनकी घड़ी में डाला है या नहीं
आज फिर से कोई डिलेवरी ब्वाय बोरा उठाए
मेरी गली में अपने ग्राहक का इंतजार कर रहा है
और मेरी रीढ़ की हड्डी
धीरे-धीरे घिसती जा रही है।

तीर्थ यात्री

ईश्वरत्व और मुक्ति की तलाश में
मैंने कितने ही तीर्थ यात्री और उनके हुजूम देखे हैं
जो दाखिल होते हैं पवित्र शहरों में पंक्तिबद्ध
अपनी प्रार्थनाओं के साथ
और शहर का अपना कुछ नहीं बचता
ईश्वरत्व भी नहीं, मुक्ति भी नहीं
कहते हैं कि पवित्र शहरों में ईश्वर का बसेरा है
जहां वह अनुयायियों की प्रार्थना सुनता है
शहर की चौहद्दी से दूर
मेरे गांव में बरगद के पेड़ के पीछे
चंदे से बनी देवता की छत
हर साल बरसात में टपकती रहती है
और उस देवता की सोने की छत
काशी में दूर से ही चमकती है
क्या पूरी दुनिया में फैले ईश्वरों पर
पवित्र शहरों के ईश्वर का वर्चस्व है?

खूंटी में बना है आदिवासियों का छोटा-सा गिरजाघर
रविवार को नियमित होती हैं यहां प्रार्थनाएं
यहां बाइबिल तो आया
पर वेटिकन सिटी की रौनक कभी नहीं आई
न ही आती है श्रद्धालुओं की लंबी कतार
क्या इस गिरिजाघर के घंटे की आवाज
वेटिकन सिटी में बैठे पोप की कानों में जाती होगी?

खैर काबा हो या कैलास
पवित्र शहरों के देवता सुरक्षित हैं
जब तक उनके पुरोहित सुरक्षित हैं
तुम्हें ईश्वरत्व के बारे में बताते हुए
वे कभी नहीं बताएंगे
कि उनके ईश्वर उनके बिना कितने असुरक्षित हैं।

महाजन

हिमारे अंचल में महाजन शब्द बेटियों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता र्हैें
मेरे गांव में लड़की
अक्सर लड़कियां नहीं
कहलाती हैं अपने बाप की महाजनें
क्या कोई इनसाइक्लोपीडिया
बता पाएगा कि
इन्हें किसने महाजन बनाया

कमर पर टंगे भाई-बहनों के बोझ से
इन महाजनों के स्कूली बस्ते भारी हो जाते हैं
और पीठ इतने कमजोर
कि दसवीं तक पहुंचते-पहुंचते ही टूट जाते हैं
मेरी गांव की महाजनों ने कभी
पटना का गोलघर नहीं देखा
मेले में किसी खिलौने ने
उनका मन नहीं लूटा
आखिर किस कारीगर ने उनकी चप्पलें बनाईं कि
उनके फीते बदलते रहे
पर वर्षों से उन्होंने पैरों की चप्पलें नहीं बदलीं
और न ही बदले उनके पदचिह्न

मैं सोच रही हूँ क्या महजनों के सपने
उनके बालों के फीतों की तरह ही
गुलाबी होंगे?
महाजनो
तुम लांघो पहाड़ों को
जिन्हें पार कर तुम बन सकती हो
सिर्फ और सिर्फ लड़कियां
तुम लौटो वापस
और पहाड़ों पर खिले कास के फूलों की तरह
लड़कियों को धरती पर बिखेर दो।

यात्राओं का इतिहास

हम अपने पूर्वजों के गीतों
और उदास दिनों में रची
उनकी कथाओं के सहयात्री हैं
यात्राओं ने सभ्यताओं का मानचित्र बदला
और बदली भूगोल की दिशाएं

दुनिया में यात्रियों की कई प्रजातियां थीं
कुछ ने धार्मिक पुस्तकों के साथ यात्राएं कीं
और जमीन से उखाड़ फेंके गए
कई आदिम ईश्वर लापता हो गए

किसी यात्री ने देश के दक्षिणी तट पर
काली मिर्च को सोने से और
गेहूं की बल्लियों को नीले फूलों में बदला
कपास के फूल ज्यादा थे या बादल
कोई नहीं जानता
खैर कई महाद्वीपों के तख्त
इनकी अदला-बदली में ढह गए
और सदियों तक उनके जहाज़ पानी पर नहीं
भूख से थके कंधों पर तैरते रहे

भाषा विज्ञान की पुस्तक को पढ़ते हुए
मुझे वे सभी ध्वनियां याद आ रही हैं
जिनसे हमारे पूर्वज पक्षियों से संवाद करते थे
ये ध्वनियां किस पक्षी के साथ उड़ गईं
या शिष्ट चिड़ियों ने उन्हें सभ्य भाषा में बदल दिया

यात्राओं की कथाएं जब हमें करती हैं निराश
तब पेड़ दुखी होकर मनाते हैं शोक
और अपने पत्तों को गिरा देते हैं
…दुनिया को लगता है यह शरद ऋतु है
हकीकत केवल हम जानते हैं।

मेरे सहयात्री!
पृथ्वी की नियति है यात्रा
कोई मनुष्यता की यात्रा पर मिले
तो उसे सराय का रास्ता बता देना।

संपर्क :शोधार्थी, हिंदी विभाग, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया,  chahatanvi@gmail.com