युवा कवि। अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। फिलहाल खेती–बाड़ी, इधर–उधर काम।
ब्रह्मपुत्र
बंधु क्या तुम्हें पता है
ब्रह्मपुत्र सरायघाट के पुल तक आते-आते
नाम कितना बदल जाता है
बंधु क्या तुम्हें पता है
अरुणाचल में जो अभी बह रहा है ब्रह्मपुत्र
उसका नाम क्या है
बंधु क्या तुम्हें पता है
चीन में बांग्लादेश में
और तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का नाम क्या है
बंधु क्या तुम्हें पता है ब्रह्मपुत्र हर साल
कितनों को निर्वासन में भेज देता है
हजीरा मजूरी के लिए
बंधु क्या तुम्हें पता है
ब्रह्मपुत्र की मछलियां हर साल
किस-किस देश की मछलियों से
मिलने जाती हैं और मारी जाती हैं।
बुलबुल
बुलबुल बता
मेरे गन्ने का पकाया हुआ गुड़
कितना मीठा है
पंडुको क्यों झराते हो झर-झर
पके हुए सरसों के डंठल
गौरैया चिरइयो
क्यों नहाती हो धूल भरे खेतों में फर-फर
बिल्लियो क्यों म्याऊं-म्याऊं पुकारती हो
आधी रात हमें देखती हुई
क्या तुम खाना मांगती हो?
हम सबसे तुम्हारा क्या नाता है
क्या रिश्ता है
आओ, तुम मेरा प्रिय साथी बनो
हमें तुम्हारा मुद्दई कभी नहीं बनना।
मृत्यु नहीं
मैंने इस धरती में
लाखों-लाखों
बीजों को गाड़ा है
मैंने इस धरती में
लाखों-लाखों बार
कुदालों को चलाया है
मुझे मृत्यु नहीं
मुक्ति चाहिए धरती
मुक्ति।
चनमोहन क्या करता है?
चनमोहन क्या करता है?
क्या वह अभी भी ऊंख छीलता है?
दुख कितना भुगत रहा है
कितना भुगतेगा और
नहीं है कोई ठौर इस दौर दुनिया में
बिना रोजगार के
याद है उसे जब मकई की एक मोटी रोटी में
पूरा परिवार खाते थे
क्या खाते थे कि अधपेटे भूखे रह जाते थे
अब भी वही हालात हैं
युवा जीवन क्या करेगा?
लिया करजा भरेगा खटाकर अपने चाम को
सुबह को या शाम को जो पूछते हैं-
क्या कर रहा है चनमोहन?
उनसे कहो-उसे तुम्हारी भीख नहीं चाहिए
कोई सीख भी नहीं
और ताना भी नहीं चाहिए
और खाना भी नहीं चाहिए
जैसे मेहनत करता है वह करने दो
उसे उसके हाल पर छोड़ दो
कोई जरूरत नहीं रह गई है अब शहादत की
वह बिना मरे कई बार शहीद हो चुका है
वह कोई गलत युवा नहीं है न ही बूढ़ा
वह है जो सभी खेतों के बीज देखा करता है
अपने में पसीज-पसीज
गरम सूरज से पूछो उसका हाल
हलचल है उसके जीवन में
उसके मन में
पीड़ा भरी कितनी चिंताएं हैं
पूछो उसकी अंतरात्मा की माटी से
हाड़ तोड़ मिहनत-मजदूरी करते हुए
कितनी बार कर चुका है सद्गति प्राप्त।
मुझे हर रोज एक बाघ पकड़ लेता है
मुझे हर रोज एक बाघ पकड़ लेता है
दाबकर अपने पंजे से!
मैं बचाने की पूरी कोशिश करता हूँ
अपनी आत्मा को
बचा नहीं पाता हूँ
यह बाघ कोई भी हो सकता है
किसी भी सूरत में कहीं भी
हो सकता है
घर में बाहर में
भीतर में जंगल में
नदी के मैदानों में
खेतों में धान के देशों में
कहीं भी हो सकता है
बाघ अपने पंजे से दाब कर
आपको पकड़ सकता है और
जितनी दूर तक खेत फैला है
आपको काम के बैल में नाध सकता है
छोटे-छोटे डंडों और पैनों से हांकते हुए
आपकी पीठ पर आपके चाम पर
आपके हाड़ पर
कोड़ा बरसा सकता है
चमड़ा छुड़ा सकता है
इधर करो उधर करो
ऐसे करो वैसे करो कहते-कहते
आपको पेट के बल झुका देता है बाघ
आपकी आत्मा यातना सहते-सहते
आदत के काबिल हो जाती है और आप
कई हथौड़ों की चोट सह सकते हैं काम के
तब आप मुंह से खून फेंकें
या खून की उल्टी करें
या रक्त मांस से लिथड़ा श्रमिक हाथ दिखाएं
या मजदूरी के पैसे का बिरहा गाएं
या माटी पर बैठ जाएं आसमान को ताकते हुए
आपके श्रम से कोई शर्मिंदा नहीं होगा दोस्तो
आपके श्रम से हर कोई जिंदा रहेगा दोस्तो!
खेतों की तरफ जाते हुए
हर बार खेतों की तरफ जाते हुए
मुझे लगा कि
सिवा हाड़ तोड़ मेहनत के
सिवा हाथों के इन धारों के
कुछ भी नहीं है, कुछ भी नहीं
जैसी दुखदाई स्थिति है भारत के खेतिहरों की
मुझे लगा कि
खेती भी पहले जैसी नहीं रह जाएगी
मुझे लगा कि खेती छोड़कर
मजदूरी करनी चाहिए कहीं
मुझे लगा कि
कविता बगैर जी लेंगे उदास गुमसुम लेकिन
रोटी बिन दस-बीस दिन में मर जाएंगे
मुझे लगा कि
मेरे पास कोई जीवित संपत्ति नहीं है
सिवा इन जर्जर हाथों के…!
कविता के दुश्मन
वे कविता के दुश्मन हैं
दुश्मन हैं किताबों के
पेड़ों के दुश्मन हैं
सफदर हाशमी के दुश्मन हैं
फिलिस्तीन के लोगों के दुश्मन हैं
वे प्रेमी के दुश्मन हैं
दुश्मन हैं
वे दुश्मन हैं
तुम्हारे दुबले-पतले जीवन के
मौलिक सोच-विचार के
वे फेंकना चाहते हैं तुम्हें
तुम्हारी कविता बीड़ी-माचिस सहित
तुम्हारे कमरे से दूर
तुम्हारे काम से बाहर
वे हर रोज प्रताड़ित करते हैं तुम्हें
यातना देते हैं
अगर वे तुमको मार भी देते हैं
तब भी तुम मर नहीं सकते कभी
तुम हो कवि
तुम्हारी कविताओं से
देश के लोग जानते हैं तुम्हें
अभी भी बहुत लोग हैं ऐसे
आशा करता हूँ रहेंगे भी
जो सचमुच
पृथ्वी के लायक हैं
कटे हुए पेड़ को जिया देनेवाले
प्यारे पानीदार इंसान।
बसंत
पीड़ा में पेड़ों को देखना सुंदर है
थोड़ा-सा सुकून भरा, बस!
जिन पेड़ों के पत्ते कब के झर चुके हैं
बसंत पार हो गया
लेकिन उनमें बसंत नहीं आया
कुछ पेड़ों में बसंत देर से आता है
और मेरे शरीर के पेड़ में बसंत
आने का एहसास तक नहीं देता
असल में मैं मेहनत करते-करते थक चुका हूँ
और खेतों में बसंत लाने के लिए
असंख्य लोग जुटे हुए हैं
मधुमक्खियों की तरह
मधुमक्खियां इतनी ज्यादा मेहनत करती हैं
उन्हें देखता हूँ तो मां की याद आती है
बहन की और गांव की तमाम
खटती औरतों की याद।
ख़ून
जितना रोज खून नहीं बनता है शरीर में
उतना रोज बह जाता था गन्ने की कटाई में
छिलाई में
और अनेक इस तरह के काम में
मैंने जिया है जीवन
कह सकता हूँ
कि कविता
गन्ने की आंखों में से उपजती है
पीड़ित देह के भीतर
खून बनता है आज भी रोटी और नमक और
आलू की सब्जी और बिरन धान से
सिरका अचार से
पानी से
इस देह में
इस देह में देश लिए घूमता हूँ
आज भी दुख मेरा बंधक खेत है
और खेत की बेटी
कितना भुगत चुकी है श्रम को
अपने हाथ पर देह पर
लाठी की तरह रोककर
कितना सह चुकी है
आह!
कितना कम खून
बचा है हमारी देहों में
कितनी ज्यादा पीड़ा
कितनी कम
हमारी मजदूरी
कितनी ज्यादा खटनी।
बेदखली 2023-24
गांव के बुजुर्ग कहते हैं
वहां एक गांव था
सरकार के आर्डर पर
हाथियों से झोपड़ियों को तोड़ा गया था
और अब तोड़ा जाता है बुलडोजर से
बुलडोजर एक पूंजीवादी गाड़ी का नाम है
और बेदखली क्या है
क्या यह फासिस्ट ताकत नहीं है?
गांव के बुजुर्ग कहते हैं
वहां एक गांव था
कई श्रमिक लोग
कपिली नदी के तीरे बसे थे
मुझे बाद में मालूम हुआ कि
अरे नदी के किनारे तो
गांव नहीं शहर बसता था।
धान के खेत में हाथी
धान के खेत में हाथी
भर-भर सूंढ़ में खाता है धान
जिसका धान का खेत है
उसका निकल जाता है प्राण
कितना अगोरें खेत
कितनी रातें जागें
मिनट-मिनट में
कई बीघा धान की खेती हो जाती समाप्त
कोई टॉर्च लाइट काम नहीं करता
कोई आग का लुकाड़
चिल्लाते-चिल्लाते गला बैठ जाता है
हो जाता है बिहान
गांव के किसान कहते हैं
यह हर साल की बात है
हम रोपते हैं
हाथियों का झुंड सब कर देता है बर्बाद
हमारी सारी मेहनत
हाथी के पेट-पांव-सूंढ़ में समा जाती है
अंत में बचता भी नहीं
गाय-बैलों के लिए पुआल
गाड़ा हुआ कोई बिजुका काम नहीं करता
बिजुका को अपने पांव से रौंद देते हैं हाथी
हाथियों को कोई डर नहीं किसानों से
जो आगे आएगा मसाल लेकर
मर जाएगा खेत में ही
कल उसकी होगी पोस्टमार्टम
कल उसके परिवार जन रोएंगे चीखेंगे हाय-हाय।
तुम्हें पेड़ देखेगा तुम क्या कर रहे हो पृथ्वी पर
उन्हें नारियल के पेड़ों को रोपते हुए
आपने देखा है!
मैंने देखा है
उनकी आंखों में
कितनी उम्मीदें जाग रही होती हैं
हालांकि उनके खुरदुरे जीवन का सोता
सूख चुका होता है
मरने से पहले वे अपनी संतानों से कहते हैं
हम तो मर जाएंगे
इन पेड़ों में तुम गोबर-पानी डालते रहना
और इनमें जब रसदार फल आने लगें
तब तुम ही देखना
तुम्हें पेड़ देखेगा
तुम क्या कर रहे हो पृथ्वी पर
मनुष्य जन्म पाकर।
श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
मजूरी – मछली के लिए
दूर-दूर तक देश घूमता रहता है
हाथ में फेंका जाल लिए
श्रमिक मल्लाह है
और मछली पकड़ने का काम पीड़ा भरा
श्रमिक ब्रह्मपुत्र है
इसे पुरखों से मिले हैं उत्थान और पतन।
खेरोनी कछारी गांव, कार्बी आंगलोंग-782461 (असम) मो.9365909065
बहुत बेहतरीन कविताएँ